सिक्कों की खनखनाती दुनिया में अब नए मूल्य वर्ग का सिक्का जुड़ने जा रहा है। यह सिक्का न केवल डिजाइन में अलग होगा बल्कि थीम भी आधुनिक होगी।सिक्कों की खनखनाती दुनिया में अब नए मूल्य वर्ग का सिक्का जुड़ने जा रहा है। यह सिक्का न केवल डिजाइन में अलग होगा बल्कि थीम भी आधुनिक होगी।  दो धातुओं वाले इस सिक्के की डिजाइन पर काम शुरू हो गया है। माना जा रहा कि इस साल दिसंबर तक यह सिक्का बाजार में आ जाएगा। अभी देश में तकरीबन 26 हजार करोड़ रुपये के सिक्के चलन में हैं।  सरकार पहली बार 20 रुपये के सिक्के को वैध करेंसी के तौर पर लाने की तैयारी कर रही है। अभी तक इस मूल्य वर्ग के सिक्के स्मारक सिक्के के रूप में ही जारी हुए हैं।  दरअसल, दस रुपये के नए नोटों की छपाई सीमित है और बीस रुपये के नोट की छपाई बंद है। बाजार में दस और बीस रुपये के पुराने नोट अधिक हैं।  इस समय तकरीबन 80 हजार करोड़ रुपये कीमत के पांच से बीस रुपये के मूल्य वर्ग वाले 57 अरब नोट चलन में हैं। इस समय 50 हजार करोड़ रुपये से अधिक के दस और बीस रुपये के गंदे व फटे-गले नोट हैं।  चूंकि क्लीन नोट पॉलिसी के तहत ऐसे नोट आरबीआइ के पास वापस जमा होंगे। ऐसे में चलन में पर्याप्त करेंसी बनाए रखने के लिए छोटे नोट की सप्लाई करनी होगी।  रिजर्व बैंक को इसके लिए करीब 40 अरब नोट छापने होंगे। इसमें करीब सात-आठ हजार करोड़ रुपये का खर्च आएगा। नोट बमुश्किल पांच साल चल पाते हैं।  ऐसे में प्रचलन में अच्छे नोट बनाए रखने के लिए जल्दी-जल्दी बदलने होते हैं। इसके विपरीत सिक्का लंबे समय चलन रहता है।  चूंकि दस रुपये का सिक्का बाजार में बहुतायत में है इसलिए आरबीआइ ने बीस रुपये का सिक्का निकालने का निर्णय लिया गया है।

दो धातुओं वाले इस सिक्के की डिजाइन पर काम शुरू हो गया है। माना जा रहा कि इस साल दिसंबर तक यह सिक्का बाजार में आ जाएगा। अभी देश में तकरीबन 26 हजार करोड़ रुपये के सिक्के चलन में हैं।

सरकार पहली बार 20 रुपये के सिक्के को वैध करेंसी के तौर पर लाने की तैयारी कर रही है। अभी तक इस मूल्य वर्ग के सिक्के स्मारक सिक्के के रूप में ही जारी हुए हैं।

दरअसल, दस रुपये के नए नोटों की छपाई सीमित है और बीस रुपये के नोट की छपाई बंद है। बाजार में दस और बीस रुपये के पुराने नोट अधिक हैं।

इस समय तकरीबन 80 हजार करोड़ रुपये कीमत के पांच से बीस रुपये के मूल्य वर्ग वाले 57 अरब नोट चलन में हैं। इस समय 50 हजार करोड़ रुपये से अधिक के दस और बीस रुपये के गंदे व फटे-गले नोट हैं।

चूंकि क्लीन नोट पॉलिसी के तहत ऐसे नोट आरबीआइ के पास वापस जमा होंगे। ऐसे में चलन में पर्याप्त करेंसी बनाए रखने के लिए छोटे नोट की सप्लाई करनी होगी।

रिजर्व बैंक को इसके लिए करीब 40 अरब नोट छापने होंगे। इसमें करीब सात-आठ हजार करोड़ रुपये का खर्च आएगा। नोट बमुश्किल पांच साल चल पाते हैं।

ऐसे में प्रचलन में अच्छे नोट बनाए रखने के लिए जल्दी-जल्दी बदलने होते हैं। इसके विपरीत सिक्का लंबे समय चलन रहता है।

चूंकि दस रुपये का सिक्का बाजार में बहुतायत में है इसलिए आरबीआइ ने बीस रुपये का सिक्का निकालने का निर्णय लिया गया है।