जीने की इच्छा छोड़ चुके ऑस्ट्रेलिया के सबसे उम्रदराज वैज्ञानिक ने गुरुवार को इच्छामृत्यु के जरिए दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी मदद करने वालेएक फाउंडेशन ने यह जानकारी दी। 104 वर्षीय डेविड गुडॉल को अपने देश में आत्महत्या के लिए मदद मांगने से रोक दिया गया था जिसके बाद वह स्विट्जरलैंड रवाना हो गए थे। वह किसी असाध्य रोग से ग्रस्त नहीं थे लेकिन उनका कहना था कि उनकी जिंदगी में अब कुछ जीने लायक नहीं रहा है और वह मरना चाहते हैं। एग्जिट फाउंडेशन के संस्थापक फिलिप ने बताया कि लंदन में जन्मे वैज्ञानिक ने बसेल में अंतिम सांस ली। अपने अंतिम समय में उन्होंने बीथोवन का गाना भी सुना। 1914 में लंदन में जन्मे गुडॉल बचपन में ही अपने परिवार के साथ ऑस्ट्रेलिया आ गए थे। मृत्यु के लिए मिलना चाहिए छूटगुडॉल ने लोगों से आखिरी बार भेंट करते हुए कहा था, "अब मैं और जीना नहीं चाहता हूं। मेरी उम्र का या मुझसे छोटा कोई भी शख्स अगर मरना चाहता है तो उसे इसके लिए छूट मिलना चाहिए।" उन्होंने कहा था कि वह ऑस्ट्रेलिया में जीवन का अंत करना चाहते थे लेकिन इस मामले में उनका देश स्विट्जरलैंड से काफी पीछे है। आत्महत्या की कोशिश में असफल थे गुडॉल ने अपने ही देश में आत्महत्या करने की कोशिश की थी लेकिन इसमें वह असफल रहे थे। इसके बाद उन्होंने बसेल में फाउंडेशन से जल्द इच्छामृत्यु पाने के लिए समय लिया। इस तरह की इच्छामृत्यु के लिए शख्स को यहां निर्धारित कदम उठाने के लिए शारीरिक रूप से सक्षम होना चाहिए। गुडॉल ने भी ऐसा ही कुछ किया। उन्होंने खुद ही यहां दिया गया वॉल्व खोला जिससे निर्धारित सॉल्यूशन उनके शरीर में चले गए। मिली थी 20 हजार डॉलर की मदद 12 नाती-पोतियों के दादा गुडॉल को योरप से स्विट्जरलैंड जाने के लिए 20 हजार डॉलर का दान भी मिला। वह बीते सप्ताह ऑस्ट्रेलिया से रवाना हो गए थे। सोमवार को बसेल पहुंचने से पहले उन्होंने फ्रांस में अपने परिजनों से भी मुलाकात की। बुधवार को भी दोबारा उनसे इच्छामृत्यु को लेकर विचार बदलने संबंधित सवाल किए गए थे लेकिन गुडॉल ने अपना विचार नहीं बदला। कई देशों में रोक गौरतलब है कि कई देशों में मदद के जरिए इच्छामृत्यु करने पर रोक है। ऑस्ट्रेलिया में भी इसे अवैध माना जाता है। हालांकि विक्टोरिया राज्य में इसे अनुमति दी गई लेकिन वहां यह कानून जून 2019 से प्रभावी होगा। यह केवल उन लोगों के लिए होगा जिनकी जीवन प्रत्याशा छह महीने से भी कम है।

104 साल के वैज्ञानिक ने इच्छामृत्यु से दुनिया को कहा अलविदा

जीने की इच्छा छोड़ चुके ऑस्ट्रेलिया के सबसे उम्रदराज वैज्ञानिक ने गुरुवार को इच्छामृत्यु के जरिए दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी मदद करने वालेएक फाउंडेशन ने यह जानकारी दी। 104 वर्षीय डेविड गुडॉल को अपने देश में आत्महत्या के लिए मदद मांगने से रोक दिया गया था जिसके बाद वह स्विट्जरलैंड रवाना हो गए थे।जीने की इच्छा छोड़ चुके ऑस्ट्रेलिया के सबसे उम्रदराज वैज्ञानिक ने गुरुवार को इच्छामृत्यु के जरिए दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी मदद करने वालेएक फाउंडेशन ने यह जानकारी दी। 104 वर्षीय डेविड गुडॉल को अपने देश में आत्महत्या के लिए मदद मांगने से रोक दिया गया था जिसके बाद वह स्विट्जरलैंड रवाना हो गए थे।  वह किसी असाध्य रोग से ग्रस्त नहीं थे लेकिन उनका कहना था कि उनकी जिंदगी में अब कुछ जीने लायक नहीं रहा है और वह मरना चाहते हैं। एग्जिट फाउंडेशन के संस्थापक फिलिप ने बताया कि लंदन में जन्मे वैज्ञानिक ने बसेल में अंतिम सांस ली। अपने अंतिम समय में उन्होंने बीथोवन का गाना भी सुना।  1914 में लंदन में जन्मे गुडॉल बचपन में ही अपने परिवार के साथ ऑस्ट्रेलिया आ गए थे। मृत्यु के लिए मिलना चाहिए छूटगुडॉल ने लोगों से आखिरी बार भेंट करते हुए कहा था, "अब मैं और जीना नहीं चाहता हूं। मेरी उम्र का या मुझसे छोटा कोई भी शख्स अगर मरना चाहता है तो उसे इसके लिए छूट मिलना चाहिए।"  उन्होंने कहा था कि वह ऑस्ट्रेलिया में जीवन का अंत करना चाहते थे लेकिन इस मामले में उनका देश स्विट्जरलैंड से काफी पीछे है।  आत्महत्या की कोशिश में असफल थे  गुडॉल ने अपने ही देश में आत्महत्या करने की कोशिश की थी लेकिन इसमें वह असफल रहे थे। इसके बाद उन्होंने बसेल में फाउंडेशन से जल्द इच्छामृत्यु पाने के लिए समय लिया। इस तरह की इच्छामृत्यु के लिए शख्स को यहां निर्धारित कदम उठाने के लिए शारीरिक रूप से सक्षम होना चाहिए।  गुडॉल ने भी ऐसा ही कुछ किया। उन्होंने खुद ही यहां दिया गया वॉल्व खोला जिससे निर्धारित सॉल्यूशन उनके शरीर में चले गए।  मिली थी 20 हजार डॉलर की मदद  12 नाती-पोतियों के दादा गुडॉल को योरप से स्विट्जरलैंड जाने के लिए 20 हजार डॉलर का दान भी मिला। वह बीते सप्ताह ऑस्ट्रेलिया से रवाना हो गए थे। सोमवार को बसेल पहुंचने से पहले उन्होंने फ्रांस में अपने परिजनों से भी मुलाकात की। बुधवार को भी दोबारा उनसे इच्छामृत्यु को लेकर विचार बदलने संबंधित सवाल किए गए थे लेकिन गुडॉल ने अपना विचार नहीं बदला।  कई देशों में रोक  गौरतलब है कि कई देशों में मदद के जरिए इच्छामृत्यु करने पर रोक है। ऑस्ट्रेलिया में भी इसे अवैध माना जाता है। हालांकि विक्टोरिया राज्य में इसे अनुमति दी गई लेकिन वहां यह कानून जून 2019 से प्रभावी होगा। यह केवल उन लोगों के लिए होगा जिनकी जीवन प्रत्याशा छह महीने से भी कम है।

वह किसी असाध्य रोग से ग्रस्त नहीं थे लेकिन उनका कहना था कि उनकी जिंदगी में अब कुछ जीने लायक नहीं रहा है और वह मरना चाहते हैं। एग्जिट फाउंडेशन के संस्थापक फिलिप ने बताया कि लंदन में जन्मे वैज्ञानिक ने बसेल में अंतिम सांस ली। अपने अंतिम समय में उन्होंने बीथोवन का गाना भी सुना।

1914 में लंदन में जन्मे गुडॉल बचपन में ही अपने परिवार के साथ ऑस्ट्रेलिया आ गए थे। मृत्यु के लिए मिलना चाहिए छूटगुडॉल ने लोगों से आखिरी बार भेंट करते हुए कहा था, “अब मैं और जीना नहीं चाहता हूं। मेरी उम्र का या मुझसे छोटा कोई भी शख्स अगर मरना चाहता है तो उसे इसके लिए छूट मिलना चाहिए।”

उन्होंने कहा था कि वह ऑस्ट्रेलिया में जीवन का अंत करना चाहते थे लेकिन इस मामले में उनका देश स्विट्जरलैंड से काफी पीछे है।

आत्महत्या की कोशिश में असफल थे

गुडॉल ने अपने ही देश में आत्महत्या करने की कोशिश की थी लेकिन इसमें वह असफल रहे थे। इसके बाद उन्होंने बसेल में फाउंडेशन से जल्द इच्छामृत्यु पाने के लिए समय लिया। इस तरह की इच्छामृत्यु के लिए शख्स को यहां निर्धारित कदम उठाने के लिए शारीरिक रूप से सक्षम होना चाहिए।

गुडॉल ने भी ऐसा ही कुछ किया। उन्होंने खुद ही यहां दिया गया वॉल्व खोला जिससे निर्धारित सॉल्यूशन उनके शरीर में चले गए।

मिली थी 20 हजार डॉलर की मदद

12 नाती-पोतियों के दादा गुडॉल को योरप से स्विट्जरलैंड जाने के लिए 20 हजार डॉलर का दान भी मिला। वह बीते सप्ताह ऑस्ट्रेलिया से रवाना हो गए थे। सोमवार को बसेल पहुंचने से पहले उन्होंने फ्रांस में अपने परिजनों से भी मुलाकात की। बुधवार को भी दोबारा उनसे इच्छामृत्यु को लेकर विचार बदलने संबंधित सवाल किए गए थे लेकिन गुडॉल ने अपना विचार नहीं बदला।

कई देशों में रोक

गौरतलब है कि कई देशों में मदद के जरिए इच्छामृत्यु करने पर रोक है। ऑस्ट्रेलिया में भी इसे अवैध माना जाता है। हालांकि विक्टोरिया राज्य में इसे अनुमति दी गई लेकिन वहां यह कानून जून 2019 से प्रभावी होगा। यह केवल उन लोगों के लिए होगा जिनकी जीवन प्रत्याशा छह महीने से भी कम है।

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