राम की नगरी पर बीजेपी का पक्ष, कहा- अदालतों में तय नहीं होते आस्था के मुद्दे

राम की नगरी पर बीजेपी का पक्ष, कहा- अदालतों में तय नहीं होते आस्था के मुद्दे

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा है कि राम मंदिर के मुद्दे पर अब तक भेदभाव होता रहा है। लखनऊ साहित्य उत्सव के दूसरे दिन शनिवार को राष्ट्रवाद पर चर्चा में उन्होंने कहा कि जहां शाहबानो के मुद्दे पर कहा जाता है कि धर्म के मामले में हम बहुत हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं, वहीं राम जन्मभूमि के मुद्दे पर कहा जाता है कि राम का जन्म कहां हुआ था, यह न्यायालय तय करेगा। यह करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़ा मुद्दा था लेकिन पूर्ववर्ती सरकारों ने इसे पेचीदा बना दिया।राम की नगरी पर बीजेपी का पक्ष, कहा- अदालतों में तय नहीं होते आस्था के मुद्देकुछ इस तरह से सुशील मोदी करेंगे अपने बेटे की शादी, ना डीजे होगा ना लजीज खाना

उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति को, धर्म को दूसरे देशों ने अपना लिया है। चर्चा में कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत, न्यायमूर्ति हैदर रजा और गुरु प्रकाश ने भी हिस्सा लिया।

समाज बदलता है तो गीत भी बदल जाते हैं
फिल्म इंडस्ट्री के प्रसिद्ध गीतकारों स्वानंद किरकरे, पीयूष मिश्र और कौसर मुनीन्द्र का मानना है कि जैसा समाज होता है, वैसे गीत भी होते जाते हैं। समाज बदलता है तो गीत भी बदल जाते हैं। किसी समय चांदी की दीवार न तोड़ी…जैसे गीत लोगों के दिलों के करीब थे लेकिन आज युवा पीढ़ी को इस गीत को सुनते हुए लग सकता है कि क्या किसी एक व्यक्ति के लिए जीवन बर्बाद करना ठीक होगा?

‘गीत लफ्जों से नहीं, भावों से लिखे जाते हैं’

लखनऊ एक्सप्रेशंस सोसाइटी की ओर से इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में आयोजित लखनऊ साहित्य महोत्सव के दूसरे दिन शनिवार को प्रसिद्ध गीतकारों ने ‘गीत गाता चल’ सत्र में अपनी बातें रखीं। कवि यतींद्र मिश्र ने इन गीतकारों से बातचीत की। गीतकारों का कहना था कि गीत लफ्जों से नहीं, भावों से लिखे जाते हैं।

स्वानंद किरकरे ने इस सत्र में तथा अपनी पुस्तक ‘आप कमाई’ के लोकार्पण के अवसर पर कहा, मैं मुख्यत: रंगमंच का आदमी हूं। थिएटर मेरी पहली प्राथमिकता है। उनका यह भी कहना था कि संगीत की इंडस्ट्री आज खत्म हो चुकी है।

टीवी एंकर अभिज्ञान प्रकाश ने कहा कि आजकल फिल्मी गीतों में शब्दों के प्रयोग में सतर्कता नहीं बरती जाती है। कौसर मुनीन्द्र का कहना था कि आज की पीढ़ी का मतलब न तो साया से है और न शाम से। स्वानंद किरकरे और पीयूष मिश्र ने अपनी कविताएं और गीत भी सुनाए।

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