इन दिनों देश के हर शख्स की जुबान पर मीराबाई चानू का ही नाम आ रहा है। दरअसल मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलंपिक में देश के लिए सिल्वर मेडल जीत कर अपने साथ–साथ देश वासियों का नाम भी रोशन किया है। तो चलिए जानते हैं चानू के संघर्ष की कहानी और अपने आप को चार्ज व एक्टिव रखने के लिए वे क्या खाती हैं।
इस तरह से ओलंपिक में जीता वेटलिफ्टिंग का खिताब
49 किलो वर्ग में भारती की वेटलिफ्टर मीराबाई चानू ने टोक्यो में सिल्वर मेडल जीत कर इतिहास भी रचा और देश के नाम भी रोशन किया। शनिवार के दिन उन्होंने ये कारनामा किया है। उन्होंने 202 किलो वजन उठाया था और इस तरह इतिहास रचने में सफल हुईं। वहीं मीराबाई चानू ने स्नैच में 87 किलो व क्लीन एंड जर्क में 115 किलो वजन उठा कर ये जीत देश के नाम की है। वहीं खास बात ये है कि मीराबाई चानू ओलंपिक जैसे प्लेटफार्म पर सिल्वर मेडल जीतने वाली दूसरी भारतीय महिला बन गई हैं।
12 साल की उम्र से बनना था आर्चर, बन गईं वेटलिफ्टर
जब चानू 12 साल की थीं तबसे वे वेटलिफ्टिंग की ट्रेनिंग कर रही हैं। वे सर्वप्रथम एक आर्चर बनना चाहती थीं। फिर वे भारतीय खेल प्राधिकरण पहुंची और आर्चरी की ट्रेनिंग लेना शुरू कर दीं। उन्होंने ट्रेनिंग के कुछ दिनों बाद ही जानी मानी वेटलिफ्टर कुंजारानी देवी का वीडियो देखा और बस उसी पल उन्होंने वेटलिफ्टिंग करने का फैसला ले लिया। साल 2006 में उन्होंने ट्रेनिंग के लिए एकेडमी ज्वाइन की थी।
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सरकारी नौकरी के बावजूद पिता नहीं चला पाते थे खर्च
बता दें कि मीराबाई चानू घर से 20 किलोमीटर दूर ट्रेनिंग लेने जाती थीं। वे सड़क पर चल रहे किसी भी ट्रक में लिफ्ट लेकर जाती थीं या फिर कई बार साइकिल पे सवार हो कर वहां पहुंचती थीं। तूफान, बारिश, सर्दी व गर्मी में भी वे अपनी ट्रेनिंग से कॉम्प्रोमाइज नहीं करती थीं। उनके पिता कृति सिंह सरकारी नौकरी करते थे। उनके 6 बच्चे थे जिनके भरण पोषण के लिए पैसे कम पड़ते थे। हालांकि फिर भी पिता ने चानू की ट्रेनिंग में कमी नहीं की। चानू ने 2014 में आयोजित हुए काॅमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर मेडल अपने नाम किया था। वहीं 2017 में उन्होंने वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता था। वहीं 2018 में काॅमनवेल्थ खेलों में भी चानू ने सिल्वर मेडल अपने नाम किया था।
ऐसे रखती है खुद को चार्ज
बता दे मीरा बाई चानू जहां भी टूर्नामेंट खेलने जाती है। वहां अपने साथ देश की मिट्टी लेकर जरूर जाती हैं। मैच से पहले मिट्टी को अपने सिर से लगाकर आशीर्वाद लेना कभी नहीं भूलती। इससे उन्हें एक खास तरह की एनर्जी मिलती हैं।
ऋषभ वर्मा