सत्येंद्र जैन ने बताया कि कैबिनेट से मंजूर योजना के तहत सड़क दुर्घटना में चोटिल के निजी या सरकारी अस्पताल में होने वाले इजाज का खर्च सरकार उठाएगी। इसका मकसद पीड़ित को तत्काल नजदीकी अस्पताल में इलाज सुनिश्चित करना है।
खास बात यह कि इस मामले में इस बात से फर्क नहीं पड़ेगा कि दुर्घटना का शिकार शख्स दिल्ली का है या दिल्ली से बाहर का। सिर्फ उसकी एमएलसी दिल्ली पुलिस की होनी चाहिए। सरकार का मानना है कि सरकारी गारंटी होने पर अस्पताल इलाज में ना-नुकुर भी नहीं करेगा।
इसकी बड़ी वजह यह है कि दुर्घटना के बाद का गोल्डेन आवर (हादसे का शुरुआती एक घंटा) इसी फैसले में गुजर जाता है कि पीड़ित का उपचार किसी अस्पताल में कराया जाए। ऐसे मौके पर अमूमन सरकारी अस्पताल खोजा जाता है। लेकिन अब योजना लागू होने के बाद अब निजी अस्पतालों में भी यह सुविधा मिल जाएगी।
सत्येंद्र जैन ने बताया कि बीते दो तीन महीनों से इसकी तैयारी की जा रही थी। इसमें आगजनी व एसिड के दुर्घटना पीड़ित भी शामिल होंगे। इसमें खर्च की कोई सीमा सरकार ने नहीं रखी है।
योजना के तहत कोशिश लोगों की जान बचाने की है। उन्होंने बताया कि उपराज्यपाल से मंजूरी मिलने के बाद योजना लागू हो जाएगी। उन्होंने उम्मीद जताई कि उपराज्यपाल योजना पर अपनी सहमति दे देंगे।
मॉनीटरिंग एंड इवैल्यूएशन यूनिट को कैबिनेट की मंजूरी
मंगलवार मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में वित्त व योजना विभाग के मॉनीटरिंग एंड इवैल्यूएशन यूनिट के पुनर्निर्माण को मंजूरी मिल गई। इससे सरकारी नीतियों का बेहतर तरीके से निर्माण होने के साथ इनका क्रियान्वयन भी संभव होगा।
किसको मिलेगी मदद
– दिल्ली में होने वाली दुर्घटनओं के सभी पीड़ित योजना के दायरे में होंगे
– सरकारी के साथ निजी अस्पतालों में होने वाले खर्च की अधिकतम कोई सीमा नहीं
डाटा
8000 सड़क हादसे होते हैं दिल्ली में एक साल में
15-16,000 लोग हादसों की चपेट में आते हैं।
10 फीसदी पीड़ितों की हो जाती है मौत