दिल्ली में गुरुवार सुबह दस जनपथ पर हलचल तेज़ थी. हिमाचल के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलकर बाहर निकले ही थे कि बिहार कांग्रेस के नेताओं ने वहां दस्तक दी.अभी-अभी: RJD ने मोदी पर दिया बड़ा बयान, कहा- पहले सुशील मोदी सृजन घोटाले पर दें जवाब…
इन दोनों मुलाकात में फर्क सिर्फ इतना था कि हिमाचल के कद्दावर नेता वीरभद्र सिंह को कांग्रेस अध्यक्ष से मिलने के लिए इंतजार करना पड़ा. इस मुलाकात में उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष के खिलाफ नाराजगी जाहिर की.
वहीं दूसरी और बिहार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी और विधानमंडल दल के नेता सदानंद को कांग्रेस आलाकमान ने तलब किया था.
दरअसल, बिहार में महागठबंधन टूटने के बाद से ही कांग्रेस में उथल-पुथल तेज है. 2015 में कांग्रेस ने 20 साल का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया और महागठबंधन की छत्रछाया में 27 विधायक जीत कर भी आये. फिर क्या था एक बार फिर कांग्रेस के नेता मंत्री बने और सत्ता का सुख भोगने का मौका मिला. लेकिन उन्हें अंदाजा नहीं था कि गठबंधन की गांठ इस तरह उलझ जाएगी और एक बार फिर से साल 2017 में उन्हें सत्ता से बाहर होना पड़ेगा.
सूत्रों की मानें तो बिहार के कांग्रेस नेताओं को आरजेडी का साथ रास नहीं आ रहा है. 27 में से 14 विधायक नीतीश कुमार के साथ जाने के लिए उतावले हैं. जाहिर है इसके सियासी फायदे भी हैं.
कांग्रेस के अशोक चौधरी, अवधेश सिंह, मदन मोहन झा और अब्दुल जलील मस्तान को नीतीश सरकार में मंत्री का पद दिया गया था. मगर, महागठबंधन टूटने के बाद वो बस विधायक ही रह गए.
वहीं जनाधार बरकरार रखने को लेकर भी चिंता है. कांग्रेस के अधिकतर विधायकों का मानना है कि नीतीश कुमार की साफ सुथरी छवि के चलते उनकी गरिमा विधानसभा क्षेत्र में कायम रहेगी. दरअसल, 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के कई विधायक नीतीश कुमार की पसंद थे और जदयू की मदद से जीते थे.
बिहार में बगावत के सुर तीखे होते देख कांग्रेस आलाकमान हरकत में आई, सदानंद और अशोक चौधरी को तलब किया गया. सूत्रों की मानें तो दोनों नेताओं को कड़ी फटकार लगाई गई है और कांग्रेस के कुनबे को साथ रखने की हिदायत दी गई है. यही वजह है कि सोनिया गांधी के आवास से बाहर निकलते वक्त अशोक चौधरी और सदानंद मीडिया से बचते हुए नजर आए.
हालांकि, अशोक चौधरी ने मीडिया के सामने ऐसी तमाम अटकलों को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा, ‘यह सब अफवाह है और हम बिहार के संगठन को कैसे मजबूत करें इसकी चर्चा के लिए यहां पर आए थे. इस बैठक में गुलाम नबी आजाद, अहमद पटेल और सीपी जोशी साहब भी थे. कांग्रेस में टूट की खबर का कोई आधार नहीं है.’
बहरहाल, बिहार कांग्रेस पर मुसीबत के बादल मंडरा रहे हैं. ऐसे में नीतीश और मोदी की जोड़ी के सामने 2019 तक कांग्रेस को अपने कुनबे को साथ रखना एक बड़ी चुनौती होगी.