ग्लोबल हॉस्पिटल के हेपेटोलोजी डायरेक्टर व एचओडी डॉक्टर समीर शाह के अनुसार, हेपेटाइटिस या यकृत शोथ यकृत यानी लीवर को हानि पहुंचाने वाला एक गंभीर और खतरनाक रोग होता है। इसके प्रमुख लक्षणों में अंगो के उत्तकों में सूजी हुई कोशिकाओं की उपस्थिति आता है, ये बढ़ने पर पीलिया का रूप ले लेता है और अंतिम चरण में पहुंचने पर हेपेटाइटिस लिवर सिरोसिस और यकृत कैंसर का कारण भी बन सकता है। समय पर उपचार न होने पर रोगी की मृत्यु तक हो सकती है। हालांकि यह स्थिति स्वतः नियंत्रण वाली हो सकती है, यह स्वयं ठीक हो सकता है, या यकृत में घाव के चिह्न रूप में विकसित हो सकता है। हेपेटाइटिस विषाणुओं के रूप में जाना जाने वाला विषाणुओं का एक समूह विश्व भर में यकृत को आघात पहुंचने के अधिकांश मामलों के लिए उत्तरदायी होता है।अगर भूलने की आदत से हैं परेशान तो इन घरेलू तरीकों को अपनाकर बढ़ाएं याद्दाश्त
हेपेटाइटिस मूलत: पांच प्रकार का होता है हैपेटाइटिस ए, बी, सी, डी, व ई। भारत में आंकड़ों के अनुसार देखें तो ए, बी, सी और ई का संक्रमण है किन्तु हेपेटाइटिस डी का संक्रमण यहां नहीं है। शुरूआती हैपेटाइटिस के अधिकांश मामले विषाणुजनित संक्रमण से होते हैं। विषाणुजनित हेपेटाइटिस निम्न प्रकार से आते हैं।
हेपेटाइटिस ए
यह रोग प्रमुखतया जलजनित रोग होता है। आंकड़ो के अनुसार हर वर्ष भारत में जलजनित रोग पीलिया के रोगियों की संख्या बहुत अधिक हैं। यह बीमारी दूषित खाने व जल के सेवन से होती है। जब नालियों व मल-निकासी का गंदा पानी या किसी अन्य तरह से प्रदूषित जल आपूर्ति के माध्यम में मिल जाता है जिससे बड़ी संख्या में लोग इससे प्रभावित होते हैं। आमतौर पर यह बीमारी तीन-चार हफ्तों के मात्र परहेज से ठीक हो जाती है किंतु गर्भवती महिलाओं को पीलिया होने से अधिक समस्या होती है। ऐसे में माँ और बच्चा दोनों की जान को खतरा होता है। यकृत में कुछ ऐसे पदार्थ होते हैं जिनके कारण रक्त के बहाव में अवरोध उत्पन्न होता है। इन्हें थ्रॉम्बोसाइट कहते हैं।
हेपेटाइटिस बी
आंकड़ों पर आधारित अनुमान के अनुसार विश्व भर में दो अरब लोग हेपेटाइटिस बी विषाणु से संक्रमित हैं और 35 करोड़ से अधिक लोगों में क्रॉनिक हेपेटाइटिस संक्रमण होता है, जिसका मुख्य कारण शराब है। हेपेटाइटिस-बी में त्वचा और आँखों का पीलापन (पीलिया), गहरे रंग का मूत्र, अत्यधिक थकान, उल्टी और पेट दर्द प्रमुख लक्षण हैं। इन लक्षणों से बचाव पाने में कुछ महीनों से लेकर एक वर्ष तक का समय लग सकता है। हेपेटाइटिस बी क्रॉनिक हो सकता है। जो बाद में लिवर सिरोसिस या लिवर कैंसर में परिवर्तित हो सकता है। नियमित टीकाकरण के एक भाग के तहत तीन या चार अलग-अलग मात्रा में हेपेटाइटिस बी का टीका दिया जा सकता है। नवजात बच्चों, छह माह और एक वर्ष की आयु के समय में यह टीका दिया जाता है। ये कम से कम 25 वर्ष की आयु तक सुरक्षा प्रदान करते हैं।
हेपेटाइटिस सी
हेपेटाइटिस सी शांत मृत्यु या खामोश मौत की संज्ञा दी जाती है। आरंभ में इसका कोई प्रभाव नहीं दिखाई देता और जब तक दिखना आरंभ होता है, यह फैल चुका होता यह रोग रक्त संक्रमण से फैलता है। हाथ पर टैटू गुदवाने, संक्रमित खून चढ़वाने, दूसरे का रेजर उपयोग करने आदि की वजह से हेपेटाइटिस सी होने की संभावना रहती है। हेपेटाइटिस सी के अंतिम चरण में सिरोसिस और लिवर कैंसर होते हैं। हेपेटाइटिस के अन्य रूपों की तरह हेपेटाइटिस सी, लीवर में सूजन पैदा करता है। हेपेटाइटिस सी वायरस मुख्य रूप से रक्त के माध्यम से स्थानांतरित होता है और हेपेटाइटिस ए या बी की तुलना में अधिक स्थायी होता है।
हेपेटाइटिस डी
यह रोग तभी होता है जब रोगी को बी या सी का संक्रमण पहले ही हो चुका हो। हेपेटाइटिस डी विषाणु इसके बी विषाणुओं पर जीवित रह सकते हैं। इसलिए जो लोग हेपेटाइटिस से संक्रमित हो चुके हों, उनके हेपेटाइटिस डी से भी संक्रमित होने की संभावना रहती है। जब कोई व्यक्ति डी से संक्रमित होता है तो सिर्फ बी से संक्रमित व्यक्ति की तुलना में उसके यकृत की हानि की आशंका अधिक होती है। हेपेटाइटिस बी के लिये दी गई प्रतिरक्षा प्रणाली कुछ हद तक हेपेटाइटिस डी से भी सुरक्षा कर सकती है। इसके मुख्य लक्षणों में थकान, उल्टी, हल्का बुखार, दस्त, गहरे रंग का मूत्र होते हैं।
हेपेटाइटिस ई
हेपेटाइटिस ई एक जलजनित रोग है और इसके व्यापक प्रकोप का कारण दूषित पानी या भोजन की आपूर्ति है। प्रदूषित जल इस महामारी के प्रसार में अच्छा सहयोग देता है और कई स्थानीय क्षेत्रों में कुछ मामलों के स्रोत कच्चे या अधपके शेलफिश का सेवन भी होता है। इससे विषाणु के प्रसार की संभावना अधिक होती है। हालांकि अन्य देशों की तुलना में भारत के लोगों में हेपेटाइटिस ई न के बराबर होता है। बंदर, सूअर, गाय, भेड़, बकरी और चूहे इस संक्रमण के प्रति संवेदनशील हैं।