राम की है तलाश ! अखबारों की सुर्खियां बता रही हैं, आ रहे हैं राम !!

पत्रकारों की मान्यता, अभिमान, स्वाभिमान, खबरों की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी के लिए एक पहल ।
किसी शायर के कहे हुये खूबसूरत अल्फाज़, गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, का सूूरतें हाल आज मीडिया जगत में चरितार्थ होते दिख रहा है। जहां धारदार कलम से आईना दिखाती खबरों का प्रवाह थमता सा दिख रहा है, वहीं अगर किसी ने ईमानदारी से पत्रकारिता को अंजाम देने की कोशिश की तो उस पर अनर्गल आरोप लगाते हुए न सिर्फ मुकदमे दर्ज हो रहे हैं बल्कि सांसद, विधायक, सभापति के शिकायती पत्रों के माध्यम से चरित्र हनन करके गिराया जा रहा है। सूरते हाल यही रहा तो भविष्य में पार्षद, वार्ड अध्यक्ष, गली मोहल्ले के नेताओं के शिकायती पत्रों के माध्यम से पत्रकारों पर कार्यवाही किए जाने की एक नई कुत्सित प्रथा का जन्म होगा जिसको हम सभी तमाशबिन बनकर देखेंगे। फिक्र इस बात की नहीं है कि अंजाम-ऐ-गुलिस्तां क्या होगा, डर तो इस बात का है कि, आज मेरी तो कल आपकी बारी है। हमारी खामोशी और हमारे पत्रकार संगठनों की लाचारी कहीं ना कहीं शासन प्रशासन को आईना दिखाती खबरों और पत्रकारों पर अंकुश लगाने का एक ऐसा मंत्र देंगी जिसका विरोध नहीं किया गया तो आने वाली पत्रकारिता को हम अभिव्यक्ति की आज़ादी और ख्ुाले विचारों से लिखने की स्वतंत्रता को समाप्त करने के दोषी माने जायेंगे।

इस तथ्य से इंकार नही किया जा सकता कि पत्रकारिता क्षेत्र में खबरों को आधार बनाकर ब्लैकमेल करना बड़ा आसान है परंतु खबरों को अंजाम तक पहुंचा कर खबर की असर का परचम लहराने वाले पत्रकारों की तादाद भी कम नही है। पत्रकार को ब्लैकमेलर कहना भी एक आम धारणा बन गयी है परन्तु बाहुबली सांसद द्वारा खबरों का प्रवाह रोकने के लिये, सभापति सहकारिता, भाजपा विधायक और उ.प्र. के सहकारिता मंत्री द्वारा खबरों के सिलसिले को न रोकने पर एफ.आई.आर. लिखायें जाने की धमकी देना, ये बड़ी बात तो दिखायी देती है लेकिन ईमानदार पत्रकारिता के दम-ख़म के आगे दमदार सांसद के इतिहास, भूगोल और उनके अंतरराष्ट्रीय माफिया स्तर के संबंध भी बौने दिखायी देते है ।

अनेक पत्रकारों को अपने रसूख, मालदार व्यक्तित्व से बड़ी आसानी से दरबारी बनाने वाले बाहुबली सांसद, कद्दावार मंत्री को ख्वाबों में भी किसी पत्रकार से नफरमानी का अंदेशा नही होगा, ऐसे में उनके दमदार व्यक्तित्व को ठेस लगना स्वाभाविक है जिसके चलते साजिशों, षडयंत्रों का लंबा जाल बिछाया गया जिसमें सरकारी अधिकारियों को साथ मिलाया गया और सूचना निदेशक के माध्यम से बिना स्पष्टीकरण, बिना सुनवाई का अवसर दिये कार्यालय स्थानीय अभिसूचना इकाई की फर्ज़ी, भ्रामक, असत्य रिपोर्ट पर मान्यता समाप्त किये जाने का पत्र जारी किया गया। जिन प्रावधानों और नियमों का उल्लेख करते हुये मान्यता समाप्त की गयी उन नियमों में सूचना निदेशक को न तो कोई अधिकार है और न ही उनके द्वारा किसी पत्रकार की मान्यता समाप्त की जा सकती है जिसके संबंध में मा. उच्च न्यायालय, लखनऊ द्वारा वर्ष 1991 से अपने अनेक आदेशों में स्पष्ट दिशा निर्देश जारी किये गये हैं। हालांकि मीडिया या पत्रकार की परिभाषा सूचना विभाग द्वारा निर्गत मान्यता से नही निर्धारित की जा सकती परन्तु वर्षो की तपस्या और परिश्रम उपरांत मिलने वाला मान्यता का दर्जा पत्रकारों के लिए भारत रत्न के समान गौरवशाली होता है और ऐसे निराधार शिकायती पत्रो पर कार्यवाही करना समाज को आईना दिखाती पत्रकारिता पर अंकुश लगाने जैैसा होगा।

ऐसे पत्रकार साथी जिनके खि़लाफ़ आपराधिक मुकदमें दर्ज है एवं न्यायालय में लंबित वादों में जमानत पर रिहा होने के उपरांत पत्रकारिता के दायित्व का निर्वाहन किया जा रहा है उनको किन्हीं शिकायती पत्रों से भयभीत होने की आवश्यकता नही है क्योंकि मा. सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ द्वारा मनोज नरूला बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में पारित आदेश में स्पष्ट किया है कि कानून किसी व्यक्ति को केवल इसलिए दोषी या अपराधी नहीं मानता क्योंकि उस व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक अपराध करने का आरोप लगाया गया है-चाहे वह बिना सोचे-समझे आरोप के रूप में हो या किसी अन्य मामले में आरोप के रूप में हो लेकिन सूचना निदेशक द्वारा ऐसे मामले में कार्यवाही किया जाना न्यायसंगत नही प्रतीत होता है।
पत्रकारिता जगत की नई पीढ़ी को फर्ज़ी शिकायती पत्रों के खौफ से बचाने और इस कुत्सित प्रथा पर लगाम लगाने के लिए एक छोटा सा प्रयास हमारे द्वारा किया गया है जिससे नई पीढ़ी को इस डर से निजात दिलाई जा सके, वरना गली-मोहल्ले के नेता शिकायती पत्रों को तलवार बनाकर पत्रकारो को डराते धमकाते नजर आएंगे और शासन प्रशासन द्वारा फर्जी शिकायती पत्रों पर की गयी कार्यवाही से वर्षो की पत्रकारिता पर दाग लग जायेगा।

फिलहाल कामरान अकेला ही चला है जानिबें मंजिल मगर तलाश मुझे उस राम की है जिसने अन्याय के विरोध में बाली को मारा, रावण को मौत के घाट उतारा, पुण्य को पाप से उबारा और इस युग में जो पत्रकारों को कलंकित करने का काम कर रहे हैं, फर्जी शिकायतों का अंबार लगा रहे हैं, ऐसे रावणों के दहन के लिये तलाश मुझे राम की है। आज के युग में भले ही रावण की तादाद ज्यादा है परन्तु जब हम सब साथ खड़े होंगे तो यकीनन हालात बदल जायेंगे वरना ये हालात और भी बदतर हो जायेेगे. जो किन्हीं कारणों से साथ नही आना चाहते उनसे किसी शायर के अल्फाज़ में इतनी सी गुज़ारिश है कि दुआ करेे कि सलामत रहे मेरी हिम्मत, ये इक चिराग़ कई आंधियों पे भारी है, लेकिन अहंकारी रुप में पत्रकारिता पर प्रहार करते रावण का संपूर्ण विनाश/दहन के लिये आपके और राम के साथ के बिना अधूरी दिखती है ये पहल।

आपके साथ, सहयोग की अपेक्षा में फ़क़त़ इतना कहना है कि ‘उसूलों पर जहां आंच आए टकराना जरूरी है, जो ज़िंदा हो तो फिर ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है’।
(डॉ मोहम्मद कामरान)
स्वतंत्र पत्रकार

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