
यह इससे भी समझा जा सकता है कि प्रदेश में 1910 राजकीय विद्यालयों में 377 तथा 4531 अशासकीय विद्यालयों में से 3437 केंद्र बनाए गए जबकि 17901 में से 4243 वित्त विहीन विद्यालयों को केंद्र बनाया गया।
वित्त विहीन विद्यालय हमेशा से नकल किए लिए बदनाम रहे हैं। इन विद्यालयों में छात्र-छात्राओं को पास कराने की गारंटी के साथ ही परीक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन कराया जाता है। ऐसे में सरकार ने इस बार वित्त विहीन के बजाए राजकीय और अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालयों को परीक्षा केंद्र बनाने में तरजीह देने का फरमान जारी किया।
पहली बार ऑनलाइन परीक्षा केंद्र तय करने की व्यवस्था लागू की गई। सूत्रों के मुताबिक शुरू से ही डीआईओएस कार्यालय और यूपी बोर्ड के अफसर वित्त विहीन विद्यालयों को केंद्र बनवाने के पक्ष में रहे, क्योंकि काफी वित्त विहीन विद्यालय बड़े नेताओं और शिक्षा विभाग के अफसरों के हैं या वे किसी न किसी माध्यम से इन विद्यालयों से जुड़े हैं।
अफसरों ने सीसीटीवी कैमरे समेत अन्य मूलभूत सुविधाएं न होने का हवाला देकर ज्यादातर राजकीय और अशासकीय विद्यालयों को पहले ही बाहर कर दिया।
परीक्षा केंद्रों की सूची में ज्यादातर वित्त विहीन विद्यालय शामिल होने से भी यह स्पष्ट हो जाता है। यूपी बोर्ड सचिव नीना श्रीवास्तव भले कह रही हों कि ऑनलाइन केंद्र निर्धारण में गड़बड़ी करने वाले डीआईओएस के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी लेकिन अब ऐसा होने की उम्मीद नहीं है।
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