हाजी अली दरगाह की ये खास कुछ खास बातें जानते है आप !

सूफ़ी-संतों ने भारत में बसकर इस्लाम धर्म का प्रचार-प्रसार किया। ऐसे ही एक संत थे पीर हाजी अली शाह बुख़ारी जो ईरान से भारत आए थे। मुसलमानों का विश्वास है कि ख़ुदा की राह में जिन सूफ़ी-संतों ने अपना जीवन समर्पित कर दिया और जान क़ुर्बान कर दी, वे अमर हैं। उनका दर्जा शहीद का है और उन्हें शहादत-ए-हुक़मी कहा जाता है।

हाजी अली दरगाह की ये खास कुछ खास बातें जानते है आप !

अरब देशों और फ़ारस से भारत आए ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ जैसे कई ऐसे संत हुए हैं जिन्होंने इस्लाम धर्म के प्रचार के लिये भारत के कोने कोने का भ्रमण किया। कहा जाता है कि ये संत-फ़क़ीर तभी आए जब उन्हें ख़ुद लगा या फिर पैग़ंबर मुहम्मद का निर्देश मिला।

अभी अभी: रेलवे स्टेशन पर मिली बम की सूचना, चारो तरफ मचा हाहाकार…

पीर हाजी अली शाह बुख़ारी के समय और उनकी मौत के बाद कई चमत्कारी घटनाएं होने की बात की जाती है। पीर हाजी अली शाह ने शादी नहीं की थी और उनके बारे में जो कुछ मालूम चला है वो दरगाह के सज्जादानशीं (caretakers), ट्रस्टी और पीढ़ी दर पीढ़ी से सुनी जा रहे क़िस्सों से ही चला है।

एक बार पीर हाजी अली शाह बुख़ारा में (उज़बेकिस्तान) एक वीरान जगह में बैठे नमाज़ पढ़ रहे थे तभी एक महिला वहां से रोती ग़ुज़री। पीर के पूछने पर उसने बताया कि वह तेल लेने गई थी लेकिन बर्तन से तेल गिर गया और अब उसका पति उसे मारेगा।

पीर उसे लेकर उस स्थान पर गए जहां तेल गिरा गया था। पीर ने उस महिला से बर्तन लिया और हाथ का अंगूठा ज़मीन में गाड़ दिया। ऐसा करते ही ज़मीन से तेल का फ़ौव्वारा निकल पड़ा और बर्तन भर गया।

लेकिन इस घटना के बाद पीर हाजी अली शाह को बुरे-बुरे ख़्वाब आने लगे कि उन्होंने अपना अंगूठा ज़मीन में धसाकर पृथ्वी को ज़ख़्मी कर दिया। उसी दिन से वह गुमसुम रहने लगे और बीमार भी पड़ गए। फिर आपनी मां की इजाज़त लेकर वह अपने भाई के साथ भारत रवाना हो गए और मुंबई की उस जगह पहुंच गए जो दरगाह के क़रीब है। उनका भाई वापस अपने देश लौट गया।

पीर हाजी अली शाह ने अपने भाई के हाथ मां को एक ख़त भिजवाया और कहा कि उन्होंने इस्लाम के प्रचार के लिये अब यहीं रहने का फ़ैसला किया है और ये कि वह उन्हें इस बात के लिये माफ़ कर दें।

पीर हाजी अली शाह अपने अंतिम समय तक लोगों और श्रृद्धालुओं को इस्लाम के बारे में ज्ञान बांटते रहे। अपनी मौत के पहले उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा कि वे उन्हें कहीं दफ़्न न करें और उनके क़फ़न को समंदर में डाला जाए। उनकी अंतिम इच्छा पूरी की गई और ये दरगाह शरीफ़ उसी जगह है जहां उनका क़फ़न समंदर के बीच एक चट्टान पर आकर रुक गया था। इसके बाद उसी जगह पर 1431 में उनकी याद में दरगाह बनाई गई। गुरुवार और शुक्रवार को दरगाह पर हर मज़हब के हजारो लोग आते हैं।

हाजी अली दरगाह के बारे में खास बातें.

1. हाजी अली की दरगाह मुंबई के वर्ली तट के निकट स्थित एक छोटे से टापू पर स्थित एक मस्जिद और दरगाह है. इसे सैय्यद पीर हाजी अली शाह बुखारी की याद में सन 1431 में बनाया गया था.

2. यह दरगाह मुस्लिम और हिन्दू समुदायों के लिए विशेष धार्मिक महत्व रखती है. यह मुंबई का महत्वपूर्ण धार्मिक और पर्यटन स्थल भी है.

3. हाजी अली ट्रस्ट के अनुसार हाजी अली उज़्बेकिस्तान के बुखारा प्रान्त से सारी दुनिया का भ्रमण करते हुए भारत पहुंचे थे.

4. हाजी अली की दरगाह वर्ली की खाड़ी में स्थित है. यह दरगाह सड़क से लगभग 400 मीटर की दूरी पर एक छोटे से टापू पर बनाई गई है.

5. हाजी अली की दरगाह पर जाने के लिए मुख्य सड़क से एक पुल बना हुआ है. इस पुल की ऊंचाई काफी कम है और इसके दोनों ओर समुद्र है.

6. दरगाह तक सिर्फ लो टाइड के समय ही जाया जा सकता है. बाकी समय में यह पुल पानी के नीचे डूबा रहता है.

7. दरगाह टापू के 4500 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैली हुई है. दरगाह और मस्जिद की बाहरी दीवारें सफेद रंग से रंगी हैं.

8. इस दरगाह की पहचान है 85 फीट ऊंची मीनार.

9. मस्जिद के अंदर पीर हाजी अली की मजार है जिसे लाल एवं हरी चादर से सजाया गया है.

10. मजार के चारों तरफ चांदी के डंडोे से बना एक दायरा है.

11. मुख्य कक्ष में संगमरमर से बने कई स्तम्भ हैं जिनके ऊपर रंगीन कांच पर कलाकारी की गई है और अल्लाह के 99 नाम भी उकेरे गए हैं.

12. ऐसा कहा जाता है कि हाजी अली बहुत समृद्ध परिवार से थे लेकिन उन्होंने मक्का की यात्रा के दौरान अपनी पूरी दौलत नेक कामों के लिए दान कर दी थी. उसी यात्रा के दौरान उनका देहांत हो गया था. ऐसी मान्यता है कि कि उनका शरीर एक ताबूत में था और वह समुद्र में बहते हुए वापस मुंबई आ गया. यहीं उनकी दरगाह बनवाई गई.

 
 
 
 
 

 

English News

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com