दलित और आदिवासी सूबे में परंपरागत रूप से कांग्रेस के साथ रहे हैं और इनके लिए आरक्षित 51 सीटों में से 39 पर कांग्रेस को मिली जीत..

एससी की 36 में से 24 सीटें उसे मिली तो एसटी के लिए आरक्षित सभी 15 सीटें कांग्रेस की झोली में आयी।कर्नाटक में बड़ी जीत के साथ सत्ता हासिल करने के बाद कांग्रेस के सामने सूबे के अलग-अलग जातीय-सामाजिक समूहों को सरकार में हिस्सेदारी देकर संतुलन बनाने की बड़ी चुनौती सामने है। लंबे अर्से बाद चुनाव में दिल खोलकर कांग्रेस का साथ देने वाले लिंगायत समुदाय की अब उससे कहीं ज्यादा राजनीतिक अपेक्षाएं हैं तो पार्टी के परंपरागत मजबूत आधार रहे दलित और आदिवासी वर्ग भी सरकार में अपना बड़ा हिस्सा चाहता है।

कांग्रेस के पक्ष में गोलबंद मुस्लिम समुदाय

वहीं इस चुनाव में जेडीएस के गढ़़ में भी उसको छोड़कर कांग्रेस के पक्ष में गोलबंद हुआ मुस्लिम समुदाय भी सूबे की सत्ता में अपनी आवाज एक बार फिर से देखना-सुनना चाहता है। इन तमाम वर्गों की अपेक्षाओं और सत्ता में भागीदारी का दबाव ही है कि कर्नाटक के मनोनीत मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार को मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने वाले चेहरों पर चर्चा के लिए शनिवार को शपथ से पहले शुक्रवार को गहन मंत्रणा के लिए दिल्ली की दौड़ लगानी पड़ी।

लिंगायतों का कांग्रेस को समर्थन

कर्नाटक के अलग-अलग सामाजिक समूहों के साथ इन समुदायों के अपने क्षत्रपों को साधना कांग्रेस के लिए अब इसलिए भी चुनौतीपूर्ण हो गया है कि नई सरकार में डीके शिवकुमार ही एकलौते उपमुख्यमंत्री होंगे। सूबे के मुख्यमंत्री बन रहे सिद्धारमैया के बाद दूसरे नंबर पर उनका ही राजनीतिक रसूख है यह सुनिश्चित करने के लिए शिवकुमार ने बाकी क्षत्रपों के लिए डिप्टी सीएम का रास्ता भी बंद कर दिया है। जबकि कांग्रेस को कर्नाटक के इस चुनाव में करीब 33 साल बाद लिंगायतों ने इतना भरपूर समर्थन दिया है कि भाजपा दिग्गज लिंगायतों के सबसे बड़े नेता येदियुरप्पा के गढ़़ में भी पार्टी को बड़ी जीत मिली है।

सरकार में हिस्सेदारी देने का भी दबाव

ऐसे में कांग्रेस के सबसे बड़े लिंगायत नेता एमबी पाटिल कम से कम डिप्टी सीएम की उम्मीद कर रहे थे पर अब इसका विकल्प नहीं है। इतना ही नहीं लिंगायत समुदाय के कई प्रमुख नेताओं को सरकार में हिस्सेदारी देने का भी पार्टी पर दबाव है जिसमें भाजपा से आए लक्ष्मण सावदी जैसे नेता भी शामिल हैं। इसी तरह जगदीश शेटटार के चुनाव हार जाने के बाद भी कांग्रेस के सामने भविष्य की राजनीति को देखते हुए उन्हें सम्मान देने पर गौर करना पड़ रहा है। हालांकि शिवकुमार को डिप्टी सीएम बनाकर वोक्कालिगा समुदाय को पार्टी जरूर संदेश देने में कामयाब रहेगी।

जीत में मुस्लिम वर्ग की बड़ी भूमिका

कांग्रेस की जीत को बड़ा बनाने में मुस्लिम वर्ग की गोलबंदी की भूमिका भी मानी जा रही है और खासकर पूर्व पीएम देवेगौड़ा के प्रभाव वाले पुराने मैसूर क्षेत्र में जिस तरह जेडीएस का आधार ध्वस्त हुआ है उसमें इनकी अहम भूमिका है। इस क्षेत्र में मुस्लिम वर्ग देवेगौड़ा की पार्टी से जुड़ा रहा है मगर चुनाव से पहले सीएम इब्राहिम जैसे कांग्रेस के सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे को जेडीएस में शामिल करने का भी असर नहीं हुआ। कर्नाटक और विशेषकर पुराने मैसूर इलाके में मुसलमानों को कांग्रेस के पक्ष में गोलबंद करने में अहम भूमिका निभाने वाले पार्टी के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री नसीर अहमद के अनुसार जेडीएस से लोगों को विमुख करने में काफी मशक्कत करनी पड़ी।

जेडीएस के गढ़ में भी कांग्रेस को बड़ा समर्थन

हर जिले में जमात-उल-हिंद और मिली कांउसिल के लोगों के जरिए इस लक्ष्य के साथ काम किया गया कि मुसलमानों के लिए वोट के हथियार के अलावा कोई विकल्प नहीं है और तभी जेडीएस के गढ़ में भी कांग्रेस को बड़ा समर्थन मिला। अब अल्पसंख्यकों की सत्ता में हिस्सेदारी के सवाल सूबे में कैबिनेट मंत्री रह चुके नसीर अहमद कहते हैं कि जाहिर तौर पर यह वर्ग भी सरकार में अपनी एक मुखर आवाज की अपेक्षा कर रहा है।

दलित और आदिवासियों का कांग्रेस को साथ

दलित और आदिवासी सूबे में परंपरागत रूप से कांग्रेस के साथ रहे हैं और इनके लिए आरक्षित 51 सीटों में से 39 पर कांग्रेस को मिली जीत इसे साबित भी करती है। एससी की 36 में से 24 सीटें उसे मिली तो एसटी के लिए आरक्षित सभी 15 सीटें कांग्रेस की झोली में आयी। इसीलिए कर्नाटक में कांग्रेस के एससी के बडे़ चेहरे परमेश्वर ने दूसरे डिप्टी सीएम का रास्ता बंद हो जाने को लेकर अपनी नाखुशी जाहिर की।

सभी के बीच संतुलन बनाना आसान नहीं

एससी वर्ग के एक अन्य बड़े चेहरे केंद्रीय मंत्री रहे मुनियप्पा भी इस बार विधानसभा में पहुंचे हैं और सरकार में प्रभावशाली भूमिका की ओर उनकी निगाहें हैं। इतना ही नहीं अन्य छोटे-छोटे समूहों की भी अपनी अपेक्षाएं हैं और ऐसे में कांग्रेस के सामने कर्नाटक की सत्ता में सभी वर्गों के बीच संतुलन बनाने की राह आसान नहीं है।
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