राम मंदिर पर दिल्ली में मचा हाहाकार, लेकिन अयोध्या में खामोशी

राम मंदिर पर दिल्ली में मचा हाहाकार, लेकिन अयोध्या में खामोशी

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर दिल्ली में भले ही सरगर्मी तेज हो गई हो, लेकिन अयोध्या में खामोशी है. अब तक मंदिर-मस्जिद मसले पर सुलह की कई कोशिशें देख चुके दोनों पक्षों के पक्षकारो में आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर के इस मसले पर दखल को लेकर कोई उत्साह दिखाई नहीं देता. गौरतलब है कि राम मंदिर मसले के हल में मदद करने के लिए इसके कई पक्षकारों ने आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर से संपर्क किया है.राम मंदिर पर दिल्ली में मचा हाहाकार, लेकिन अयोध्या में खामोशीअभी-अभी: हेमा मालिनी ने किया बड़ा खुलासा, कहा- मेरे साथ ऐसा अजीब व्यवहार करते थे राजेश खन्ना

बाबरी मस्जिद से जुड़े पक्षकार तो सबसे अधिक उम्मीद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से ही पाले हैं. उनको लगता है कि अगर उन्होंने पहल कर दी तो हल निकला समझिये, तो वहीं, राम मंदिर से जुड़े पक्षकार श्रीश्री रविशंकर के संभावित पहल की किसी भी सम्भावना का स्वागत तो करते है, लेकिन इसको लेकर उनमें कोई ख़ास उत्साह दिखाई नहीं दे रहा है. असल में इसकी वजह यह लगती है कि इसके पहले सुलह-समझौते की तमाम कोशिशें बेनतीजा ही रही हैं.

ये संत मिले थे श्रीश्री रविशंकर से

हालांकि, गुजरात के डाबोर में निर्मोही अखाड़े के श्री महंत और सुप्रीम कोर्ट में निर्मोही अखाड़े की तरफ से पैरवी करने वाले राजा रामचंद्राचार्य का कहना है कि एक पखवारे पहले श्रीश्री रविशंकर से मुलाकात  के दौरान उन्होंने उनसे इस मामले में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया था, जिसके जबाब में उन्होंने कहा था कि अगर सभी पक्ष सहमत हो तो वह बातचीत में मदद करेंगे. 

बाबरी मस्जिद के पक्षकार हाजी महबूब ने कहा, ‘देखा जाय तो सही मायने में ऑन पेपर किसी की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. अगर मुख्यमंत्री जी सहमत हैं, तो किसी की जरूरत नहीं पड़ेगी, मसला हल हो जाएगा.

 निर्मोही अखाड़ा  के संत रामदास ने कहा, ‘तीन पार्टियों के बीच ही सुलह होगी. कानूनन राम लाला विराजमान हैं. निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड , कोई भी पहल करता है तो स्वागत है. जब देश के मुख्य न्यायाधीश ने ही पहल कर दी है तो अब कुछ रह ही नहीं जाता.

राम मंदिर के पक्षकार महंत धर्मदास ने कहा, ‘1949 के पहले पक्षकार थे हाजी फेकूं, अब उनकी जगह पर हाजी महबूब है. दूसरी तरफ, बाबा अभिराम दास जी थे मूर्ति पधारने वाले, उनके उत्तराधिकारी हम हैं धर्मदास. इन्हीं के बीच में बातचीत होगी. अगर कोई पक्षकार कहता है कि हमें नहीं बुलाया गया था तो सुप्रीमकोर्ट में पंचायत लगा है उसमे दरखास्त दे दें और अगर हमसे बात करना चाहते हैं तो हम भी बातचीत को तैयार है. 1949 के बाद जितनी भी पार्टी बनी है, उसको हम एनदर पार्टी ही कहेंगे.’

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