जानिए कैसे 25 साल में बदल गई अयोध्या, आखिर हर गम की एक मुद्दत होती है...

जानिए कैसे 25 साल में बदल गई अयोध्या, आखिर हर गम की एक मुद्दत होती है…

रामनगरी के प्रवेश द्वार पर गहमागहमी… पैदल, साइकिल और बाइक से कापी-किताब व बैग लिए कॉलेज जाते छात्र-छात्राएं और शिक्षक… न कहीं खौफ, न रोक-टोक…। ये नजारा है बुधवार सुबह जिले के सर्वाधिक छात्र संख्या वाले साकेत पीजी कॉलेज अयोध्या का है, जहां बाबरी विध्वंस के बाद से छह दिसंबर को स्कूल-कॉलेज खोलना सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा माना जाता था। मगर अब अयोध्या में सब कुछ ‘सामान्य’ सा दिखा।जानिए कैसे 25 साल में बदल गई अयोध्या, आखिर हर गम की एक मुद्दत होती है...5 Exit Polls: कौन पहुंचेगा बहुमत के जादुई आंकड़े तक, देखिए पांच अलग-अलग आपिनियन पोल!

शौर्य दिवस और यौमे-गम के रस्मी आयोजनों के इतर पहली बार यहां प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक के सभी सरकारी व निजी कॉलेज खुले। दोनों समुदाय की छात्र-छात्राएं साथ-साथ क्लास में दिखीं। मुस्लिम मोहल्लों में न काले झंडे दिखे, न गम और खौफ का माहौल नजर आया।

बच्चे खेलकूद में मस्त थे तो युवा रोजी-रोटी के काम में। अयोध्या वासी ही नहीं बाहर से आए श्रद्धालु कहते मिले कि अब सुलह-समझौते की राजनीति और सरकारों के जुमले से निजात मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट आठ फरवरी से मामले की सुनवाई के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ है।

रामनगरी में इस बार छह दिसंबर की सुबह ऐतिहासिक और अमन-तरक्की की नई मिशाल पेश करती दिखी। भोर से ही बेरोक-टोक संत-गृहस्थों का सरयू स्नान, पूजा-पाठ, घंटे-घड़ियाल के साथ भोर की आरती अपनी रौ में दिखी। साकेत कॉलेज परिसर का नजारा युवा पीढ़ी की नई सोच का परिचायक था।

बीए के नूरैन व वसीम का कहना था कि घर से निकलते समय न अब्बू ने टोका, न ही मोहल्ले के लोगों ने छह दिसंबर की याद दिलाई। वैसे भी अब सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ है, ऐसे में राजनीति खत्म होनी चाहिए।

अंगूरीबाग के हिमांशु, देवकाली के उत्तम सिंह व गुदड़ी बाजार के दितेन्द्र बोले कि किस छह दिसंबर की बात कर रहे हैं, हमें तो भगवान राम के स्वागत वाली दिवाली जैसा माहौल चाहिए। प्राचार्य डॉ. प्रदीप खरे कहते हैं कि जब माहौल में कोई तल्खी ही नहीं, तो प्रशासन के कहने पर हम छह दिसंबर को कॉलेज बंद करने की परंपरा क्यों निभाएं।

यहां करीब आठ हजार छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं, इसलिए पुलिस वालों ने चिंता जरूर जताई थी। लेकिन कॉलेज खोलने का निर्णय लिया और देखिए माहौल कितना बेहतर है। दोनों समुदाय के बच्चे कक्षाओं में साथ-साथ पढ़ रहे हैं। अब मंदिर-मस्जिद के विवाद से आगे नई पीढ़ी अयोध्या के विकास और रोजगार की जरूरत समझती है।

कॉलेज आए अध्यापक डॉ. मिर्जा शहाब शाह कहते हैं कि किसी भी गम की एक मुद्दत होती है। दोनों समुदाय के धर्मगुरुओं को यह विवाद मिलकर सुलझाना चाहिए नहीं तो अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार हो। 

अयोध्या में महाराजा इंटर कॉलेज में करीब तीन हजार बच्चे पढ़ते हैं। कक्षा 11सी के 103 बच्चों में 77 उपस्थित थे। यही उपस्थिति लगभग सभी कक्षाओं में थी। रानोपाली से आए 11वीं के छात्र मो. इमरान ने कहा कि कहीं नहीं लग रहा कि छह दिसंबर है। कॉलेज आते समय किसी ने टोका भी नहीं।

कक्षा 10 में पढ़ने वाले हलकारा का पुरवा निवासी मो. तनवीर और कक्षा नौ में पढ़ने वाले बाबू बाजार के मो. कैफ व हलकारा का पुरवा के गुलाम रब्बानी कहते हैं कि पढ़ाई से ही भविष्य बनेगा, छह दिसंबर को लेकर क्या होगा? कॉलेज के उप प्रधानाचार्य चंदेश्वर पांडेय कहते हैं कि छह दिसंबर 1992 के बाद पहली बार अयोध्या के सभी स्कूल-कॉलेज खुले हैं। उपस्थिति भी बेहतर है।

यह साबित करता है कि राम मंदिर और बाबरी मस्जिद पर तनाव और उन्माद का अब कोई स्थान नहीं है। अयोध्या में मधुसूदन विद्या मंदिर, समाजसेवा इंटर कॉलेज, तुलसी कन्या इंटर कॉलेज, शिवदयाल जायसवाल सरस्वती इंटर कॉलेज सहित माध्यमिक व बेसिक शिक्षा परिषद के सभी स्कूल खुले रहे।

मंदिर-मस्जिद से ऊपर रोजी-रोटी का सवाल

मुस्लिम बाहुल्य मोहल्लों में भी प्राइमरी तक के स्कूल खुले थे। कटरा प्राइमरी स्कूल के पास बच्चे कबड्डी तो लड़कियां भी खेलने में मस्त थीं। सैफ, इमरान, जीशान, नीदा, फिजा, रोजी, दिलशाद, सुहैल, शमशाद आदि बच्चों के साथ उनके परिवारीजन भी थे जो उनका हौसला बढ़ाते बेहद खुश थे।

बच्चों का कहना था कि छह दिसंबर के बारे में अब्बू ने बताया था लेकिन हमें झगड़े-फसाद से क्या लेना-देना, पढ़-लिखकर परिवार का सहारा बनना है। मुस्मिल बहुल सुटहटी मोहल्ले में दर्जन भर घरों में हनुमानगढ़ी, कनक भवन समेत अन्य मंदिरों को जाने के लिए मुस्लिम महिलाएं मालाएं गुथ रहीं थीं।

माला बना रहीं शाहिन बानो और नाजरा का कहना था कि पहले तो मोहल्ले में एक दिन पहले ही काले झंडे लग जाते थे अब ऐसा कुछ नहीं है। रोजी-रोटी पहले है, माला नहीं बिकेगी तो परिवार कैसे चलेगा? सोनी और गुड़िया का कहना था कि छह दिसंबर इतिहास है, वर्तमान में जीना सीख गए हैं।

 

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