इन दिनों इंडियन हाॅकी टीम खासा चर्चा में है चाहे पुरुष हाॅकी टीम हो या फिर महिला हाॅकी टीम। दरअसल दोनों ही टीमों ने काफी मशक्कत करके सेमीफाइनल में जगह बनाई है। हालांकि पुरुष हाॅकी टीम फाइनल में जा पाने में असफल हो गई है और उसे ब्राॅन्ज मेडल के लिए एक और मुकाबला करना होगा। वहीं महिला हाॅकी टीम के पास अभी भी सिल्वर व गोल्ड मेडल तक पहुंचने का अवसर है। तो चलिए जानते हैं भारतीय महिला हाॅकी टीम की कप्तान रानी के संघर्ष की कहानी।
महिला हाॅकी टीम पहुंची फाइनल में
हाल ही में ओलंपिक में भारतीय महिला हाॅकी टीम ने वर्ल्ड चैंपियन टीम व तीन बार ओलंपिक पदक विजेता रही टीम आस्ट्रेलिया को 1-0 से क्वार्टरफाइनल में मात दे दी और खुद सेमीफाइनल में जगह बना ली है। बता दें कि भारतीय हाॅकी टीम ने ओलंपिक में ये तीसरी बार हिस्सा लिया है और तीसरे अटेम्प्ट में ही यहां तक पहुंचना भारत के लिए बड़ी बात है। ऐसे में कप्तान रानी रामपाल ने अहम भूमिका निभाई है।
ये है कप्तान रानी की संघर्षपूर्ण कहानी
15 साल की उम्र में वे साल 2010 में विश्वकप की राष्ट्रीय टीम में हिस्सा लेने वाली सबसे कम उम्र की खिलाड़ी बनीं। इसके साथ ही उन्होंने वर्ल्ड गेम्स एथलीट ऑफ द ईयर जीता और अब ओलंपिक में भारतीय महिला हाॅकी टीम की कप्तान बन टीम को सेमीफाइनल तक ले आई हैं। हरियाणा में जन्म लेने वाली रानी ने बताया कि उनके घर में बिजली नहीं हुआ करती थी। उनके पिता तांगा चला कर परिवार का पेट पालते थे। मां घर–घर जा कर नौकरानी का काम करती थी। पिता जी अकसर हरियाणा में खिलाड़ियों को खेलते देखते थे तो अपनी बेटी को भी इस काबिल बनाने का सपना देख लिया।
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दूध में पानी मिला कर पीती थीं रानी
पैसों की तंगी में वे अपनी बेटी के लिए एक हाॅकी स्टिक तक खरीदने के लिए सौ बार सोचते थे तो रानी ने किसी की टूटी हाॅकी स्टिक से खेलना शुरू कर दिया। रानी ने कहा, ‘हमारे घर में घड़ी नहीं थी तो मां आसमान देख कर सटीक 5 बजे उठा देती थी। मुझे मेरे माता–पिता एथलीटों वाला खाना नहीं दे पा रहे थे तो दूध में पानी मिला कर काम चलाया।’ इस तरह संघर्ष करके वे आज इस मुकाम पर पहुंची हैं।
ऋषभ वर्मा