जानिए आखिर बरसाना में क्यों और कैसे खेलते हैं लट्ठमार होली

होली मस्ती और मिलन का त्योहार है. यूपी के बरसाना में होली का अंदाज ही अलग है. यहां की लठ्ठमार होली देखने के लिए देश विदेश से कई लोग हर साल यहां आते हैं. आइए हम आपको बताते हैं क्या है लठ्ठमार होली और क्यों इतने धूमधाम से मनाई जाती है.

ब्रजवासी लठ्ठमार होली की परंपरा को मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. लठ्ठमार होली केवल आनंद के लिए ही नहीं बल्कि यह नारी सशक्तीकरण का भी प्रतीक मानी जाती है. इसके पीछे की कहानी श्रीकृष्ण से जुड़ी है.

भगवान श्रीकृष्ण महिलाओं का सम्मान करते थे और मुसीबत के समय में हमेशा उनकी मदद करते थे. लठ्ठमार होली में श्रीकृष्ण के उसी संदेश को प्रदर्शित किया जाता है.

थोड़े से चुलबुले अंदाज में महिलाएं लठ्ठमार होली में अपनी ताकत का प्रदर्शन करती हैं.

ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण अपने दोस्तों के साथ राधा से होली खेलने के लिए बरसाना आया करते थे. लेकिन राधा जी अपनी सहेलियों के साथ बांस की लाठियों से उन्हें दौड़ाती थीं.

अब लठ्ठमार होली बरसाना की परंपरा बन चुकी है. ब्रजवासी हर साल इस त्योहार को पूरे जोश के साथ मनाते हैं.

नन्दगांव के वासी बरसाना में होली खेलने आते हैं. होली खेलने के लिए वे आकर गोपियों को ललकारते हैं. गोपियां लाठी लेकर आती हैं.

पहले से तैयार गोपी बचाव के लिए ढाल अपने साथ लाते हैं. जब गोपियां सिर पर लट्ठ से वार करती हैं तो नन्दगांव के लोग ढाल से रोक लेते हैं.

मौज-मस्ती के साथ-साथ पारंपरिक गाना-बजाना भी होता है. रंगों में सराबोर ग्वालों के चुटीले अंदाज बहुत पसंद आते हैं.  

इस दौरान ब्रजवासियों के लिए बरसाने में ठंडई की भी व्यवस्था की जाती है. वे खाते-पीते हैं और होली खेलते हैं.

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