कांग्रेस की कमान अपने हाथ में लेने के लिए राहुल गांधी ने कदम बढ़ा दिए हैं. राहुल गांधी ने पार्टी अध्यक्ष पद के लिए नामांकन पत्र का पहला सेट भरा. चूंकि उनके मुकाबले कोई अन्य कैंडिडेट नहीं है, इसलिए सर्वसम्मति से राहुल की ताजपोशी तय है. 130 साल पुरानी पार्टी के अध्यक्ष की कमान संभालने के बाद राहुल के सामने दस ऐसी चुनौतियां होंगी, जिनसे पार पाना उनके लिए सबसे जरूरी होगा.
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विरासत की परछाईं से निकलना होगा
राहुल गांधी की अब तक की पहचान जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी की विरासत के तौर पर है. राहुल अपने परनाना की विचारधारा के बोझ तले दबे हुए लगते हैं. जबकि मौजूदा दौर के वोटर्स की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए उन्हें इससे बाहर निकलना होगा. पीएम नरेंद्र मोदी को गरीबों के साथ सीधे संवाद के लिए जाना जाता है, ऐसे में राहुल गांधी को भी ऐसे ही रास्ते तलाशने होंगे.
कांग्रेस को मजबूती देना
कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को मजबूती देना है. 2014 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस के हाथ से लगातार एक के बाद एक राज्यों की सत्ता निकलती गई. राहुल गांधी ऐसे वक्त पर कांग्रेस की कमान संभालने जा रहे हैं जब पार्टी सिमटकर सिर्फ छह राज्यों तक रह गई है. ऐसे में संगठन को दोबारा खड़ा करने की जिम्मेदारी राहुल के कंधों पर होगी. राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी पार्टी में नई जान डालने की है.
नया दृष्टिकोण तैयार करना
सोशल मीडिया पर राहुल गांधी भले ही देर से ऐक्टिव हुए हैं, लेकिन अब उन्होंने मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. राहुल गांधी ने अपने भाषणों में ऐसे देसी शब्द इस्तेमाल करने शुरू किए हैं, जो आम लोगों और गली-गली तक उनकी पहुंच को बढ़ाते हैं. अपने नए अवतार से उन्होंने खासा प्रभावित किया है, लेकिन पार्टी को नई दिशा और दृष्टिकोण देना सबसे बड़ी चुनौती है.
मोदी लहर का सामना
राहुल गांधी का मुकाबला मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से है, जो बीजेपी की जीत के मंत्र बन चुके हैं. मोदी लहर के सहारे बीजेपी ने एक के बाद एक राज्य में जीत का परचम लहराया है. असम जैसे कांग्रेस के मजबूत किले को भी धराशाही करके बीजेपी सत्ता पर विराजमान हुई है. राहुल के सामने सबसे बड़ी चुनौती मोदी लहर का मुकाबले अपनी हवा को बनाना है.
मजबूत विपक्ष की भूमिका
कांग्रेस के हाथों जिन वजहों से सत्ता गई और बीजेपी की सत्ता के दौर में कांग्रेस को लेकर जिस तरह मोदी सरकार बेफिक्र है उसकी वजह दो ही हैं. पहली, कांग्रेस विपक्ष की भूमिका में कमजोर रही और बीजेपी विपक्ष में भूमिका में हमेशा मजबूत रही है. ऐसे में कांग्रेस को विपक्ष की भूमिका में लौटना होगा और मोदी सरकार के खिलाफ सड़क से संसद तक संघर्ष करना राहुल के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी.
सीनियर-जूनियर नेताओं के बीच संतुलन
राहुल गांधी के सामने एक चुनौती पार्टी के सीनियर और जूनियर नेताओं के बीच बेहतर तालमेल बैठाने की है. कई राज्यों में पार्टी के वरिष्ठ और युवा नेताओं के बीच राजनीतिक खींचतान जारी है. राजस्थान में अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट, एमपी में दिग्विजय सिंह बनाम ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिल्ली में शीला दीक्षित बनाम अजय माकन के बीच रिश्ते जगजाहिर हैं.
खुद की ‘नॉन सीरियस’ छवि से बाहर निकलना
राहुल गांधी को बीजेपी नॉन सीरियस लीडर के तौर पर पेश करती रही है. बीजेपी अध्यक्ष से लेकर पीएम मोदी तक राहुल को अपरिपक्व नेता बताते रहे हैं. ऐसे में राहुल के सामने इस छवि को तोड़ने के साथ ही विरोधियों को जवाब देने की चुनौती होगी.
जनता से कनेक्शन
कांग्रेस का जनता से कनेक्शन टूटा हुआ है. यही वजह है कि पार्टी की जनता पर पकड़ कमजोर हुई है. कांग्रेसी खुद को सत्ताधारी मानते हैं, विपक्ष में रहकर संघर्ष करना उनकी प्रवृत्ति नहीं रही. राहुल गांधी को कांग्रेस की ये छवि बदलनी होगी और पार्टी को संघर्ष के रास्ते पर लाकर खड़ा करना होगा. जहां नेता-कार्यकर्ता का भेद खत्म हो और जनता से सीधे जुड़ाव स्थापित हो.
विधानसभा चुनाव जीतना राहुल की चुनौती
कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी के कंधों पर जिम्मेदारी का बोझ और भी बढ़ गया है. गुजरात और हिमाचल विधानसभा चुनाव पहली परीक्षा है. अगले साल देश के आठ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. जिनमें मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और कर्नाटक जैसे बड़े राज्य शामिल हैं. इन चुनावों में राहुल गांधी के नेतृत्व की परीक्षा होगी.
तेजी से फैसला लेने की क्षमता
कांग्रेस में अभी तक जो अनिर्णय की स्थिति रहती थी क्या उस पर राहुल की ताजपोशी के बाद लगाम कसेगी. कांग्रेस किसी मुद्दे पर फैसला लेने में काफी देर करती है.कांग्रेस परंपरागत राजनीति छोड़ तेजी से बदलाव की ओर भी आगे बढ़ सकती है. राहुल की कार्यशौली और निर्णय लेने की क्षमता बताएगी कि कांग्रेस में कैसे बदलाव आएंगे.