प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वार्षिक शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने शनिवार को दो दिवसीय चीन यात्रा पर पहुंचेंगे. उम्मीद की जा रही है कि भारत आतंकवादी नेटवर्कों के खिलाफ समन्वित क्षेत्रीय और वैश्विक कार्रवाई की वकालत करने के साथ ही व्यापार को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी संपर्क की हिमायत करेगा. भारत पिछले साल चीन के प्रभुत्व वाले एससीओ का पूर्ण सदस्य बना है. उम्मीद की जा रही है कि इसमें भारत के प्रवेश से क्षेत्रीय भूराजनीति में और व्यापार से जुड़ी वार्ताओं में आठ सदस्यों वाले इस समूह का कद और दबदबा बढ़ेगा. इसके साथ ही , इसे अखिल एशियाई चरित्र भी मिलेगा. इस तटीय शहर में पहुंचने के कुछ ही घंटे बाद मोदी चीनी राष्ट्रपति शी चिनपिंग से मिलेंगे. उम्मीद की जा रही है कि इस द्विपक्षीय मुलाकात के दौरान दोनों नेता व्यापार और निवेश के क्षेत्र में रिश्ते प्रगाढ़ करेंगे. वे समग्र द्विपक्षीय सहयोग की समीक्षा भी करेंगे. इस बैठक में मोदी और शी अनौपचारिक शिखर सम्मेलन में किए गए फैसलों के क्रियान्वयन में प्रगति की भी संभवत: समीक्षा करेंगे. अधिकारियों ने बताया कि एससीओ शिखर सम्मेलन में भारत आतंकवाद की बढ़ती चुनौती से निबटने और सदस्य देशों के बीच सुरक्षा सहयोग बढ़ाने के प्रभावी तरीके विकसित करने की पैरवी करेगा. भारत एससीओ और उसकी क्षेत्रीय आतंकवादी निरोधी संरचना (रैट्स) के साथ सुरक्षा संबंधित सहयोग बढ़ाने का इच्छुक है, रैट्स सुरक्षा और रक्षा से जुड़े मुद्दों पर विशेष रूप से काम करती है. अधिकारियों ने बताया कि भारत एससीओ के सदस्य देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं के महत्व पर भी ध्यान केन्द्रित करना चाहेगा. भारत संसाधनों से मालामाल मध्य एशियाई देशों तक पहुंच पाने के लिए चाबहार बंदरगाह परियोजना और अंतरराष्ट्रीय उत्तर - दक्षिण परिवहन गलियारा जैसी संपर्क परियोजनाओं पर जोर दे रहा है. सूत्रों के मुताबिक, भारत का जोर अंतिम दस्तावेज में सरहद पार आतंकवाद पर अपनी चिंताओं को शामिल करने पर होगा. भारत विभिन्न बहुपक्षीय मंचों पर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का मुद्दा बुलंद करता रहा है ताकि पाकिस्तानी सरजमीन से संचालित होने वाली बुनियादी संरचनाओं को ध्वस्त करने के लिए उस पर दबाव डाला जाए. भारत 2005 से एससीओ का पर्यवेक्षक था और वह आम तौर पर मंत्रि-स्तरीय बैठकों में हिस्सा लेता था. इन बैठकों में मुख्य रूप से यूरेशिया क्षेत्र में सुरक्षा और आर्थिक सहयोग पर चर्चा होती है. गौरतलब है कि एससीओ की स्थापना 2001 में शंघाई में आयोजित एक शिखर सम्मेलन में हुई थी जिसमें रूस, चीन, किरगिज गणराज्य, कजाखिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों ने हिस्सा लिया था. भारत और पाकिस्तान पिछले साल इसके सदस्य बने. उम्मीद की जा रही है कि मोदी दूसरे एससीओ देशों के नेताओं के साथ आधा दर्जन वार्ताएं करेंगे. बहरहाल, अभी आधिकारिक तौर पर इस संबंध में कुछ नहीं कहा गया है कि पाकिस्तानी राष्ट्रपति ममनून हुसैन के साथ मोदी की कोई मुलाकात होगी या नहीं.

भारत के बढ़े हुए दबदबे के साथ SCO समिट में शामिल होंगे PM मोदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वार्षिक शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने शनिवार को दो दिवसीय चीन यात्रा पर पहुंचेंगे. उम्मीद की जा रही है कि भारत आतंकवादी नेटवर्कों के खिलाफ समन्वित क्षेत्रीय और वैश्विक कार्रवाई की वकालत करने के साथ ही व्यापार को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी संपर्क की हिमायत करेगा.प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वार्षिक शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने शनिवार को दो दिवसीय चीन यात्रा पर पहुंचेंगे. उम्मीद की जा रही है कि भारत आतंकवादी नेटवर्कों के खिलाफ समन्वित क्षेत्रीय और वैश्विक कार्रवाई की वकालत करने के साथ ही व्यापार को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी संपर्क की हिमायत करेगा.  भारत पिछले साल चीन के प्रभुत्व वाले एससीओ का पूर्ण सदस्य बना है. उम्मीद की जा रही है कि इसमें भारत के प्रवेश से क्षेत्रीय भूराजनीति में और व्यापार से जुड़ी वार्ताओं में आठ सदस्यों वाले इस समूह का कद और दबदबा बढ़ेगा. इसके साथ ही , इसे अखिल एशियाई चरित्र भी मिलेगा.  इस तटीय शहर में पहुंचने के कुछ ही घंटे बाद मोदी चीनी राष्ट्रपति शी चिनपिंग से मिलेंगे. उम्मीद की जा रही है कि इस द्विपक्षीय मुलाकात के दौरान दोनों नेता व्यापार और निवेश के क्षेत्र में रिश्ते प्रगाढ़ करेंगे. वे समग्र द्विपक्षीय सहयोग की समीक्षा भी करेंगे. इस बैठक में मोदी और शी अनौपचारिक शिखर सम्मेलन में किए गए फैसलों के क्रियान्वयन में प्रगति की भी संभवत: समीक्षा करेंगे.  अधिकारियों ने बताया कि एससीओ शिखर सम्मेलन में भारत आतंकवाद की बढ़ती चुनौती से निबटने और सदस्य देशों के बीच सुरक्षा सहयोग बढ़ाने के प्रभावी तरीके विकसित करने की पैरवी करेगा. भारत एससीओ और उसकी क्षेत्रीय आतंकवादी निरोधी संरचना (रैट्स) के साथ सुरक्षा संबंधित सहयोग बढ़ाने का इच्छुक है, रैट्स सुरक्षा और रक्षा से जुड़े मुद्दों पर विशेष रूप से काम करती है.  अधिकारियों ने बताया कि भारत एससीओ के सदस्य देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं के महत्व पर भी ध्यान केन्द्रित करना चाहेगा.  भारत संसाधनों से मालामाल मध्य एशियाई देशों तक पहुंच पाने के लिए चाबहार बंदरगाह परियोजना और अंतरराष्ट्रीय उत्तर - दक्षिण परिवहन गलियारा जैसी संपर्क परियोजनाओं पर जोर दे रहा है. सूत्रों के मुताबिक, भारत का जोर अंतिम दस्तावेज में सरहद पार आतंकवाद पर अपनी चिंताओं को शामिल करने पर होगा.  भारत विभिन्न बहुपक्षीय मंचों पर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का मुद्दा बुलंद करता रहा है ताकि पाकिस्तानी सरजमीन से संचालित होने वाली बुनियादी संरचनाओं को ध्वस्त करने के लिए उस पर दबाव डाला जाए. भारत 2005 से एससीओ का पर्यवेक्षक था और वह आम तौर पर मंत्रि-स्तरीय बैठकों में हिस्सा लेता था. इन बैठकों में मुख्य रूप से यूरेशिया क्षेत्र में सुरक्षा और आर्थिक सहयोग पर चर्चा होती है.  गौरतलब है कि एससीओ की स्थापना 2001 में शंघाई में आयोजित एक शिखर सम्मेलन में हुई थी जिसमें रूस, चीन, किरगिज गणराज्य, कजाखिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों ने हिस्सा लिया था. भारत और पाकिस्तान पिछले साल इसके सदस्य बने.  उम्मीद की जा रही है कि मोदी दूसरे एससीओ देशों के नेताओं के साथ आधा दर्जन वार्ताएं करेंगे. बहरहाल, अभी आधिकारिक तौर पर इस संबंध में कुछ नहीं कहा गया है कि पाकिस्तानी राष्ट्रपति ममनून हुसैन के साथ मोदी की कोई मुलाकात होगी या नहीं.

भारत पिछले साल चीन के प्रभुत्व वाले एससीओ का पूर्ण सदस्य बना है. उम्मीद की जा रही है कि इसमें भारत के प्रवेश से क्षेत्रीय भूराजनीति में और व्यापार से जुड़ी वार्ताओं में आठ सदस्यों वाले इस समूह का कद और दबदबा बढ़ेगा. इसके साथ ही , इसे अखिल एशियाई चरित्र भी मिलेगा.

इस तटीय शहर में पहुंचने के कुछ ही घंटे बाद मोदी चीनी राष्ट्रपति शी चिनपिंग से मिलेंगे. उम्मीद की जा रही है कि इस द्विपक्षीय मुलाकात के दौरान दोनों नेता व्यापार और निवेश के क्षेत्र में रिश्ते प्रगाढ़ करेंगे. वे समग्र द्विपक्षीय सहयोग की समीक्षा भी करेंगे. इस बैठक में मोदी और शी अनौपचारिक शिखर सम्मेलन में किए गए फैसलों के क्रियान्वयन में प्रगति की भी संभवत: समीक्षा करेंगे.

अधिकारियों ने बताया कि एससीओ शिखर सम्मेलन में भारत आतंकवाद की बढ़ती चुनौती से निबटने और सदस्य देशों के बीच सुरक्षा सहयोग बढ़ाने के प्रभावी तरीके विकसित करने की पैरवी करेगा. भारत एससीओ और उसकी क्षेत्रीय आतंकवादी निरोधी संरचना (रैट्स) के साथ सुरक्षा संबंधित सहयोग बढ़ाने का इच्छुक है, रैट्स सुरक्षा और रक्षा से जुड़े मुद्दों पर विशेष रूप से काम करती है.

अधिकारियों ने बताया कि भारत एससीओ के सदस्य देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं के महत्व पर भी ध्यान केन्द्रित करना चाहेगा.

भारत संसाधनों से मालामाल मध्य एशियाई देशों तक पहुंच पाने के लिए चाबहार बंदरगाह परियोजना और अंतरराष्ट्रीय उत्तर – दक्षिण परिवहन गलियारा जैसी संपर्क परियोजनाओं पर जोर दे रहा है. सूत्रों के मुताबिक, भारत का जोर अंतिम दस्तावेज में सरहद पार आतंकवाद पर अपनी चिंताओं को शामिल करने पर होगा.

भारत विभिन्न बहुपक्षीय मंचों पर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का मुद्दा बुलंद करता रहा है ताकि पाकिस्तानी सरजमीन से संचालित होने वाली बुनियादी संरचनाओं को ध्वस्त करने के लिए उस पर दबाव डाला जाए. भारत 2005 से एससीओ का पर्यवेक्षक था और वह आम तौर पर मंत्रि-स्तरीय बैठकों में हिस्सा लेता था. इन बैठकों में मुख्य रूप से यूरेशिया क्षेत्र में सुरक्षा और आर्थिक सहयोग पर चर्चा होती है.

गौरतलब है कि एससीओ की स्थापना 2001 में शंघाई में आयोजित एक शिखर सम्मेलन में हुई थी जिसमें रूस, चीन, किरगिज गणराज्य, कजाखिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों ने हिस्सा लिया था. भारत और पाकिस्तान पिछले साल इसके सदस्य बने.

उम्मीद की जा रही है कि मोदी दूसरे एससीओ देशों के नेताओं के साथ आधा दर्जन वार्ताएं करेंगे. बहरहाल, अभी आधिकारिक तौर पर इस संबंध में कुछ नहीं कहा गया है कि पाकिस्तानी राष्ट्रपति ममनून हुसैन के साथ मोदी की कोई मुलाकात होगी या नहीं.

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