प्रबंधन गड़बड़ाने के बावजूद भाजपा के लिए योगी सरकार के पांचवें मंत्री की कुर्सी बचाने के रास्ते अभी पूरी तरह बंद नहीं हुए हैं। परिषद की खाली सात सीटों में सिर्फ चार के चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद भाजपा के प्रबंधकों को एक रास्ता सूझ सकता है कि किसी मनोनीत एमएलसी से त्यागपत्र दिला दिलाकर सभी मंत्रियों की कुर्सी बचा ली जाए। यहां यह बात ध्यान में रखने वाली है कि पिछले दिनों इस्तीफा देते-देते रह गए समाजवादी पार्टी के मधुकर जेटली भी मनोनीत कोटे से एमएलसी हैं।अभी-अभी: JDU के महासचिव ने शरद यादव को पार्टी से निकालने का लिया बड़ा फैसला….
मनोनीत कोटे का कोई एमएलसी त्यागपत्र देगा या नहीं, यह तो आगे पता चलेगा, पर पिछले दिनों मधुकर जेटली के त्यागपत्र के लिए जाने और फिर अचानक लौट आने को देखते हुए इन कयासों को बल मिल रहा है। जेटली का कार्यकाल अप्रैल 2022 तक है।
जेटली के अलावा भी मनोनीत कोटे के अन्य नौ सदस्यों में कुछ का कार्यकाल मई 2022 तो कुछ का जुलाई 2021 तक है। मतलब, साफ है कि भाजपा के प्रबंधक मनोनीत कोटे के किसी एमएलसी के त्यागपत्र से सीट खाली कराकर पांचवें मंत्री के समायोजन का रास्ता निकाल सकते हैं। हालांकि इस विषय में कोई भी बोलने को तैयार नहीं है।
कोई समस्या नहीं
जानकारों की मानें तो मनोनयन में कोई बड़ी समस्या भी नहीं आने वाली। सीट खाली होने पर यह काम सिर्फ सरकार के एक प्रस्ताव और उसे राज्यपाल की मंजूरी से हो सकता है। इस प्रक्रिया में एक या दो दिन से अधिक नहीं लगेगा। हालांकि राज्यपाल राम नाईक ने सपा की सरकार में मनोनयन के लिए आई सूची पर आपत्ति उठाई थी लेकिन इस बार ऐसा होने की संभावना नहीं है। कारण, सरकार में दो ऐसे चेहरे हैं जिनका इस कोटे में मनोनयन करने में कोई बाधा नहीं आने वाली। डॉ. दिनेश शर्मा शिक्षा क्षेत्र में काम करने के कारण इन सीटों के लिए शर्त पूरी करते हैं तो मोहसिन रजा क्रिकेटर रहे हैं।
परिषद में मनोनयन कोटे की 10 सीटें
विधान परिषद में मनोनयन कोटे की 10 सीटें हैं। राज्यपाल प्रदेश सरकार के सुझाव पर शिक्षा, कला, संस्कृति, लोक कला, विज्ञान, सेवा या अन्य किसी क्षेत्र में उल्लेखनीय काम करने वालों का इन सीटों पर मनोनयन कर सकते हैं।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा, स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री स्वतंत्र देव सिंह और राज्य मंत्री मोहसिन रजा अभी विधानमंडल के किसी सदन के सदस्य नहीं हैं। इन्हें 18 सितंबर तक विधानमंडल के किसी न किसी सदन की सदस्यता लेनी जरूरी है।
भाजपा के प्रबंधकों ने विधान परिषद में सीटें खाली कराकर इसका रास्ता निकालने की कोशिश की थी, पर तकनीकी कारणों से इनमें से सिर्फ चार सीटों के ही उपचुनाव संभव हो पा रहे हैं। ऐसे में पांचवें मंत्री की कुर्सी बचाने का नया संकट भाजपा के प्रबंधकों के सामने आ खड़ा हुआ है।