मानसून के दौरान खाने-पीने में अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि इस समय हेपेटाइटिस का संक्रमण बढ़ जाता है. ऐसे समय में पीलिया की शिकायत भी बढ़ जाती है. बीएलके सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के सेंटर ऑफ डाइजेस्टिव एंड लिवर डिसीज के निदेशक डॉ. जे.सी. विज ने कहा कि मानसून के दौरान हेपेटाइटिस संक्रमण मुख्य रूप से ए व ई वायरसों के कारण होते हैं, जो प्रदूषित खाने या पानी से फैलता है.
उन्होंने कहा, “हेपेटाइटिस ए, आमतौर पर हेपेटाइटिस-ए से संक्रमित व्यक्ति के मल से प्रदूषित हुए खाने या द्रव्य का सेवन करने के बाद होता है, लेकिन यह जानलेवा नहीं है. इसकी वजह से लिवर में लंबी सूजन नहीं आती है. प्रदूषित पानी पीने या आसपास स्वच्छता न रखने वाले ज्यादातर लोग इस वायरस से संक्रमित हो जाते हैं.”
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डॉ. विज ने कहा, “ऐसा ही हेपेटाइटिस-ई वायरस के साथ भी होता है. यह एक जलजनित रोग है. यह मुख्य रूप से प्रदूषित पानी या खाने का उपभोग करने से संचारित होता है और खराब स्वच्छता वाले क्षेत्रों में ही यह मुख्य रूप से पाया जाता है.”
उन्होंने कहा, “मानसून में ए और ई हेपेटाइटिस संक्रमण आम हैं। इन वायरसों से होने वाले संक्रमण के इलाज के लिए बाजार में कोई दवा उपलब्ध नहीं है और किसी दवा की जरूरत भी नहीं. लेकिन चिकित्सक से परामर्श लेना जरूरी है, ताकि यह पता किया जा सके कि पीलिया बी व सी जैसे खतरनाक हेपेटाइटिस वायरस के कारण तो नहीं हुआ है.”
डॉ. विज ने कहा, “किसी भी झाड़-फूंक या देसी दवा की जगह पर्याप्त आराम करना और खाने के संबंध में सावधानी बरतना ही इसे ठीक करने के लिए काफी है.”
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उन्होंने कहा कि आमतौर पर हेपेटाइटिस-ए के लिए किसी इलाज की जरूरत नहीं होती, क्योंकि यह एक अल्पकालिक बीमारी है. अगर लक्षणों के कारण असहजता महसूस हो रही हो तो आराम करने का सुझाव दिया जाता है. अगर आपको उल्टी आने या डायरिया जैसी शिकायत हो रही है, तो अपने चिकित्सक से परामर्श ले लें.
विज ने कहा, “हेपेटाइटिस-ए व ई के संपर्क में आने से बचने के लिए स्वच्छता पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है. इससे बचाव के लिए कुछ चीजों से बचना चाहिए, जैसे कि दूषित पानी, बर्फ , कच्ची या अधपकी शेलफिश व ओइस्टर, कच्चे फल व सब्जियां. साथ ही घर से बाहर चाट, गोलगप्पे या कटे फल भी बिल्कुल नहीं खाने चाहिए.”