गुजरात में 2002 के दंगों के बाद से ही नरेंद्र मोदी आलोचकों के निशाने पर हैं, लेकिन जाने-अनजाने उन पर किए गए हर हमले के बाद वे पहले से ज्यादा मजबूत बनकर उभरे हैं। उन्हें विवादास्पद और समाज को बांटकर ध्रुवीकरण करने वाला नेता करार दिया गया लेकिन इससे उन्हें नुकसान के बजाय फायदा ही हुआ है। लगातार 13 साल तक गुजरात का मुख्यमंत्री रहने के बाद वे पिछले तीन साल से प्रधानमंत्री हैं और अगले आम चुनाव में उनके सामने कोई नजर नहीं आ रहा है।मुसलमानों की लाशों पर सरकारें बनाने की कोशिश कर रही है बीजेपी: आजम खान
मोदी पर सबसे पहले तीखे हमले की शुरुआत कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की तरह से हुई थी, जब वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने मोदी को ‘मौत का सौदागर’ कहा था। भारत में किसी वरिष्ठ राजनेता के खिलाफ इतनी तीखी टिप्पणी इससे पहले कभी नहीं की गई थी। हालांकि 2014 के आम चुनाव में प्रचार के दौरान सोनिया ने इससे एक कदम आगे बढ़कर मोदी पर ‘जहर की खेती’ करने का आरोप चस्पा कर दिया।
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उनके मुख्यमंत्री रहते गुजरात मॉडल पर सवाल उठाने वालों को उन्होंने योजना आयोग के आंकड़ों से जवाब दिया। इसी तरह उद्योगपति गौतम अडानी को जमीन के सौदों में फायदा पहुंचाने के आरोपों के जवाब में उन्होंने मीडिया से कहा कि वे कांग्रेस शासित राज्यों में अडानी के लैंड बैंक की तहकीकात करें, फिर उन पर आरोप लगाएं।
आम चुनाव जीतने और प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उन पर हमले जारी रहे, लेकिन इससे उन पर कोई फर्क नहीं पड़ा। अब हालत यह है कि विपक्ष के पास उन पर हमला करने के अलावा कोई काम नहीं बचा है, जबकि मोदी की काम करने की स्टाइल, अथक परिश्रम करने की उनकी प्रतिबद्धता और जनता की नब्ज को पहचानने की उनकी क्षमता का मुकाबला सिर्फ उनकी आलोचना से नहीं हो सकता है। उनसे बड़ी लकीर खींचने वाला कोई नेता और उसकी पार्टी ही उनका सामना कर सकती है।