दिल्ली में कचरे के पहाड़ इस वक्त सबसे बड़ी समस्या बन गए हैं और ये पहाड़ दिल्लीवालों के घरों से निकले कचरे से खड़े हुए हैं. जोकचरा घरों से निकलता है, सड़कों के किनारे पड़ा होता है, ढलावों पर सड़ता रहता है और फिर लैंडफिल साइट्स पर पहुंचकर पहाड़ में तब्दील हो जाता है.बड़ी खबर: ब्रिटेन में डॉन दाउद की करोड़ों की सम्पत्ति जब्त की गयी!
कचरा रोज़ाना निकलता है, लेकिन उसके लिए अब लैंडफिल साइट नहीं है, जो हैं वो भर चुकी हैं. ऐसे में अब इस समस्या का एक ही समाधान है और वो है कचरे को एनर्जी में बदलने का. क्योंकि जो कचरा लैंडफिल साइट पर जाकर मुसीबत बनता है, वो बिजली बनाने के लिए ईंधन के तौर पर काम आ सकता है.
गाज़ीपुर में कचरे से बिजली बनाने वाला प्लांट
घर से निकले कचरे से बिजली बनाई जा सकती है, लेकिन लापरवाही और सरकारी बेरुखी से कचरा न सिर्फ बेकार जा रहा है, बल्कि राजधानी दिल्ली के लिए मुश्किल भी पैदा कर रहा है. गाज़ीपुर के कचरे के पहाड़ के पास एक प्लांट में इससे बिजली बनाई जा रही है. आईएफ एंड एलएस के वेस्ट टू एनर्जी प्लांट में दिल्ली के मुसीबत वाले कचरे को न सिर्फ ईंधन की तरह इस्तेमाल किया जाता है, बल्कि इससे बिजली बनाकर घरों में सप्लाई की जाती है.
गाज़ीपुर में 2000 टन रोज़ाना कचरे की खपत क्षमता वाला प्लांट पिछले साल से शुरू हुआ था. हालांकि अभी इसकी ऑपरेशनल कैपेसिटी 1300 टन प्रतिदिन की रखी गई है. मतलब गाज़ीपुर पहुंचने वाले 2500 टन कचरे में से 1300 टन कचरा इस प्लांट में लाया जाता है, जिसे प्रोसेस करके बिजली बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. हालांकि दिल्ली भर में पैदा होने वाले कचरे की तुलना में बिजली बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले कूड़े की तादाद काफी कम है, लेकिन फिर भी ये एक रास्ता है, जो दिल्ली को कूड़े से मुक्ति दिला सकता है. इस प्लांट के लिए कचरा बेकार का कूड़ा करकट नहीं, बल्कि रॉ मटेरियल होता है.
डंपिंग पिट में इकठ्ठा होता है कूड़ा
सबसे पहले कचरा डंपिंग पिट में आता है, ये वही कचरा है, जिसे खुले में लैंडफिल साइट पर फेंक दिया जाता था, लेकिन यहां ये कचरा प्रोसेस होता है. इस पिट से कचरा क्रेन के जरिए कन्वेयर बेल्ट में जाता है और कन्वेयर बेल्ट पर कचरे को सुखाया जाता है. साथ ही बेकार की चीजें अलग की जाती हैं. इसके बाद इस कचरे को एक साइज़ में बनाने के लिए प्रोसेस किया जाता है.
प्लांट का ये हिस्सा वो जगह है, जिसे इसलिए बनाया गया है, क्योंकि फिलहाल दिल्ली में घरों में गीला और सूखा कचरा अलग-अलग करने की परंपरा नहीं है. अगर यहां सिर्फ सूखा ही कचरा आए, तो इस हिस्से की ज़रूरत कम हो जाएगी. साथ कचरे को इस्तेमाल लायक बनाने में वक्त भी कम लगेगा. प्लांट की पर्यावरण प्रबंधन की सीनियर मैनेजर रचना शर्मा के मुताबिक यहां कचरे को प्लांट में इस्तेमाल लायक बनाया जाता है, क्योंकि कूड़ा मिक्स होकर आता है, तो इसे अलग-अलग करना और सुखाना जरूरी हो जाता है.
कंट्रोल रूम से रखी जाती है कचरे की पूरी प्रोसेसिंग पर नज़र
जिस कचरे को हम अपने घरों में बेकार समझकर फेंक देते हैं और घर में ज्यादा देर तक रखना भी पसंद नहीं करते, उसे नष्ट करने के साथ-साथ उससे बिजली भी बनायी जा रही है. इस प्लांट के सबसे महत्वपूर्ण कंट्रोल रूम में कचरे से बिजली बनने की प्रक्रिया पर बारीकी से नज़र रखी जाती है. इस कंट्रोल रूम के जरिए कचरे के सिस्टम में पहुंचकर बिजली बनने के तमाम चरणों की मानिटरिंग होती है. यहां तीन कैमरों के जरिए प्लांट के भीतर की तस्वीर लगातार मिलती रहती है.
कचरे को ड्राय करने के बाद हाई टंपरेचर पर जलाया जाता है. यहां तापमान 800 से 1000 डिग्री सेल्सियस होता है और इस प्रक्रिया में कचरे से निकलने वाली हानिकारक गैसों का प्रभाव कम हो जाता है. साथ ही जो गैस बची भी रहती हैं, उन्हें कंडेंसर के जरिए निष्प्रभावी कर दिया जाता है. चूंकि गाज़ीपुर का प्लांट यूरो स्टेंडर्ड पर काम करता है. इसलिए यहां इस बात का ख्याल रखा जाता है कि चिमनी से निकलने वाले धुंए में हानिकारक गैसों की मात्रा कम हो.