बृहस्पतिवार को दिल्ली का एक्यूआई 469 जबकि गाजियाबाद व नोएडा का एक्यूआई अधिकतम 500 के स्तर पर रिकॉर्ड किया गया। मौसम अगर नहीं सुधरा तो खतरा अभी टलेगा नहीं। मौसम विभाग के मुताबिक, हवा की गति काफी धीमी रहेगी और धुंध भी सुबह मध्यम श्रेणी का रह सकता है।
ऐसे में हवा की स्थिति में सुधार की गुंजाइश कम है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की टास्क फोर्स ने इस स्थिति को देखते हुए दिल्ली-एनसीआर में गंभीर वायु गुणवत्ता के दौरान प्राधिकरणों से प्रतिबंधों को लागू करने के लिए कहा है।
इनमें प्रभावी प्रदूषक तत्व पीएम 2.5 है। यह सामान्य मानक 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से पांच गुना ज्यादा 300 यूनिट के पार दर्ज किया जा रहा है। सीपीसीबी के वैज्ञानिक डॉ डी साहा ने कहा कि मौसम पर हमारा वश नहीं है।
इस वक्त प्रदूषण के लिए मौसम उत्प्रेरक का काम कर रहा है। दिल्ली समेत एनसीआर को ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रैप) के तहत पहले से सम-विषम जैसी योजना को लागू करने के लिए तैयार रहने को कहा जा चुका है। मिक्सिंग हाईट और मंद हवा व तापमान में गिरावट के कारण प्रदूषण और बढ़ने के आसार हैं।
दिल्ली और यूपी में आनंद विहार, गाजियाबाद में वसुंधरा, नोएडा में सेक्टर-125 और डीटीयू, पंजाबी बाग, पश्चिमी दिल्ली, आरके पुरम, दक्षिणी दिल्ली में हवा की गुणवत्ता का सूचकांक 301 से 500 के बीच रिकॉर्ड की गई। यह एक्यूआई बहुत खराब से गंभीर स्थिति को दर्शाता है।
स्थान एक्यूआई
दिल्ली 469
गाजियाबाद 500
नोएडा 500
गुरुग्राम 346
नोट : सीपीसीबी के मुताबिक विभिन्न शहरों का एक्यूआई शाम 4 बजे जारी किया गया है। 301 से 400 के बीच का एक्यूआई बहुत खराब और 401 से 500 के बीच का एक्यूआई गंभीर श्रेणी को दर्शाता है।
बेअसर और काफी खर्चीला है एंटी स्मॉग गन : सीपीसीबी
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के वैज्ञानिकों ने कहा कि एंटी स्मॉग गन औद्योगिक व निर्माण गतिविधि के दौरान होने वाले धूल प्रदूषण को कुछ हद तक कम कर सकता है लेकिन यह काफी ऊंचाई पर जमा हुए प्रदूषक तत्वों को जमीन पर बिठाने में नाकामयाब है। यह सिर्फ 30 मीटर तक ही बौछार कर सकता है।
उस धुएं में अन्य जानलेवा गैसों का मिश्रण भी होता है, जो गर्भवती महिलाओं को सीधे प्रभावित करता है। उनके अनुसार, प्रदूषण के कण सांस के जरिये गर्भवती महिला के रक्त तक पहुंचते हैं, जहां से ये पूरे शरीर में दौड़ने लगते हैं। यही वजह है कि पैदा होने से पहले ही शिशु बीमारी के जाल में फंसा जाता है।
उधर, फोर्टिस के डॉ विकास मौर्या व कालरा अस्पताल के निदेशक डॉ आरएन कालरा ने कहा कि दुनियाभर में प्रदूषण को लेकर तरह-तरह के शोध सामने आ रहे हैं। वहां की सरकारें इन शोधों के आधार पर बचाव कार्य में जुटी हैं, लेकिन भारत में अभी भी प्रदूषण को एक नई बीमारी के रूप में देखा जा रहा है। यहां सरकारें प्रदूषण के खिलाफ जागरूकता फैलाने में जुटी हैं, जबकि जरूरत जमीनी स्तर पर काम करने की है।
नवजात शिशुओं में दृश्यता होती है कम
दरियागंज स्थित आई-7 के निदेशक डॉ संजय चौधरी ने बताया कि कई बार कमजोर दिल के साथ-साथ नवजात शिशु में दृश्यता न के बराबर होने के मामले भी सामने आते हैं। पांच वर्षों के भीतर दिल्ली में ऐसे केस तेजी से बढ़े हैं। उनके क्लीनिक में 0 से 5 वर्ष तक की आयु में दृश्यता कम होने के हर दिन 30 से 40 नए केस देखने को मिल रहे हैं।