धर्म

इस दिशा में तिजोरी रखने से होती है धन में कमी

हर इंसान यह चाहता है कि उसके पास हमेशा ही सबसे ज्यादा धन हो और कितना भी खर्च करे पर उसके धन में लगातार बढ़ोत्तरी होती रहे. क्युच लोग कंजूसी के कारण पैसों को खर्च नहीं करते है फिर भी उनके पास पैसे टिक नहीं पाते है. वास्तुशास्त्र के अनुसार …

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हिन्दू धर्म में क्यों माना जाता है अन्न को देवता

शास्त्रों के अनुसार, वह कोई भी द्रव या ठोस वस्तु जिससे किसी सजीव को प्राण और जीवन प्राप्त होता है वह ईश्वर के समान माना जाता है. उसी प्रकार जल,अन्न और फल आदि को भी देवता की उपाधि दी गई है जिसमे अन्न को सर्वश्रेष्ठ माना गया है. इस संसार …

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जानिए कैसे एक गरीब ब्राह्मण बना धन का देवता

शिव पुराण की कथा के अनुसार,पूर्व जन्म में कुबेर देव एक गुणनिधि नामक ब्राह्मण थे.ब्राह्मणरूप बालपन में उन्होंने पिता के द्वारा धर्म शास्त्रों की शिक्षा ग्रहण की लेकिन धीरे-धीरे गलत मित्रो की कुसंगति के कारण उनका ध्यान धार्मिक कर्मकांडो से हटकर गलत कार्यों में लग गया. गुणनिधि ने धर्म से …

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13 मई 2018, राशिफल: इन राशि के लिए लाभदायक होगा आज का दिन…

मेष: मानसिक रूप से आपकी एकाग्रता कम रहेगी। स्वास्थ्य का ध्यान रखिएगा। धार्मिक कार्य तथा प्रवास हो सकता है। नए कार्य का प्रारंभ आज कर सकेंगे। आकस्मिक धनलाभ होगा। वृषभ: गृह एवं संतान सम्बंधी शुभ समाचार मिलेंगे। मित्रों से भेंट के कारण मन में आनंद छाया रहेगा। व्यवसायिक एवं आर्थिक …

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जानिए कैसे एक गरीब ब्राह्मण बना धन का देवता

शिव पुराण की कथा के अनुसार,पूर्व जन्म में कुबेर देव एक गुणनिधि नामक ब्राह्मण थे.ब्राह्मणरूप बालपन में उन्होंने पिता के द्वारा धर्म शास्त्रों की शिक्षा ग्रहण की लेकिन धीरे-धीरे गलत मित्रो की कुसंगति के कारण उनका ध्यान धार्मिक कर्मकांडो से हटकर गलत कार्यों में लग गया. गुणनिधि ने धर्म से विमुख होकर अब आलस्य को अपना साथी बना लिया था.उनकी इस आदत से परेशान होकर एक दिन उनके पिता ने उनको घर से बाहर निकाल दिया. तब गुणनिधि ब्राह्मण असहारा और असहाय होकर भीख मांग कर अपना गुजरा करने लगा. एक दिन उसे पूरा समय कुछ भी नहीं मिला भूख प्यास से विचलित होकर वह वन की ओर चले गया. वहां उसे कुछ ब्राह्मण अपने साथ भोग की सामग्री ले जाते हुए दिखाई दिए. भोग सामग्री को देख गुणनिधि की भूख और अधिक बढ़ गई तथा वह भी उन ब्राह्मणो के पीछे चलते हुए गुणनिधि एक शिवालय आ पहुंचा. उसने देखा मंदिर में ब्राह्मण भगवान शिव की पूजा कर रहे थे.भगवान शिव को भोज अर्पित कर वे भजन कीर्तन में मग्न हो गए.रात्रि के समय भजन कीर्तन की समाप्ति के बाद सभी ब्राह्मण सो गए तभी गुणनिधि ने चुपके से भगवान शिव के सामने रखा भोग को चुराकर भागने लगा. परन्तु भागते समय गुणनिधि का एक पाँव किसी ब्राह्मण पर लग गया तथा वह चोर-चोर चिल्लाने लगा. गुणनिधि जान बचाकर भागा परन्तु नगर के रक्षक का निशाना बन गया तथा उसकी मृत्यु हो गई. उस दिन महाशिवरात्रि का महापर्व था और गलती से ही सही पर उस दिन गरीब ब्राह्मण गुणनिधि से उस व्रत का पालन हो गया जिसके शुभ फल स्वरुप वह अगले जन्म में वह कलिंग देश का राजा बना.अपने इस जन्म में गुणनिधि भगवान शिव का परम भक्त था वह सदैव भगवान शिव की भक्ति में खोया रहता. उसकी कठिन तपस्या को देख भगवान शिव उस पर प्रसन्न हुए तथा उसे वरदान स्वरूप यक्षों का स्वामी तथा देवताओ का कोषाध्यक्ष बना दिया.

शिव पुराण की कथा के अनुसार,पूर्व जन्म में कुबेर देव एक गुणनिधि नामक ब्राह्मण थे.ब्राह्मणरूप बालपन में उन्होंने पिता के द्वारा धर्म शास्त्रों की शिक्षा ग्रहण की लेकिन धीरे-धीरे गलत मित्रो की कुसंगति के कारण उनका ध्यान धार्मिक कर्मकांडो से हटकर गलत कार्यों में लग गया. गुणनिधि ने धर्म से …

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जानिए क्यों इस्लाम धर्म में पूजे जाते है महादेव

यह अक्सर देखने और सुनने में आता है कि हिंदू धर्म के अनुयायी मजारों और दरगाहों पर इबादत करने के लिए गए हैं. लेकिन आपने कभी ये सुना है कि कोई मुस्लिम सम्प्रदायवादी भोलेनाथ की पूजा करते हैं. यह कोई कहानी नहीं है, बल्कि यह सच है. दरअसल गोरखपुर से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित एक गांव में महादेव को मुस्लिम के द्वारा पूजा भी जाते है और उनकी इबादत अपने आराध्य कि तरह ही की जाती है. उत्तर प्रदेश में गोरखपुर जिले में यह जगह ऐसी है जहां भगवान शिव वर्षों से मुस्लिमों के द्वारा पूजे जा रहे हैं. उत्तरप्रदेश के गोरखपुर से 25 किलोमीटर दूर सरेया तिवारी गांव में एक ऐसा शिवलिंग स्थापित मंदिर है,जहाँ पर इस शिवलिंग को हिन्दुओं के द्वारा नहीं बल्कि मुस्लिमों के द्वारा भोलेनाथ की पूजा की जाती हैं.मंदिर में स्थित शिवलिंग की मुस्लिम शागिर्द उसी प्रकार इबादत करते है जैसे अपने आराध्य करते है. बता दे कि ऐसा करने के पीछे एक खास वजह है.दरअसल मुस्लिम जिस शिवलिंग की पूजा करते हैं उसपर कलमा खुदा हुआ है. ऐसा कहा जाता है कि अपने आक्रमण के दौरान महमूद गजनवी ने इसे तोड़ने की कोशिश की थी, मगर वो कामयाब नहीं हो सका. इसके बाद उसने इस पर उर्दू में "लाइलाहाइल्लललाह मोहम्मदमदुर्र् रसूलअल्लाह" लिखवा दिया ताकि कोई भी हिंदू इसकी पूजा नहीं कर पाए.

यह अक्सर देखने और सुनने में आता है कि हिंदू धर्म के अनुयायी मजारों और दरगाहों पर इबादत करने के लिए गए हैं. लेकिन आपने कभी ये सुना है कि कोई मुस्लिम सम्प्रदायवादी भोलेनाथ की पूजा करते हैं. यह कोई कहानी नहीं है, बल्कि यह सच है. दरअसल गोरखपुर से …

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जनेऊ धारण करने से पहले जरूर बोलना चाहिए यह मंत्र

हिंदू धर्म में प्रत्येक हिंदू का कर्तव्य है जनेऊ पहनना और उसके नियमों का पालन करना। हर हिंदू जनेऊ पहन सकता है, बशर्ते कि वह उसके नियमों का पालन करे। ब्राह्मण ही नहीं समाज का हर वर्ग जनेऊ धारण कर सकता है। जनेऊ धारण करने के बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। द्विज का अर्थ होता है दूसरा जन्म। जनेऊ में मुख्‍यरूप से तीन धागे होते हैं। यह तीन सूत्र त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं। यह तीन सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं। यह सत्व, रज और तम का प्रतीक होते हैं। यह गायत्री मंत्र के तीन चरणों का प्रतीक हैं। यह तीन आश्रमों का प्रतीक है। संन्यास आश्रम में यज्ञोपवीत को उतार दिया जाता है। तीन सूत्रों वाले इस यज्ञोपवीत को गुरु दीक्षा के बाद हमेशा धारण किया जाता है। अपवित्र होने पर होने पर यज्ञोपवीत बदल लिया जाता है। नया जनेऊ पहनने से पहले स्नान के उपरांत शुद्ध कर लेने के पश्चात अपने दोनों हाथों में जनेऊ को पकड़ें। इसके बाद नीचे लिखे मंत्र का उच्चारण करें - ॐ यज्ञोपवीतम् परमं पवित्रं प्रजा-पतेर्यत -सहजं पुरुस्तात। आयुष्यं अग्र्यं प्रतिमुन्च शुभ्रं यज्ञोपवितम बलमस्तु तेजः।। इसके बाद गायत्री मन्त्र का कम से कम 11 बार उच्चारण करते हुए जनेऊ या यज्ञोपवित धारण करें। महिलाएं भी पहन सकती हैं जनेऊ वह लड़की जिसे आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करना हो, वह जनेऊ धारण कर सकती है। ब्रह्मचारी तीन और विवाहित पुरुष छह धागों का जनेऊ पहनते हैं। यज्ञोपवीत के छह धागों में से तीन धागे स्वयं के और तीन धागे पत्नी के होते हैं। यज्ञोपवीत में पांच गांठ लगाई जाती है जो ब्रह्म, धर्म, अर्ध, काम और मोक्ष का प्रतीक है। यह पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों का भी प्रतीक भी है।

हिंदू धर्म में प्रत्येक हिंदू का कर्तव्य है जनेऊ पहनना और उसके नियमों का पालन करना। हर हिंदू जनेऊ पहन सकता है, बशर्ते कि वह उसके नियमों का पालन करे। ब्राह्मण ही नहीं समाज का हर वर्ग जनेऊ धारण कर सकता है। जनेऊ धारण करने के बाद ही द्विज बालक …

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पीपल की पूजा से शनि देव कैसे होते हैं शांत, पढ़ें पौराणिक कहानी

हिंदू धर्म में पीपल की पूजा का विशेष महत्व है। पीपल एकमात्र पवित्र देववृक्ष है, जिसमें सभी देवताओं के साथ ही पितरों का भी वास रहता है। श्रीमद्भगवदगीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम, मूलतो ब्रहमरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे, अग्रत: शिवरूपाय अश्वत्थाय नमो नम:। अर्थात मैं वृक्षों में पीपल हूं। पीपल के मूल में ब्रह्मा जी, मध्य में विष्णु जी तथा अग्र भाग में भगवान शिव जी साक्षात रूप से विराजित हैं। स्कंदपुराण के अनुसार पीपल के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान श्री हरि और फलों में सभी देवताओं का वास है। इसलिए पीपल को पूज्यनीय पेड़ माना जाता है। वैज्ञानिक कारण सभी वृक्ष दिन के समय में सूर्य की रोशनी में कार्बन डाइ आक्साईड ग्रहण करके अपने लिए भोजन बनाते हैं। वहीं, रात को सभी वृक्ष ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन-डाइआक्साईड छोड़ते हैं। इसी वजह से रात के समय में पेड़ों के नीचे सोने से मना किया जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार पीपल का पेड़ 24 घंटों में सदा ही आक्सीजन छोड़ता है इसलिए यह मानव उपकारी वृक्ष है। संभवतः इसीलिए पीपल को पूज्य मानकर सदियों से उसकी पूजा होती चली आ रही है। शनि की पीड़ा से मुक्ति माना जाता है कि पीपल के पड़े की पूजा करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं और जिन लोगों को शनि दोष होता है उन्हें इसके कुप्रभाव से मुक्ति मिल जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय स्वर्ग पर असुरों ने कब्जा कर लिया था। कैटभ नाम का राक्षस पीपल वृक्ष का रूप धारण करके यज्ञ को नष्ट कर देता था। जब भी कोई ब्राह्मण समिधा के लिए पीपल के पेड़ की टहनियां तोड़ने पेड़ के पास जाता, तो यह राक्षस उसे खा जाता। ऋषिगण समझ ही नहीं पा रहे थे कि ब्राह्मण कुमार कैसे गायब होते चले जा रहे हैं। तब उन्होंने शनि देव से सहायता मांगी। इस पर शनिदेव ब्राह्मण बनकर पीपल के पेड़ के पास गए। कैटभ ने शनि महाराज को पकड़ने की कोशिश की, तो शनिदेव और कैटभ में युद्ध हुआ। शनि ने कैटभ का वध कर दिया। तब शनि महाराज ने ऋषियों को कहा कि आप सभी भयमुक्त होकर शनिवार के दिन पीपल के पड़े की पूजा करें, इससे शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलेगी। जनेऊ धारण करने से पहले जरूर बोलना चाहिए यह मंत्र दूसरी कथा के अनुसार, ऋषि पिप्लाद के माता-पिता की मृत्यु बचपन में ही हो गई थी। बड़े होने इन्हें पता चला कि शनि की दशा के कारण ही इनके माता-पिता को मृत्यु का सामना करना पड़ा। इससे क्रोधित होकर पिप्लाद ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर घोर तप किया। इससे प्रसन्न होकर जब ब्रह्मा जी ने उनसे वर मांगने को कहा, तो पिप्लाद ने ब्रह्मदंड मांगा और पीपल के पेड़ में बैठे शनि देव पर ब्रह्मदंड से प्रहार किया। इससे शनि के पैर टूट गए। शनि देव दुखी होकर भगवान शिव को पुकारने लगे। भगवान शिव ने आकर पिप्पलाद का क्रोध शांत किया और शनि की रक्षा की। तभी से शनि पिप्पलाद से भय खाने लगे। पिप्लाद का जन्म पीपल के वृक्ष के नीचे हुआ था और पीपल के पत्तों को खाकर इन्होंने तप किया था इसलिए माना जाता है कि पीपल के पड़े की पूजा करने से शनि का अशुभ प्रभाव दूर होता है।

हिंदू धर्म में पीपल की पूजा का विशेष महत्व है। पीपल एकमात्र पवित्र देववृक्ष है, जिसमें सभी देवताओं के साथ ही पितरों का भी वास रहता है। श्रीमद्भगवदगीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम, मूलतो ब्रहमरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे, अग्रत: शिवरूपाय अश्वत्थाय नमो नम:। अर्थात मैं वृक्षों …

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हिन्दू धर्म में क्यों माना जाता है अन्न को देवता

शास्त्रों के अनुसार, वह कोई भी द्रव या ठोस वस्तु जिससे किसी सजीव को प्राण और जीवन प्राप्त होता है वह ईश्वर के समान माना जाता है. उसी प्रकार जल,अन्न और फल आदि को भी देवता की उपाधि दी गई है जिसमे अन्न को सर्वश्रेष्ठ माना गया है. इस संसार में अन्न के एक दाने भर से भी व्यक्ति को जीवनदान दिया जा सकता है. हिंदू धर्मशास्त्रों में अन्न को देवता माना गया है.ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति अन्न का अनादर करता है या नियमानुसार भोजन नहीं करता, उससे अन्न देवता रुष्ट हो जाते हैं.शास्त्रों में अन्न को ग्रहण करने के कुछ जरूरी नियम बताए गए हैं. इन नियमों के द्वारा अन्न का भोग करता है उसे जीवन में स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त होती है. भोजन करने से पहले ही परोसी हुई थाली में अन्न देवता को नमन करके उनकी प्राप्ति के लिए उनका धन्यवाद जरूर करना चाहिए. भोजन करते समय यदि अण्णन का कोई दान जमीं पर गिर जाता है तो उसे व्यर्थ कूड़े में नहीं फेकना चाहिए बल्कि सावधानी से कीड़ी चींटी या मूसक के बिल के पास रख देना चाहिए.अन्न को कचरे में फेंकने से अन्न देवता का अनादर होता है और वो रुष्ट होते है. शास्त्रों में भी ऐसा करने की साफ मनाही की गई है.

शास्त्रों के अनुसार, वह कोई भी द्रव या ठोस वस्तु जिससे किसी सजीव को प्राण और जीवन प्राप्त होता है वह ईश्वर के समान माना जाता है. उसी प्रकार जल,अन्न और फल आदि को भी देवता की उपाधि दी गई है जिसमे अन्न को सर्वश्रेष्ठ माना गया है. इस संसार …

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क़ुरान में पर्दा करने को क्यों दी जाती है अहमियत

क़ुरान में परदे को को खास स्थान दिया गया है. पराई स्त्री और पराये धन की तरफ नज़र जाने को भी इस्लाम में पाप समझा जाता है.अदब को क़ुरान में बेहद जरूरी बताया गया है. मुस्लिम धर्म में किसी स्त्री को बिना सिर पर परदे के नहीं रहना होता है. इस नियम का वर्णन क़ुरान में भी किया गया है. यह नियम मुस्लिम धर्मगुरु हज़रत मुहम्मद साहब जी के द्वारा बनाया गया है. यह नियम स्त्रियों की अस्मिता और लज्जापूर्ण स्वाभाव को व्यक्त करने वाली तहज़ीब का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. ऐसा कहा जाता है कि मुस्लिम पैगम्बर हज़रत मुहम्मद साहेब के परिवार में स्त्रियों का रहन-सहन और स्वभाव ऐसा था कि उनके पूरे जीवन में कभी भी किसी ने उनकी परछाई तक नहीं देखीं .उनका यह आचरण, धीमी और आदर से भरपूर आवाज़ के साथ बेहतरीन सलीके के लिए पूरे मक्का में प्रसिद्द था. वहीं से मुस्लिम समाज में परदे को अदब जताने का सलीका मानते हुए अपनाया गया. मुस्लिम इतिहासकारों के अनुसार अरब के रेगिस्तान के एक शहर मक्काह में 570 ईस्वी में इस्लाम धर्म के संस्थापक हज़रत मुहम्मद का जन्म हुआ माना जाता है.इन्हे इस्लाम के सबसे महान नबी(रसूल) और खुदा के आख़िरी सन्देशवाहक के रूप में जाना जाता है.

क़ुरान में परदे को को खास स्थान दिया गया है. पराई स्त्री और पराये धन की तरफ नज़र जाने को भी इस्लाम में पाप समझा जाता है.अदब को क़ुरान में बेहद जरूरी बताया गया है. मुस्लिम धर्म में किसी स्त्री को बिना सिर पर परदे के नहीं रहना होता है. …

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