न्यायपालिका जो भारतीय लोकतंत्र का एक स्तंभ है अपने कई सिद्धांतों के लिए जाना जाता है। इनमें से ही एक ऐसा नियम भी यहां सैद्धांतिक है, जो यह तय करता है कि कौन सीनियर है और कौन जूनियर? अपॉइंटमेंट के आधार पर यह विरोधाभास खत्म करने के लिए नियम है कि जो भी जज पहले शपथ लेता है वो सीनियर हो जाता है। बेशक इसमें आगे-पीछे का ही अंतर क्यों ना हो।देश की न्यायपालिका में कल जो सामने आया उससे यह बात गौर करने वाली है कि जस्टिस जे. चेलमेश्वर आखिर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा से कितने जूनियर हैं। जैसा की कहा जाता है कि चेलमेश्वर का सुप्रीम कोर्ट में नंबर दो का स्थान है तो आपको बता दें कि उनके करियर में ऐसा भी समय था जब वो दीपक मिश्रा से पूरे दो साल सीनियर थे।
ऐसा क्या हुआ कि जस्टिस चेलमेश्वर हो गए दीपक मिश्रा से जूनियर?
खास तौर पर यह बताना जरूरी है कि जो जज सुप्रीम कोर्ट में अपॉइंट किए जाते हैं उन्हें हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस होने का फायदा मिलता भी है कि नहीं, तो बता दें कि ऐसा देखने को नहीं मिलता। सीनियर्टी के चलते दीपक मिश्रा ने चलमेश्वर की जिस बात को खारिज किया उसका कारण उनका प्रोटोकॉल है लेकिन जो जज एक समय में खुद चेलमेश्वर से दो साल जूनियर रहे हों वो आखिर किस सिद्धांत से अब उन्हीं के सीनियर हैं?
23 जून, 1997 में चेलमेश्वर हाई कोर्ट के जज बने, इसके बाद वो गुवाहाटी हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस नियुक्त हुए 3 मई, 2007 में। अब समझ लीजिए कि गुवाहाटी हाई कोर्ट में चेलमेश्वर के चीफ जस्टिस बनने के पूरे दो साल बाद जस्टिस मिश्रा किसी कोर्ट में चीफ हुए। जस्टिस मिश्रा को यह पद 23 दिसंबर 2009 में यहां तक कि जस्टिस खेहर भी नवंबर, 2009 में हाई कोर्ट चीफ हुए।
ऐसे में जस्टिस चेलमेश्वर तब जस्टिस मिश्रा से जूनियर हो गए जब दोनों ने एक ही दिन (10 अक्टूबर 2011) सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति ली। फर्क बस इतना था कि पहले शपथ लेने वाले जस्टिस मिश्रा थे, इसलिए वो जस्टिस चेलमेश्वर से सीनियर हो बन गए।