दिल्ली की एक अदालत ने कहा है कि चेक जैसे माध्यम की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि चेक बाउंस के मामलों में ऐसी सजा दी जाए, जो मिसाल कायम करे. अदालत ने यह टिप्पणी एक व्यक्ति को मिली आठ माह की कैद को बरकरार रखते हुए की है. इस व्यक्ति को एक मजिस्ट्रेट अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि वह चेक बाउंस के मामले में शिकायतकर्ता को 20 लाख रुपए का मुआवजा भी दे.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्या परमाचल ने मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ इस व्यक्ति की ओर से दायर अपील को खारिज कर दिया. उन्होंने निचली अदालत के साथ सहमति जताई कि वह चेक बाउंस होने की घटनाओं के खिलाफ मिसाल कायम करने के लिए मजबूत उपाय करना चाहते हैं.
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जज ने कहा, ‘चेक जैसे माध्यमों, जो कि किसी तरह के लेनदेन में किसी व्यक्ति के दैनिक जीवन का हिस्सा हैं, उनकी विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए, मिसाली सजा दी जनी चाहिए. इसलिए मुझे कैद की सजा में भी कोई गड़बड़ नजर नहीं आती. इस तरह, व्यक्ति की अपील में कोई दम नहीं दिखता और इसे खारिज किया जाता है.’ अदालत ने कैद की सजा और मुआवजे की राशि को बरकरार रखते हुए कहा कि 30 सितंबर 2010 को जिस राशि का चेक जारी किया गया था, 20 लाख का मुआवजा उसका दुगुना है. लगभग सात साल खराब हो चुके हैं, इसलिए मुआवजे की राशि वाजिब है.