तीर्थयात्रा पर जाने से पहले जान लीजिए…

18 अप्रैल को अक्षय तृतीय के साथ ही चारधाम तीर्थयात्रा का क्रम शुरू हो जाएगा। हरिद्वार से लेकर चार धाम की ओर श्रद्धालुओं के कदम बढ़ने लगेंगे। लेकिन क्या चार धाम घूमकर आ जाने से तीर्थयात्रा पूरी हो जाएगी, क्या तीर्थयात्रा का फल श्रद्धालुओं को मिल जाएगा। दरअसल यात्रा से पहले यह समझना होगा कि आप यात्रा कर रहे हैं या तीर्थयात्रा? 

यात्रा और तीर्थयात्रा में बहुत फर्क है। जब आप किसी तीर्थ स्थान पर जाते हैं और उस स्थान से बिना आत्मिक जुड़ाव के लौट आते हैं तो यह सिर्फ आपके लिए यात्रा रह जाती है। लेकिन जब आप आत्मिक रूप से उस स्थान से जुड़ जाते हैं तो तीर्थ भी आपकी आत्मा में बस जाता है और आपकी यात्रा तीर्थयात्रा बन जाती है। 

तीर्थक्षेत्र में फैले हुए अनेकानेक ऐतिहासिक-पौराणिक स्थानों को देखकर जब आप उनकी प्रेरणाओं से लाभान्वित होने का अवसर प्राप्त करते हैं तो आपकी यात्रा सफल होती है। तीर्थ जीवन्त हैं, वहाँ की गतिविधियाँ तथा प्रेरणाएँ प्राणवान हैं तो उस वातावरण का प्रभाव भी आप महसूस करते हैं। यदि तीर्थ संचालक मनीषी, मुनि और तपस्वी ऋषि हैं तो उनके परामर्श, मार्गदर्शन एवं अनुदान वरदान का लाभ भी लेते हैं, साथ ही इस अवधि में ऐसी साधनाएं-तपश्चर्याएं करने का सुयोग बना पाते हैं तो तीर्थ यात्रा का उद्देश्य सफल होता है। 

इस तरह के अनेकों प्रत्यक्ष-परोक्ष लाभ हैं जो तीर्थयात्री के लिए उस प्रकरण में लगाए गए श्रम, समय एवं धन की तुलना में असंख्य गुणा लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं। यह तथ्य प्राचीन काल में सर्वविदित थे फलस्वरूप तीर्थ-यात्रा पर जाने वालों का भावभरा स्वागत होता था। इस प्रयास को दूरदर्शितापूर्ण समझा जाता और उसकी खूब प्रशंसा की जाती थी। 

यही हैं वे तथ्य हैं जिन्हें ध्यान में रखते हुए तत्वदर्शी ज्ञानियों ने तीर्थ प्रक्रिया को जन्म दिया। उनके निर्माण में साधन सम्पन्नों को उत्साहित किया। साथ ही जनसाधरण को वहां पहुंचने के पुण्य फलदायक बताकर तीर्थयात्रा के लिए प्रेरित किया। 

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