जानिए क्यों, महाराष्ट्र में किसान आंदोलन के हर पहलू का ब्योरा

जानिए क्यों, महाराष्ट्र में किसान आंदोलन के हर पहलू का ब्योरा

महाराष्ट्र के 40 हजार किसान विधान भवन का घेराव करने के लिए मुंबई पहुंचे हैं. नासिक से शुरु हुए इस आंदोलन में पहले केवल 12 से 15 हजार किसान शामिल हुए थे, लेकिन मुंबई पहुंचते-पहुंचते इनकी संख्या 40 हजार से ज्यादा हो गई. इस आंदोलन के बीच यह सबसे बड़ा सवाल उठ रहा है कि आखिर यह आंदोलन किसान कर क्यों रहे हैं? तो आइए जानते हैं इसके पीछे की असली वजह….जानिए क्यों, महाराष्ट्र में किसान आंदोलन के हर पहलू का ब्योरा

ऐसा नहीं है कि किसानों का यह आंदोलन अचानक सुलग उठा हो. इस आंदोलन की चिंगारी उन लोकलुभावन राजनीतिक वादों और सरकारी योजनाओं का नतीजा है जो नेताओं ने किसान वोट बैंक हासिल करने के लिए एक साल पहले किये थे.

दरअसल, महाराष्ट्र के 2017-18 का आर्थिक सर्वे पर नजर दौड़ाई जाए तो आप देखेंगे कि देश के सबसे बड़े औद्योगिक राज्य की अर्थव्यवस्था बिगड़ी हुई है. इसके पीछे पहली वजह है कृषि क्षेत्र के विकास में कमी. वहीं, दूसरी वजह वो अतिरिक्त कर्ज है जिसे देवेंद्र फडणवीस सरकार ने पिछले साल जून में किसानों के कर्ज माफी के वादे को पूरा करने के लिए लिया था.

अब भले ही सरकार ने कर्ज माफ़ी के तमाम दावे किये हों, लेकिन सच तो यह है कि कर्ज माफ़ी बिना सोची समझी योजनाओं के तहत की गई. जिसके कारण किसानों को इसका लाभ नहीं मिल सका. यही नहीं राजनीतिक लोकप्रियता की चाहत में हुई कर्ज माफी ने कृषि संकट पैदा कर दिया है. जिसके कारण अर्थव्यवस्था बिगड़ती चली गई है.

कौन-कौन से राजनीतिक दल हैं शामिल…

किसानों का यह आंदोलन माकपा के किसान संगठन अखिल भारतीय किसान सभा की तरफ से निकाला गया है. इस आंदोलन को शिवसेना, महाराष्ट्र नव निर्माण सेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस (एनसीपी) समेत कांग्रेस ने समर्थन दिया है.

क्या है किसानों की मांगे…

– बिना किसी शर्त के सभी किसानों का कर्ज माफ किया जाए.

– सरकार कृषि उत्पाद को डेढ़ गुना दाम देने का वादा करे.

– स्वामिनाथन आयोग की सिफारिशों व वनाधिकार कानून पर अमल किया जाए.

– महाराष्ट्र के किसानों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराए. 

– ओलावृष्टि प्रभावित किसानों को प्रति एकड़ 40 हजार रु. का मुआवजा दिया जाए.

– किसानों का बिजली बिल माफ किया जाए.

क्या है पूरा मसला…

कृषि क्षेत्र के जानकारों की मानें तो किसानों के कर्ज़ माफ़ी के संबंध में जो सरकार ने आंकड़े पेश किए हैं उन्हें बढ़ा-चढ़ा कर बताया गया है. इसके अलावा किसान जिन जिला स्तर के बैंकों से कर्ज की आस लगाए बैठे हैं उनकी हालत खस्ताहाल है. इस तरह अब तक किसानों को लोन देने का काम दस फीसद भी अभी नहीं हो पाया है.

इंटरनेट से कर्ज माफी बनी मुश्किल…

जानकारों का मानना है कि किसानों की कर्ज़ माफ़ी की प्रक्रिया इंटरनेट के ज़रिए हो रही है. लेकिन अधिकतर किसान डिजिटल साक्षर नहीं है. ऐसे में इसका लाभ लेने में उन्हें परेशानी हो रही है. किसानों का आरोप है कि सरकार लोन देने के आंकड़ों को गलत पेश कर रही है. इसकी पड़ताल भी नहीं हुई है. किसान जब पंजीकरण केंद्र पहुंचता है तो उनका नाम लाभार्थियों की सूची में शामिल नहीं होता है.

क्या उचित समर्थन मूल्य (MSP) देने से हो जाएगा हल ?

केंद्र सरकार ने बजट में उचित समर्थन मूल्य देने की बात जरूर कही थी, लेकिन वास्तविकता में देखा जाए तो क्या किसानों की समस्या का समाधान उन्हें उचित समर्थन मूल्य देने से होगा? इस बारे में कृषि क्षेत्र के जानकार सुमेध बनसोड बताते हैं कि, “सिर्फ़ न्यूनतम समर्थन मूल्य दे देना काफी नहीं. उन्हें मदद चाहिए. बदलते मौसम के साथ-साथ राज्य सरकार के फ़ैसलों की मार किसानों पर पड़ रही है. किसानों की मांग है कि उन्हें स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशों के मुताबिक, खेती में होने वाले खर्चे के साथ-साथ उसका पचास फीसदी और दाम समर्थन मूल्य के तौर पर मिलना चाहिए.”

कृषि विकास दर कम होने का कैसा असर?

राज्य के आर्थिक सर्वे की बात करें तो बीते सालों में देश की कृषि विकास दर कम हुई है. इसे लेकर किसानों का आरोप है कि जो भी महत्वपूर्ण फ़ैसले होते हैं वो केंद्र सरकार करती है. चाहे वह न्यूनतम समर्थन मूल्य हो या आयात-निर्यात के फ़ैसले भी. अब इसका असर दिखने लगा है. खेती से होने वाली आय 44 फीसदी तक कम हो गई है. कपास, अनाज और दलहन से होने वाली आय दिन प्रतिदिन कम हो रही है.

English News

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com