यरूशलेम मुद्दे पर अमेरिका के खिलाफ हुए अरब देश

ट्रम्प प्रशासन ने यरूशलेम को इजराइल की राजधानी घोषित करने के बाद वहां अपना दूतावास भी स्थापित कर दिया है. अमेरिका के इस कदम से न केवल अरब देश बल्कि खुद अमेरिका के सहयोगी देश भी उससे नाराज़ हैं. अमेरिका ने अपनी 70 साल पुरानी नीति को तोड़ते हुए यरूशलेम को इजराइल की राजधानी घोषित किया था, इससे पहले अमेरिका, यरूशलेम विवाद को इज़राइल और फिलिस्तीन की आपसी बातचीत द्वारा हल करवाने के पक्ष में था, लेकिन अब उसने खुद इस मामले में कूदकर नया विवाद खड़ा कर दिया है.

1995 में अमेरिकी कांग्रेस में पारित हुए कानून के अनुसार अमेरिकी दूतावास को तेलअवीव से यरुशलम में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया गया था.  इजरायल ने नए दूतावास के लिए 99 साल के लिए एक डॉलर सालाना किराये पर अमेरिका को यरुशलम में जमीन भी उपलब्ध कराई थी, लेकिन 1995 के बाद से सभी अमेरिकी राष्ट्रपति राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर इसे टालते रहे थे.इससे पहले 1947 में संयुक्त राष्ट्र ने यरूशलेम को अलग अंतरराष्ट्रीय शहर के रूप में स्थापित करने के लिए प्लान रेखांकित किया था, लेकिन  जब 1948 में इजरायल के आजाद होने पर शहर का विभाजन हुआ था, उस समय यरूशलेम का पश्चिमी हिस्सा इजराइल और पूर्वी हिस्सा जॉर्डन के हिस्से में आया था.

किन्तु इज़राइल ने 1967 के युद्ध में जॉर्डन से यरूशलेम का पूर्वी हिस्सा भी छीन लिया, जिसके बाद से यरूशलेम को इजराइली प्रशासन चला रहा था, लेकिन फलस्तीन पूर्वी यरुशलम को भविष्य की अपनी राजधानी के रूप में देखता है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय यरुशलम पर इजरायल के आधिपत्य का विरोध करता आया है लिहाजा तेलअवीव में ही सभी 86 देशों के दूतावास हैं. इसी के चलते पिछले दिसंबर में भी 128 देशों ने अमेरिका के इस फ़ासिले का विरोध करते हुए उसे रद्द करने के लिए संयुक्त राष्ट्र में वोटिंग की थी, लेकिन अभी तक इस मसले का कोई हल नहीं निकला है. 

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