#बड़ी खबर: ये हैं वो तीन बड़े फैक्टर जहां ऐन वक्त पर भरपाई कर भाजपा ने बचाई जान...#बड़ी खबर: ये हैं वो तीन बड़े फैक्टर जहां ऐन वक्त पर भरपाई कर भाजपा ने बचाई जान...

#बड़ी खबर: ये हैं वो तीन बड़े फैक्टर जहां ऐन वक्त पर भरपाई कर भाजपा ने बचाई जान…

गुजरात चुनावों में भाजपा की लगातार छठी जीत पर बेशक पार्टी और पार्टी नेताओं की वाहवाही का दौर जारी है, लेकिन भाजपा के शीर्ष स्तर पर इस मुद्दे पर जरूर मंथन हो रहा होगा।#बड़ी खबर: ये हैं वो तीन बड़े फैक्टर जहां ऐन वक्त पर भरपाई कर भाजपा ने बचाई जान...#बड़ी खबर: ये हैं वो तीन बड़े फैक्टर जहां ऐन वक्त पर भरपाई कर भाजपा ने बचाई जान...
मंथन तीन से दो अंकों तक पिछड़ने का, अपने सबसे मजबूत गढ़ में कांग्रेस की सेंध लगने का और मंथन हो रहा होगा केंद्र में भाजपा की सरकार होने के बाद भी राज्य में पार्टी की हालत खराब होने का।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो भाजपा अगर थोड़ी भी ढीली पड़ती और कांग्रेस ‌थोड़ा सा और अधिक प्रयास करती तो सत्ता की कुर्सी पर दोनों पार्टियों की अदलाबदली होना तय था। लेकिन बाजी हाथ से निकलती देख ऐन वक्त पर खुद प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने खुद ड्राइविंग सीट संभाली और हाथ से लगभग निकलती बाजी को अपने पक्ष में करने में सफल रहे।

चुनाव के दौरान तीन फैक्टर ऐसे रहे जहां ऐन वक्त पर भाजपा ने भरपाई करते हुए जैसे तैसे अपनी लाज बचाने में सफलता हासिल की, आइए डालते हैं उन्हीं फैक्टर पर एक निगाह। 

व्यापारियों की नाराजगी देख जीएसटी में तुरंत किया बदलाव
औद्योगिक राज्य होने के कारण गुजरात में जीएसटी को लेकर भाजपा लगातार फंसी हुई थी। गुजरात के कई इलाकों में जीएसटी के विरोध में जोरदार विरोध प्रदर्शन किया गया। सूरत जैसे औद्योगिक शहर में इसके चलते व्यापारियों ने कई दिन तक हड़ताल भी रखी।

व्यापारियों की इस नाराजगी को प्रधानमंत्री मोदी ने समय से भांप लिया और तुरंत वित्त मंत्री को जीएसटी की दरों में प्रभावी बदलाव के संकेत दे दिए। नतीजतन, पीएम की पहल पर वित्तमंत्री ने भी तुरंत कदम उठाते हुए व्यापारियों को बड़ी राहत दे दी। इस पहल का असर भी हुआ और व्यापारियों की नाराजगी भी कुछ हद तक कम हुई।

इसका अंदाजा सूरत के चुनाव परिणामों में भी देखने को मिला। सूरत की 16 में से 15 सीटें भाजपा के हिस्से में गई हैं। अगर यही सीटें भाजपा से कांग्रेस की तरफ पलटी होती तो भाजपा के सामने मुश्किलें खड़ी हो सकती थीं। 

सत्ता विरोधी लहर के बीच खुद को लगाया दांव पर
गुजरात में 22 साल की सत्ता विरोधी लहर का अंदाजा शायद खुद प्रधानमंत्री मोदी को भी था। पीएम जानते थे कि राज्य के नेताओं पर इसकी काट निकालना मुश्किल है। ऐसे में इस मुश्किल वक्त में प्रधानमंत्री मोदी ने खुद की छवि को ही दांव पर लगाने का फैसला किया।

उन्होंने सत्ता विरोधी लहर के बीच अपनी छवि और गुजरात में अपने किए गए कार्योँ की दुहाई देते हुए खुद के नाम पर वोट मांगे। मोदी ने भाजपा की ओर से पूरा चुनाव खुद पर ही केंद्रित रखा।

ऐसे समय में मणिशंकर अय्यर के ‘नीच’ वाले बयानों ने उनके लिए और राहत का काम किया। मोदी ने अय्यर के बचान को गुजराती अस्मिता से जोड़ते हुए अपनी इज्जत की दुहाई दी और कांग्रेस से इसका बदला लेने की अपील की। उनकी भावुक अपील ने गुजराती जनता पर असर किया और दूसरे चरण में भाजपा को जमकर वोट पड़े।

चार बड़े औद्योगिक शहरों पर पूरा फोकस ​

गुजरातों में चुनावों से पहले भाजपा को इस बात का अच्छी तरह अंदाजा हो चुका था कि राज्य के ग्रामीण और देहात इलाकों में उसके खिलाफ आक्रोश और नाराजगी के हालात हैं।

किसान जहां कर्ज माफी और फसल के अच्छे दाम न मिलने की वजह से लामबंद हो चुके हैं तो देहाती इलाकों में रोजगार न मिलने के कारण युवा वर्ग आक्रो‌शित है। ऐसे में इसकी भरपाई के लिए भाजपा ने राज्य के चार औद्योगिक शहरों, सूरत, वडोदरा, अहमदाबाद और राजकोट पर पूरा फोकस किया।

राज्य की एक चौथाई सीटें इन्हीं चारों राज्यों में हैं। भाजपा के चुनावी प्रबंधकों ने भी पूरा फोकस इन्हीं चारों शहरों में किया, जहां चारों शहरों में प्रधानमंत्री मोदी की कई रैलियां रखी गईं। इसका फायदा भी भाजपा को चुनावों में मिला, जहां पार्टी युवा और शहरी मतदाता को अपने पक्ष में करने में सफल रही। 

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