CM योगी की पहली मेरिट परीक्षा हुई पास, अब दूसरे इम्तिहान की तैयारी शुरू

CM योगी की पहली मेरिट परीक्षा हुई पास, अब दूसरे इम्तिहान की तैयारी शुरू

लगभग 14 वर्षों के वनवास के बाद प्रदेश की सत्ता में लौटी भाजपा के सभी नेताओं के लिए निकाय चुनाव एक बड़ी परीक्षा थी। पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए यह बड़ा ही नहीं बल्कि कड़ा इम्तिहान भी था।CM योगी की पहली मेरिट परीक्षा हुई पास, अब दूसरे इम्तिहान की तैयारी शुरू

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इस इम्तिहान में वह 16 महानगरों में से14 में पार्टी के महापौर जिताकर और छोटे निकायों में पहले की तुलना में अच्छी सफलता हासिल कर न सिर्फ अच्छे नंबरों से पास रहे बल्कि विधानसभा चुनाव के आसपास ही पार्टी का मत प्रतिशत बरकरार रखकर डिस्टिंकशन मार्क्स लेने में सफल रहे।

हालांकि उनकी परीक्षाओं का सिलसिला इस चुनाव के साथ खत्म नहीं हुआ है। इसमें दो राय नहीं कि इन नतीजों के बाद भाजपा नेतृत्व का उन पर न सिर्फ भरोसा बढ़ा होगा बल्कि उनके लिए भविष्य की राह भी आसान हो गई है। दरअसल, यह चुनाव एक तरह से योगी सरकार के आठ महीने के कामकाज की समीक्षा भी थे।

जिस तरह उनको और उनके फैसलों को लेकर पार्टी के भीतर और बाहर अंदरखाने कई सवाल उठ रहे थे। लोग आशंकित थे कि उनके जैसा हिंदुत्ववादी चेहरा कहीं गोरक्ष पीठ के महंत की तरह ही आगे बढ़ा तो मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण भाजपा का मुकाबला कड़ा न बना दे।

मगर भाजपा की सफलता का परचम फहराकर उन्होंने साबित कर दिया कि भले ही वह पहली बार किसी प्रशासनिक और इतने बड़े पद को संभाल रहे हों लेकिन वह अनुभवहीन नहीं है। उन्होंने जो भी फैसले किए हैं, नतीजों ने उन पर मुहर लगा दी है।

भरोसा कायम ही नहीं किया बल्कि जीता भी 

आठ महीने पहले जब नेतृत्व ने उन्हें प्रदेश में तीन चौथाई बहुमत वाली भाजपा सरकार का नेतृत्व सौंपा था तब तमाम लोग आशंकित भी थे। चर्चाएं भी उठी थी कि  योगी जो जब-तब अपनी पसंद का निर्णय न होने पर नेतृत्व के खिलाफ ही तेवर दिखाने में पीछे नहीं रहते, जिनका कई जिलों में हिंदू युवा वाहिनी नाम से भाजपा के समानांतर संगठन काम करता है, वह मुख्यमंत्री बनने के बाद संगठन के सरोकारों का कैसे और क्यों ख्याल रखेंगे?

निकाय चुनाव में जीत का परचम फहराने के साथ उन्होंने इन सभी सवालों और आशंकाओं पर विराम लगा दिया। वह पुराने तेवरों को काफी पीछे छोड़ चुके हैं।  यह भी बता दिया है कि मुख्यमंत्री के रूप में उनके लिए अब भाजपा ही अव्वल है।यह योगी के साथ भाजपा की भी सफलता है।

पर, बाकी है रणनीतिक कौशल की परीक्षा

वैसे तो इस जीत के बाद जहां योगी विरोधियों को बोलने से पहले काफी सोचना पड़ेगा वहीं उनकी भूमिका पर सवाल उठाने वालों को भी आत्ममंथन करना होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी अपने प्रयोग पर आत्मसंतोष हुआ होगा। पर, यहां योगी की परीक्षा का अंत नहीं होने जा रहा है। लोकसभा चुनाव के रूप में एक और परीक्षा सामने खड़ी है।

हालांकि निकाय चुनाव के नतीजे योगी को उस परीक्षा में पास होने के लिए बड़ा मनोवैज्ञानिक लाभ देंगे लेकिन इतने भर से उनकी चुनौतियां कम नहीं होने वाली। खासतौर से जिस तरह इस चुनाव में बसपा ने कई जगह भाजपा को कड़ी टक्कर दी है उसको देखते हुए योगी को खास तैयारी करनी होगी।

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