(FILES) This file photo taken on December 20, 2019 shows Russian President Vladimir Putin (R) followed by Belarusian President Alexander Lukashenko (L), entering a meeting hall during the Supreme Eurasian Economic Council, in Saint Petersburg. - Belarusian President Alexander Lukashenko discussed the protests shaking his country with Russian counterpart Vladimir Putin on August 15, Belarusian state news agency Belta reported. (Photo by Mikhail KLIMENTYEV / Sputnik / AFP)

बेलारूस में तानाशाह लुकाशेंको और रूस में पुतिन की बढ़ी मुसीबत, विरोध जारी

रूस और बेलारूस (Russia And Belarus) में वर्षों से सत्ता में जमे तानाशाहों के खिलाफ असंतोष पूरे उफान पर है. ये दोनों ही देश पूर्व सोवियत संघ का हिस्सा रहे हैं. बेलारूस में चुनाव का परिणाम आने के बाद एलेक्जेंडर लुकाशेंको (alexander lukashenko) छठी बार लगातार राष्ट्रपति पद पर आसीन हुए हैं. बेलारूस के विपक्षी दल जिसका नेतृत्व स्वेतलाना कर रही हैं, का कहना है कि लुकाशेंको ने चुनाव जीतने के लिए ठगी की है. पु​लाशेंको के खिलाफ बेलारूस की राजधानी मिंस्क में लाखों लोग सड़कों पर उतर आए हैं और लगातार लुकाशेंको से इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. वहीं रूस में विपक्षी नेता अलेक्सी नेवेल्नी को जहर दिए जाने की आशंका के बाद राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) के खिलाफ लोगों में गुस्सा भर रहा है. रूस के राष्ट्रपति पुतिन के चेहरे पर शिकन दिखने लगी है.

नेवेलनी के इलाज के लिए एनओसी में जानबूझ कर देरी का आरोप

नेवेल्नी के समर्थकों ने आरोप लगाया कि उन्हें चाय में विष देकर पिला दिया गया है और उनके कोमा में आने के बाद इलाज के लिए जर्मनी ले जाने में एनओसी देने में जानबूझ कर ​देरी की गई. वे अभी जर्मनी में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं. बेलारूस की सड़कों पर आकर प्रदर्शनकारियों ने चुनावी धांधली के खिलाफ आवाज उठाई है. कई हफ्तों से चल रहे प्रदर्शन की तीव्रता को देखते हुए यह सहज विश्वास हो चला है कि वहां चुनाव में लुकाशेंको ने जरूर धांधली करवाई होगी. फिलहाल बेलारूस की यह स्थिति पिछली सदी के वर्ष 1989 के बगावत की याद दिलाने लगी है.

पुतिन के समर्थकों ने चांदी काटी
रूस और बेलारूस में दोनों ही नेता सोवियत संघ के विघटन के बाद पैदा हुई अराजकता के बाद सत्ता में आए थे. पुतिन और लुकाशेंको ने जनता को अराजकता से राहत दिलाने का वादा करके सत्ता में आए थे. अब वे प्रोपेगंडा, दमन और अपने समर्थकों को संरक्षण देकर सत्ता में बने हुए हैं. पुतिन के सभी हथकंडे पुराने पड़ चुके हैं. लुकाशेंको ने सोवियत संघ जैसी स्थिति जारी रहने की बात कही थी. पुतिन के सत्ता संभालने के तत्काल बाद तेल के मूल्य बढ़ गए. इसका सामान्य लोगों को फायदा तो हुआ, लेकिन उनके समर्थकों ने चांदी काटी.

सोवियत संघ की राह पर चल रहा बेलारूस

बेलारूस पूर्व सोवियत संघ की तर्ज पर चल रहा है. देश से पोटाश का काफी ज्यादा निर्यात होता है. वहीं रूस से रिफाइन किए गए पेट्रोलियम पदार्थों का निर्यात किया जाता है. रूस की अर्थव्यवस्था में अधिक खुलापन है. हालांकि रूस में इंडस्ट्री और फाइनेंस सेक्टर पर पुतिन के भरोसेमंद पूंजीपतियों का कब्जा है. इसके चलते प्रतिस्पर्धा और गतिशीलता का अभाव साफ दिखता है. पुतिन पेट्रो पदार्थों से अलग हटकर कुछ नहीं कर पाए हैं. तेल की कीमतों में गिरावट और कोरोना वायरस के प्रकोप की दोहरी मार ने अर्थव्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर दिया है.

जारशाही का ढोल पीटते हैं पुतिन

पुतिन ने पिछले दो दशक से जारशाही और सोवियत संघ के पुराने गौरव का काल्पनिक ढोल पीट रखा है. उनका शासन गलत सूचनाएं फैलाने में माहिर है. उसने इंटरनेट पर ट्रोलर्स की फैक्ट्री खोल रखी है। एक टिप्पणीकार का कहना है, पुतिन ने मीडिया में ऐसा माहौल रचा है, जहां कुछ भी सच नहीं है और सब कुछ संभव है. इसके बावजूद पुतिन, नेवेलनी के आगे थके हुए लगते हैं. नेवेलनी के लोकप्रिय यूट्यूब वीडियो लोगों के बीच हताशा की झलक दिखाते हैं. उन वीडियो में पुतिन सरकार के भ्रष्टाचार का सही तस्वीर पेश किया गया है.

लुकाशेंको ने अपने उत्तराधिकारी के बतौर अभी हाल में अपने 15 साल के बेटे को फौजी पोशाक में पेश किया है. वहीं पुतिन आसानी से अपना उत्तराधिकारी तैयार नहीं कर सकते हैं, क्योंकि इससे उनके गुट में अंसतोष पैदा होगा. पुतिन ने रूस के संविधान में बदलाव किया है ताकि वे वर्ष 2036 तक खुद ही सत्ता पर बने रहेंगे. पुलाशेंको पिछले सप्ताह एक हेलीकॉप्टर में घूमते और एके-47 गन दिखाते हुए अपना वीडियो जारी करवाया है. उन्होंने यह बयान भी दिया था कि हर हाल में वे अपने खिलाफ हो रहे विद्रोह को कुचल कर रख देंगे.

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