#बड़ी खबर: गणतंत्र दिवस की परेड में पहली बार होंगी ये बातें...

#बड़ी खबर: गणतंत्र दिवस की परेड में पहली बार होंगी ये बातें…

राजधानी दिल्ली के राजपथ पर जनता की वह ताकत दिखाई देगी, जिस पर देश के हर नागरिक को नाज है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में लागू हुआ हमारा संविधान को सबसे अनूठे और बड़े संविधान के सरीखे माना जाना जाता है।#बड़ी खबर: गणतंत्र दिवस की परेड में पहली बार होंगी ये बातें...क्या है खास?

गणतंत्र दिवस की परेड में पहली बार आसियान देशों के 10 राष्ट्र प्रमुख एक साथ राजपथ पर भारतीय संस्कृति की समृद्ध परंपरा और विकास रूबरू होंगे। इस दौरान आसियान देशों के कलाकार एक साथ मिलकर ‘रामायण’ का मंचन करेंगे। खास तो यह भी है कि राजपथ पर साबरमती आश्रम की झांकी भी इसकी सौ वर्ष की कहानी को बयां करती हुई नजर आएगी। इसके अलावा दुनिया की पहले नाट्यशाला की झांकी भी इसमें शामिल की जाएगी। आसियान देशों की झांकी में सीता स्वयंवर, राम वनवास, अशोक वाटिका, समुद्र पर सेतु का निर्माण, राम-रावण युद्ध, श्रीराम के बाणों की टंकार और हनुमान द्वारा आकाश मार्ग से संजीवनी बूटी लाने के प्रसंग जहां चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित होंगे।

मिलेगी ‘खेलो इंडिया’ की झलक

लंबी कोशिश के बाद इस बार की गणतंत्र दिवस परेड में खेल मंत्रालय की झांकी नजर आएगी। मंत्रालय ने इस झांकी को अपनी बहुप्रतीक्षित योजना खेलो इंडिया को समर्पित किया है। खास बात यह है कि इस झांकी में दद्दा ध्यानचंद, सचिन तेंदुलकर, अभिनव बिंद्रा, सुशील कुमार और खुद एथेंस ओलंपिक रजत पदक विजेता खेल मंत्री राज्यवर्धन राठौड़ समेत सभी व्यक्तिगत ओलंपिक पदक विजेताओं के फोटोग्राफ होंगे। मंत्रालय की गणतंत्र दिवस परेड में अंतिम बार झांकी 2013 में निकली थी, जहां लंदन ओलंपिक के प्रदर्शन को प्रदर्शित किया गया था। मंत्रालय की 2010 की झांकी को कॉमनवेल्थ गेम्स के मस्कट शेरा के चलते जमकर वाहवाही मिली थी।

पांचवां स्तंभ बना सोशल मीडिया

मीडिया को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में देखा जाता है, अब इसका एक और प्रहरी आया गया है। वह है सोशल मीडिया, जो आमजन की आवाज बनकर तेजी उभरी है। बिना किसी रोकटोक यूजर्स की भावनाएं आभासी दुनिया में तैर रही हैं। हालांकि कुछ लोग इस आजादी को गलत तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं। पिछले दिनों दुनिया के सबसे बड़े सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक ने भी यह बात स्वीकार की कि अगर इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग होता रहा तो आने वाले दिनों में यह लोकतंत्र के लिए खतरा साबित हो सकता है। 

गणतंत्र-दिवस की स्वर्णिम किरणों को मन में भर लो! आंखों में समता झलके स्नेहभार सागर छलके पशुता सारी ढह जाए जन-जन में गरिमा आए गणतंत्र दिवस की आस्था कण-कण में मुखरित कर दो!
-डॉ. महेंद्र भटनागर

ऐतिहासिक पल

1947: 
15 अगस्त को अंग्रेजी शासन से देश आजाद हुआ था। तब हमारे पास कोई स्थायी संविधान नहीं था।
04 नवंबर को संविधान का पहला ड्राफ्ट प्रस्तुत किया गया।
1949: 
26 नवंबर को निर्मात्री समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर ने ‘संविधान सभा के अध्यक्ष’ एवं राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को संविधान की मूल प्रति सौंपी।
1950: 
24 जनवरी को हिंदी और अंग्रेजी दो संस्करणों में राष्ट्रीय सभा द्वारा भारतीय संविधान का पहला ड्राफ्ट हस्ताक्षरित हुआ।
26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस को भारतीय संविधान अस्तित्व में आया।

परेड

गणतंत्र दिवस पर होने वाली परेड मुख्य आकर्षण का केंद्र होती है। इसकी शुरुआत प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के कार्यकाल के दौरान सन 1995 से हुई। इससे पहले 1950-54 तक कोई निश्चित स्थान तय नहीं था। इसलिए गणतंत्र दिवस का उत्सव नेशनल स्टेडियम, रामलीला मैदान एवं लाल किले पर मनाया जाता था। परेड के दौरान प्रत्येक राज्य की झांकी की रफ्तार पांच किमी प्रति घंटा होती है, ताकि दर्शक उसे ठीक से देख सकें। साथ ही हर झांकी के साथ एक जवान संगीत के साथ तालमेल बैठाकर परेड करता है। तकरीबन 1200 से ज्यादा विद्यार्थी अपनी कलां का प्रदर्शन इस परेड के दौरान करते हैं।

मेहमान

इस बार का गणतंत्र दिवस बेहद अहम है क्योंकि इस उत्सव पर आसियान देशों के राष्ट्राध्यक्ष बतौर अतिथि आ रहे हैं। परेड के मुख्य अतिथि आकर्षण का केंद्र रहते हैं। अलग-अलग देशों के प्रथम नागरिकों को समारोह में बुलाया जाता है। प्रथम परेड में मुख्य अतिथि पाकिस्तान के गवर्नर-जनरल मालिक गुलाम मुहम्मद थे। सन 2015 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा मेहमान रहे।

पांच किमी से लंबा है परेड का रास्ता

गणतंत्र दिवस पर होने वाली परेड का रास्ता पांच किलोमीटर से भी ज्यादा लंबा होता है। यह राष्ट्रपति भवन के पास रायसीना हिल से शुरू होकर इंडिया गेट से होते हुए लाल किले तक जाती है।

वो धुन जो गांधी जी को पसंद थी

गणतंत्र दिवस के तीन दिवसीय उत्सव के समापन के दौरान ‘बीटिंग रीट्रीट’ गीत की धुन ‘अबाईड विद मी’ बजाई जाती है। सन 1955 से ही इसे ही इसे अनिवार्य रूप से बजाया जा रहा है। यह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रिय गीत था।

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