डिप्रेशन से ग्रसित लोगो के ठीक करने का सबसे अच्छा तरीका है म्यूजिक थेरेपी....

डिप्रेशन से ग्रसित लोगो को ठीक करने का सबसे अच्छा तरीका है म्यूजिक थेरेपी….

अवसाद से ग्रसित लोग न केवल भूख और नींद की कमी जैसी समस्या से प्रभावित होते हैं, बल्कि उनमें आत्मविश्वास की कमी और हीनता का भाव तक आ जाता है। नतीजतन, उनकी पूरी दिनचर्या ही गड़बड़ा जाती है। इसके चलते लोग आत्महत्या तक कर डालते हैं। अवसाद के चलते हर साल दस लाख लोगों की मौत तक हो जाती है।डिप्रेशन से ग्रसित लोगो के ठीक करने का सबसे अच्छा तरीका है म्यूजिक थेरेपी....जानें कैसे: सेहत और खूबसूरती दोनों के लिए गुणकारी है अखरोट का तेल

डिप्रेशन के लिए म्यूजिक थेरेपी

लेकिन घबराइए नहीं, क्‍योंकि अवसाद से ग्रसित करोड़ों लोग सुरों के सागर में गोते लगा कर इस समस्या से निजात पा सकते हैं। यह बात एक शोध से भी साबित हो गई है।

प्रमुख शोधकर्ता अन्ना माराटोस का कहना है कि म्यूजिक थेरेपी की मदद से व्यक्ति का मूड बेहतर किया जा सकता है और उसे अवसाद से उबारा जा सकता है। यह शोध किसी न किसी रूप में अवसाद से पीडि़त दुनिया भर के लगभग 12 करोड़ लोगों के लिए उम्मीद की किरण है।

शोधकर्ताओं का मानना है कि दवाएं और मानसिक चिकित्सा तो अवसाद का पारंपरिक इलाज हैं ही, लेकिन म्यूजिक थेरेपी के भी अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं। अवसाद से निपटने के लिए म्यूजिक थेरेपी का इस्तेमाल तो काफी पहले से होता रहा है।

लेकिन अब यह बात वैज्ञानिक तौर पर साबित हो गई है कि यह थेरेपी अपना असर भी दिखाती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि जिन लोगों पर म्यूजिक थेरेपी का प्रयोग किया गया, उनमें अवसाद का स्तर काफी कम पाया गया।

तनाव का असर

1. तंत्रिका तंत्र : तनाव शारीरिक हो या मानसिक, शरीर अपनी ऊर्जा को संभावित खतरे से निपटने में लगा देता है। इस दौरान तंत्रिका तंत्र की ओर से एड्रेनाल ग्रंथि को एड्रेनेलाइन और कोर्टिसोल जारी करने का संकेत दिया जाता है। ये दोनों हार्मोन दिल की धड़कन को तेज कर देते हैं, ब्लड प्रेशर बढ़ा देते हैं। पाचन क्रिया तब्दील हो जाती है। खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है।

2. मस्कुलोस्केलेटल सिस्टम : मस्कुलोस्केलेटल सिस्टम यानी मसल्स और स्केलेटन से जुड़ी वह प्रक्रिया जो शरीर को गतिमान बनाती है। तनाव के दौरान मसल्स यानी मांसपेशियां तनाव में आ जाती हैं। नतीजा होता है सिर दर्द और माइग्रेन जैसी कई दुश्वारियां।

3. श्वसन तंत्र : तनाव की दशा में सांस की आवृत्ति बढ़ जाती है। तेज सांस लेने कभी-कभार दिल का दौरा भी पड़ जाता है।

4. हृदय की धमनियां : एक्यूट या तीव्र तनाव क्षणिक होता है। इसके आघात से हृदय की गति बढ़ जाती है। हृदय की मांसपेशियों में संकुचन भी ज्यादा होता है। वेसल्स या वाहिकाएं जो बड़ी मांसपेशियों और हृदय तक रक्त पहुंचाती हैं, फैल जाती हैं। नतीजा होता है कि अंगों में रक्त दबाव बढ़ जाता है। तीव्र तनाव की पुनरावृत्ति पर हृदय की धमनियों में सूजन आ जाती है। नतीजा होता है हृदयाघात।

5. अंत:स्राव प्रणाली : एड्रेनाल ग्रंथि : जब शरीर तनाव में होता है तो दिमाग हाइपोथैलेमस से संकेत भेजता है। संकेत मिलते ही एड्रेनाल की ऊपरी परत से क्रिस्टोल और इसी ग्रंथि का केंद्र जिसे एड्रेनाल मेड्यूला कहते हैं, वह एपिनेफ्राइन का उत्पादन करने लगता है। इन्हें तनाव हार्मोस भी कहा जाता है।

6. पाचन तंत्र क्रिया : भोजन नलिका : तनाव के शिकार लोग या तो जरूरत से ज्यादा खा लेते हैं या फिर कम। अगर ज्यादा खाते हैं या फिर तंबाकू या अल्कोहल की मात्रा बढ़ जाती है, तो भोजन नलिका में जलन और एसिडिटी जैसी दिक्कतों से दो-चार होना पड़ता है।

7. प्रजनन क्रिया : तनाव की दशा में क्रिस्टोल का अत्यधिक स्राव पुरुषों की प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकता है। अत्यधिक तनाव टेस्टोस्टेरान और शुक्राणुओं के उत्पादन को क्षीण कर देता है। इससे संतानोत्पति क्षमता जा सकती है। तनाव का असर महिलाओं में उनके मासिक धर्म पर पड़ता है। अनियमित होने के साथ अन्य परेशानियां भी बढ़ जाती हैं। यौनेच्छा भी घटने लगती है। 

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