यूपी की वो महिलाएं जिनके सामने किला जीतने की चुनौती

शनिवार को उत्तर प्रदेश विधानसभा के पहले चरण में 15 ज़िलों की कुल 73 सीटों पर होने वाले मतदान के साथ ही राज्य में चुनावी घमासान शुरू हो जाएगा.

यूपी की वो महिलाएं जिनके सामने किला जीतने की चुनौती

करीब महीने भर तक चलने वाले इस घमासान में तिकोना मुक़ाबला भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी-कांग्रेस एलायंस और बहुजन समाज पार्टी के बीच माना जा रहा है, हालांकि पहले चरण में अजित सिंह का राष्ट्रीय लोकदल इसे चतुष्कोणीय बना रहा है.

इस लिहाज से देखें तो यूपी का चुनाव बेहद दिलचस्प होने जा रहा है, ऐसे में हम आपको यूपी के उन चार महिला उम्मीदवारों के बारे में बता रहे हैं, जिनकी उम्मीदवारी ने स्थानीय स्तर मुक़ाबले को दिलचस्प बना दिया है.

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इन चार में जो एक बात सबसे ख़ास है- वो ये है कि इन महिलाओं के सामने उस सीट को जीतने की चुनौती दी गई है, जहां अब तक के इतिहास में उनकी पार्टी ने कभी चुनाव नहीं जीता है.

राजबाला चौधरी: पहले चरण में जिन सीटों पर चुनाव होना है उनमें बागपत का छपरौली भी है. इसे अजित सिंह का गढ़ माना जाता है. लेकिन अजित सिंह के दबदबे को बहुजन समाज पार्टी की राजबाला चौधरी चुनौती दे रही हैं.

करीब 55 साल की राजबाला बीते दस महीने से चुनाव प्रचार कर रही हैं. वे मौजूदा समय में नगर पंचायत की चेयरमैन हैं. बीबीसी से उन्होंने कहा कि उनके काम को देख कर लोग उन्हें वोट देंगे.

रालोद के गढ़ में चुनौती

राजबाला ख़ुद जाट हैं और छपरौली की ही हैं. उनके पति नरेश भाटी कभी राष्ट्रीय लोकदल के कार्यकर्ता हुआ करते थे, लेकिन 12 साल पहले उनकी हत्या कर दी गई थी. राजबाला कहती हैं वह अपने पति के अधूरे सपने को पूरा करने के लिए चुनाव मैदान में उतरी हैं.

उनका एक बेटा कुख्यात अपराधी सुनील राठी है जो फिलहाल उत्तराखंड की जेल में बंद है. दूसरी ओर, चौधरी अजित सिंह की पार्टी से यहां से सहेंद्र रमेला को चुनाव मैदान में हैं. उनके मुताबिक बेटे की छवि के चलते राजबाला कई जगहों पर चुनाव प्रचार करने में कामयाब हुई हैं, नहीं तो यहां राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवार के सामने कोई चुनाव प्रचार भी नहीं कर पाता था.

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इस सीट पर मुक़ाबला इन्हीं दोनों में माना जा रहा है. वैसे ये वही सीट है जहां 1937 से लेकर 1974 तक होने वाले चुनाव में चौधरी चरण सिंह जीतते रहे और बाद में भी उनकी पार्टी लोकदल का यहीं दबदबा रहा है.

अपर्णा यादव: समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव चाहतीं थी कोई आसान सीट से चुनाव लड़ सकती थीं, लेकिन उन्होंने अपने लिए लखनऊ कैंट की उस सीट का चुनाव किया, जहां से अब तक समाजवादी पार्टी कभी चुनाव नहीं जीत पाई है.

लखनऊ कैंट पर विधानसभा के तीसरे चरण में 19 फरवरी को चुनाव होना है.

भाजापाई जोशी को टक्कर

अपर्णा यादव इस बारे में कहती हैं, “मेरा तो जन्म ही लखनऊ कैंट में हुआ है, तो मैं अपने लोगों को छोड़कर कहां से चुनाव लड़ती. मैं अपनी जन्मभूमि के लोगों के बीच ही काम करना चाहती हूं.”

इस सीट पर अपर्णा का मुक़ाबला मौजूदा विधायक रीता बहुगुणा जोशी से है, जो कांग्रेस से भारतीय जनता पार्टी के पाले में आई हैं. रीता बहुगुणा जोशी कहती हैं, “मैंने इलाके की विधायक के तौर पर जितना काम किया है, उसका फ़ायदा मुझे हर गली मुहल्ले में मिलता दिख रहा है.”

वहीं 28 साल की अपर्णा के मुताबिक उनकी इस सीट पर उम्मीदवार ये साबित करती है कि समाजवादी पार्टी शहरी मतदाताओं के बीच भी अपनी पैठ बना चुकी है.

स्वाति सिंह: मायावती पर अभद्र टिप्पणी करने के आरोप में भारतीय जनता पार्टी से निकाले गए नेता दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह को बीजेपी ने सरोजनीनगर से अपना उम्मीदवार बनाया है.

स्वाति सिंह पिछले कुछ महीनों से बीजेपी की यूपी महिला विंग की अध्यक्ष हैं. उनके सामने दो बड़ी मुश्किल है- पहली मुश्किल तो यही है कि सरोजनीनगर में अब तक बीजेपी ने कभी चुनाव नहीं जीता है.

स्वाति की मुश्किल

लेकिन स्वाति सिंह के सामने दूसरी चुनौती कहीं ज्यादा बड़ी है. समाजवादी पार्टी ने राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के चचेरे भाई अनुराग यादव को उम्मीदवार बनाया है. अनुराग यादव को अखिलेश की मौजूदा सरकार के मंत्री रहे शारदा प्रताप शुक्ल का टिकट काटकर उम्मीदवार बनाया गया है, जो अब राष्ट्रीय लोकदल के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं.

स्वाति कहती हैं, “पहले हम लोग चाहते थे कि पार्टी बलिया से हमें उम्मीदवार बनाए. मेरा घर है और पति का ननिहाल भी. वहां चुनौती आसान होती लेकिन सरोजनीनगर में भी नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की बदौलत हम समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को कड़ी चुनौती देंगे.”

आयशा बेगम: उत्तर प्रदेश में दूसरे चरण का मतदान 15 फरवरी को होना है. इसमें पीलीभीत ज़िले का पूरणपुर(सुरक्षित सीट) पर भी वोट डाले जाएंगे. इस सीट पर पहली बार राष्ट्रीय लोकदल को जीत दिलाने की चुनौती आयशा बेगम पर है.

38 साल की आयशा बेगम जिला पंचायत की सदस्य हैं. वो पहले तो हिंदू थीं लेकिन राष्ट्रीय लोकदल के कार्यकर्ता रिज़वान ख़ान से शादी के बाद वह आयशा बेगम बन गईं. रिज़वान के मुताबिक वे बीते कई सालों से लोकदल के लिए इलाके में काम करते रहे हैं और उनकी पत्नी को मुस्लिम और दलितों का साथ मिलेगा.

महिला उम्मीदवारों पर ये भरोसा

किसान बहुल्य और खेतीबारी वाले इस इलाके में मुख्य मुक़ाबला समाजवादी पार्टी के मौजूदा विधायक पीतमराम और भारतीय जनता पार्टी के बाबूराम पासवान के बीच है. लेकिन आयशा बेगम का दावा है कि उनकी चुनौती किसी से कमज़ोर नहीं है.

इन चार महिलाओं के सामने वो इतिहास बनाने की चुनौती है, जो उनकी पार्टी अब तक नहीं दिखा पाई है. वैसे, इस बार उत्तर प्रदेश चुनाव के मैदान मे महिला उम्मीदवारों की संख्या बहुत ही कम है. भारतीय जनता पार्टी ने 371 में 42 महिलाओं को टिकट दिए हैं. जबकि समाजवादी पार्टी ने 298 में 31 महिला उम्मीदवार खड़े किए हैं.

बहुजन समाज पार्टी ने पूरे राज्य में केवल 19 महिलाओं को टिकट दिया है, वहीं कांग्रेस ने 105 सीटों में छह सीटों पर महिला उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है.

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