धर्म

आज 15 अप्रैल 2018 का राशिफल: इन राशि वालों को मिलेगा धन लाभ

मेष – आज आपको आर्थिक लाभ मिल सकता है। सेहत में सुधार होगा। महिला मित्रों का सहयोग मिलेगा। खान-पान में संयम रखना पड़ेगा। नेगेटिव विचारों से बचें। वाणी में मिठास रहेगी। संतान पक्ष से खुशखबरी मिल सकती है। वृषभ- आज धन अधिक खर्च होगा। सहयोगियों के साथ विवाद हो सकता है। शैक्षिक …

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डाॅलर माता मंदिर के नाम से विख्यात है यह मंदिर

भारत एक ऐसा देश है, जहां पर एक साथ कई जाति व धर्म के लोग रहते हैं, इसलिए भारत को धर्म प्रधान देश कहा जाता है। आज हम आपसे भारत की इसी महत्ता के बारे में बात करने वाले हैं। वैसे तो जब धर्म कि बात आती है, तो हिन्दू-मुस्लिम अलग-अलग हो जाते हैं। लेकिन भारत में एक ऐसा मंदिर भी है, जहां पर एक मुस्लिम महिला कि पूजा कि जाती हैं। जी हां जानकर तो आपको भी यकीन नहीं होता होगा लेकिन यह जानकारी एक दम सच है। तो चलिए जानते हैं इसके बारे में कुछ विस्तार से.... दरअसल, गुजरात के अहमदाबाद से करीब 40 किमी. दूर एक 'झूलासन' गांव है, जहां हिंदू और मुस्लिम एकता के रूप मे मुस्लिम महिला की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि सैकड़ों साल पहले डोला नाम की एक मुस्लिम महिला ने उपद्रवियों से अपने गांव को बचाने के लिए बड़ी साहस से उनसे लड़ाई की। अपने गांव की रक्षा करते करते डोला ने अपनी जान दे दी। कहा जाता है कि मरने के बाद डोला का शरीर एक फूल मे बदल गया था और बलिदान के चलते लोगो ने फूल के ऊपर ही मंदिर बनवा दिया। गांव के लोग आज भी मानते हैं कि डोला आज भी न सिर्फ उनके गांव की रक्षा कर रही है बल्कि लोगों के दुख और दर्द को भी दूर करती है। इस मंदिर को डाॅलर माता मंदिर के नाम से भी जानते है, कयोकि इस गांव मे 1500 से अधिक लोग अमेरिकी है। आपको बता दें कि सुनीता विलियम्स जब अंतरिक्ष यात्रा पर गई थी, तब इस मंदिर मे एक अखंड ज्योति जलाई थी, जो लगातार 4 महीने तक जलती रही थी।

भारत एक ऐसा देश है, जहां पर एक साथ कई जाति व धर्म के लोग रहते हैं, इसलिए भारत को धर्म प्रधान देश कहा जाता है। आज हम आपसे भारत की इसी महत्ता के बारे में बात करने वाले हैं। वैसे तो जब धर्म कि बात आती है, तो हिन्दू-मुस्लिम …

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तो इसलिए भगवान विष्णु को हरि नाम से भी जाना जाता है

भगवान विष्णु का दिन गुरूवार माना जाता है, इस दिन अगर आप भगवान विष्णु जी कि पूजा-अर्चना करते है, तो इसका फल आपको जरूर मिलेगा। लेकिन यहां पर आज हम आपसे गुरूवार को की जाने वाली पूजा के बारे में नहीं बल्कि भगवान विष्णु से जुड़ी कुछ ऐसी बातों के बारे में चर्चा करने वाले हैं, जिसके बारे में शायद आप भी नहीं जानते होगें। दअरसल हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु को हरि के नाम से भी जाना जाता है, इतना ही नहीं इन्हे हरि नाराण के नाम से भी पुकारा जाता है। तो क्या कभी आपने इस बात पर गौर किया है कि भगवान विष्णु को हरि क्यों कहा जाता है? अगर आप भी इस बात से अंजान हैं, तो यहां पर आज हम इसी विषय से जुड़ी एक पौराणिक कथा के बारे में बताने जा रहे है, जिससे हमे इस बात का पता चलेगा कि भगवान विष्णु कैसे हरि बन गये? पालनहार भगवान विष्णु के सबसे बड़े भक्त नारद मुनि उन्हें नारायण कहकर ही बुलाते हैं। तीनों लोकों में नारद मुनि भगवान को नारायाण-नारायण कह कर पुकारते हैं। भगवान विष्णु का निवास क्षीर सागर में है। वो शेषनाग के ऊपर शयन करते हैं। उनके चार हाथ है। जिसमें वह अपने नीचे वाले बाएं हाथ में कमल, अपने नीचे वाले दाहिने हाथ में कौमोदकी,ऊपर वाले बाएं हाथ में शंख, और अपने ऊपर वाले दाहिने हाथ में चक्रधारण करते हैं। भगवान विष्णु के भक्त उन्हें कई नामों से बुलाते हैं। कोई उन्हें कहता है अनन्तनरायण, तो कोई लक्ष्मीनारायण। कोई शेषनारायण से उन्हें पुकारता है। नारायण बनने की कथा इन सभी नामों में नारायण जुड़ा रहता है। प्राचीन पौराणिक कथा के अनुसार जल भगवान विष्णु के पैरों से प्रकट हुआ था। भगवान विष्णु के पैर से बाहर आई गंगा नदी को विष्णुपदोदकी के नाम से जाना जाता है। जल को नीर या नर नाम से जाना जाता है। भगवान विष्णु भी पानी में रहते हैं इसलिए नर से उनका नाम नारायण बना। पानी के अंदर रहने वाले भगवान। भगवान विष्णु को हरि नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू पुराणों की माने तो हरि का मतलब हरने वाला या चुराने वाला होता है। हरि हरति पापणि इसका मतलब है, हरि वो भगवान हैं, जो जीवन से पाप और समस्याओं को समाप्त करते हैं।

भगवान विष्णु का दिन गुरूवार माना जाता है, इस दिन अगर आप भगवान विष्णु जी कि पूजा-अर्चना करते है, तो इसका फल आपको जरूर मिलेगा। लेकिन यहां पर आज हम आपसे गुरूवार को की जाने वाली पूजा के बारे में नहीं बल्कि भगवान विष्णु से जुड़ी कुछ ऐसी बातों के बारे …

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भगवान हनुमान लेकर आये थे इस देवी को श्रीलंका से श्रीनगर

भारत देश में अनन्त मंदिर देखे जा सकते हैं और इसलिए इसे देव भूमि के नाम से भी जाना जाता है। खास बात तो यह है कि भारत की धरती पर मौजूद हर छोटे से छोटे मंदिर के पीछे एक पौराणिक कथा विद्यमान है, जिसके अनुसार उस मंदिर के महत्व …

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Big Protest: गांधी मैदान में जमा होंगे लाखों मुसलमान, जानिए क्यों?

बिहार; तीन तलाक जैसी प्रथा पर रोक लग जाने के बाद नाराज मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने केंद्र सरकार के खिलाफ मौर्चा खोलने की तैयारी कर ली है। इस्लाम समुदाय के बड़े संगठनों ने पटना में बड़ी रैली के आयोजन का फैसला लिया हैए जिसमें करीब तीन लाख मुस्लिमों के इक_े होने …

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इस दिन रावण ने लगाई थी हनुमान जी की पूंछ में आग

रामायण की अगर बात करें, तो भगवान राम और बजरंगबलि का ही गुणगान अधिक देखने को मिलता है। रामायण का महत्व ही इस संसार से बुराई का नाश करने के लिए बताया गया है। जिस प्रकार बजरंगबलि और प्रभु श्रीराम द्वारा रावण का विनाश किया गया था। उसी प्रकार इस संसार से बुराई का भी विनाश हो। इसके अलावा अगर बजरंगबलि की बात करें, तो इन्हे संकट हरने वाला माना गया है। जो भी भक्त सच्चे मन से मंगलवार के दिन बजरंगबलि की आराधना करता है, उसे समस्त परेशानीयो से मुक्ति मिलती है। आज हम यहां पर इसी खास दिन के महत्व के बारे में चर्चा करने वाले है। यहां पर हम जानेंगे कि आखिर मंगलवार का ही दिन हनुमान जी के लिए प्रिय क्यों माना गया है? दरअसल भाद्रपद माह के अंतिम मंगलवार को बुढ़वा मंगल मनाया जाता है। इस द‍िन भगवान शिव के अवतार माने जाने वाले हनुमान जी के दर्शन करना शुभ माना जाता है। बुढ़वा मंगल पर हनुमान जी की व‍िध‍िवत पूजा करने से सारे कष्ट म‍िट जाते हैं। ब‍िगड़े हुए काम बन जाते हैं। इसके अलावा बजरंगबली, पवनपुत्र, अंजनी पुत्र जी के दर्शन मात्र से हर मनोकामना पूरी हो जाती है। कहते हैं कि‍ आज के द‍िन बजरंग बली को स‍िंदूर चढ़ाना और उनके सामने बुढ़वानल स्त्रोत का पाठ करना लाभकारी होता है।

रामायण की अगर बात करें, तो भगवान राम और बजरंगबलि का ही गुणगान अधिक देखने को मिलता है। रामायण का महत्व ही इस संसार से बुराई का नाश करने के लिए बताया गया है। जिस प्रकार बजरंगबलि और प्रभु श्रीराम द्वारा रावण का विनाश किया गया था। उसी प्रकार इस …

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आखिर क्यों भगवान शिव के सिर पर हमेशा चन्द्रमा सुशोभित रहता है?

भगवान शिव की आराधना करने से भक्तों की समस्त पीड़ा का अंत होता है। इनकी पूजा करने का विषेश दिन सोमवार का माना गया है। जब कभी भगवान शिवशंकर की बात होती है या फिर उनका स्मरण किया जाता है, तो शिव जी की वेशभूष के रूप में उनके सिर पर चन्द्रमा सुशोभित नजर आता है। क्या कभी आपने सोचा है, आखिर भगवान शिव शंकर के सिर पर चन्द्रमा होेने का राज क्या हो सकता है? अगर आप भी अब तक इस रहस्य से अंजान हैं, तो यहां पर आज हम इसी विषय पर चर्चा करने वाले हैं, यहां पर हम जानेंगे कि आखिर कैसे भगवान शिव के सर पर चन्द्रमा स्थापित हुआ? शिवपुराण में वर्णित पहली पौराणिक कथा के अनुसार जब समुद्र मंथन किया गया था, तो उसमें से विष निकला था और पूरी सृष्टि की रक्षा के लिए स्वयं भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले उस विष को ग्रहण किया था। विष पीने के बाद भगवान शिव का शरीर विष के प्रभाव के कारण अत्यधिक गर्म होन लगा। ये देखकर चंद्रमा ने विनम्र स्वर में प्रार्थना की, कि उन्हें माथे पर धारण करके अपने शरीर को शीतलता दें, ताकि विष का प्रभाव कुछ कम हो सके। पहले तो शिव ने चंद्रमा के इस आग्रह को स्वीकार नहीं किया, क्योंकि चंद्रमा श्वेत और शीतल होने के कारण इस विष की असहनीय तीव्रता को सहन नहीं कर पाते। लेकिन अन्य देवतागणों के निवेदन के बाद शिव ने निवेदन स्वीकार कर लिया। माना जाता है कि विष की तीव्रता के कारण चांद के श्वेत रंग में नीला रंग घुल गया, जिस कारण से पूर्णिमा की रात चांद का रंग थोड़ा-थोड़ा नीला भी प्रतीत होता है।

भगवान शिव की आराधना करने से भक्तों की समस्त पीड़ा का अंत होता है। इनकी पूजा करने का विषेश दिन सोमवार का माना गया है। जब कभी भगवान शिवशंकर की बात होती है या फिर उनका स्मरण किया जाता है, तो शिव जी की वेशभूष के रूप में उनके सिर …

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तो तब से ही भगवान बजरंग बली को पसंद आ गया सिन्दूर

भगवान बजरंग बली की अगर बात करें, तो यह अपने भक्तों के संकट हरने वाले माने जाते हैं। इनका दिन मंगलवार का है, इस दिन अगर पूरे भक्ति भाव से हनुमान जी की आराधना की जाए, तो निश्चित ही भगवान बजरंग बली की कृपा मिलती है। अगर आप भी भगवान बजरंग बली की कृपा पाना चाहते है, तो मंगलवार के दिन भगवान बजरंग बली को सिन्दूर अर्पित करें, क्योंकि भगवान बजरंग बली को सिन्दूर अति प्रिय है। अब आप ही सोचते होंगे की आखिर ऐसा क्या हुआ होगा, जो भगवान बजरंग बली को सिन्दूर इतना प्रिय है? तो चलिए जानते हैं इससे ही जुड़ी एक कथा के बारे में.. सभी जानते हैं कि तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है और उनके सभी अवतारों को ये चढ़ाई जाती है। हनुमान विष्णु जी के एक अवतार श्रीराम के परम भक्त हैं और तुलसी चढ़ाने से श्री राम भी अत्यंत प्रसन्न होते हैं, जाहिर है हनुमान जी भी भोजन के साथ तुलसी समर्पित करने से प्रसन्न होते हैं। एक कथा के अनुसार माता सीता को अपने स्वामी श्री राम को प्रसन्न करने के लिए सिंदूर से मांग भरते देख कर हनुमान जी ने शरीर में ढेर सारा सिन्दूर लगा लिया था ताकि श्री राम उनसे भी स्नेह करें। तभी से हनुमान जी को सिन्दूर चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई। ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी को सिन्दूर और चमेली का तेल चढ़ाने से रोगों और शारीरिक व्याधियों से मुक्ति मिलती है।

भगवान बजरंग बली की अगर बात करें, तो यह अपने भक्तों के संकट हरने वाले माने जाते हैं। इनका दिन मंगलवार का है, इस दिन अगर पूरे भक्ति भाव से हनुमान जी की आराधना की जाए, तो निश्चित ही भगवान बजरंग बली की कृपा मिलती है। अगर आप भी भगवान बजरंग बली की कृपा …

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पहली बार जा रहे वैष्णों देवी, तो इन बातों का जान लेना बहुत जरूरी है

हिन्दू धर्म में तीर्थ यात्रा पर जाना पाप मुक्त के समान माना गया है। इसलिए हर इंसान तीर्थ यात्रा पर जरूर जाता है और उसे जाना चाहिए। लेकिन अगर आप पहली बार वैष्णों देवी के दर्शन के लिए जा रहे हैं, तो इसके लिए जरूरी है कि आप पूरी विधि-विधान के साथ माता के दर्शन करें तभी आपको इसाक पूरा फायदा होगा। आज हम आपको इसी विषय से जुड़ी कुछ ऐसी ही बातों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे आप जानकर अगर पहली बार वैष्णों देवी के दर्शन के लिए जा रहे है। तो आपको भी माता का आशीर्वाद निश्चित ही प्राप्त होगा। तो चलिए जानते हैं कौन सी वह बातें हैं, जो माता के दर्शन से पहले जान लेना जरूरी है? माता वैष्णो देवी मंदिर- माता वैष्णो देवी मंदिर की यात्रा का पहला पड़ाव जम्मू में होता है। यहां तक आप ट्रेन, बस या फिर हवाई जहाज से पहुंच सकते हैं। जम्मू ब्राड गेज लाइन द्वारा जुड़ा है। हमारी आपको हिदायत है कि आप मंदिर तक अपनी टैक्सी कर के या फिर बस से जाएं क्योंकि गर्मी में भक्तों की यहां काफी भीड़ हो जाती है जिससे ट्रेन काफी भरी होती है। उत्तर भारत के कई प्रमुख शहरों से जम्मू के लिए आपको आसानी से बस व टैक्सी मिल सकती है। शुरुआत कटरा से- अगर बात की जाए वैष्णों देवी भवन की तो उसकी शुरुआत कटरा से होती है। जम्मू से कटरा की दूरी लगभग 50 किमी है। जम्मू से बस या टैक्सी द्वारा कटरा पहुंचा जा सकता है। यहां आपको बता दें कि जम्मू रेलवे स्टेशन से कटरा के लिए बस सेवा भी उपलब्ध है जिससे 2 घंटे में आसानी से कटरा पहुंचा जा सकता है। माता वैष्णो देवी मंदिर यात्रा की शुरुआत कटरा से होती है, इसलिए कटरा पहुंचकर थोड़ी देर आराम कर लें। क्योंकि इसके बाद आपको वैष्णो देवी की चढ़ाई शुरू करनी है। आप पूरे दिन में कभी भी मां वैष्णों देवी की चढ़ाई शुरू कर सकती हैं। 6 घंटे में दिखानी होती है पर्ची- वैष्णों देवी के मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको पर्ची कटवानी पड़ेगी, जिसे आपको 6 घंटे के अंदर ही फर्स्ट चेकिंग पॉइंट पर दिखानी होती है। कटरा से लगभग 14 मीटर खड़ी चढ़ाई के बाद ही मां के भवन के दर्शन होते हैं। आप यहां तक घोड़े और पालकी की सहायता से भी जा सकते हैं। इसके लिए आपको 1000 और 2000 तक पैसे खर्च करने पड़ सकते हैं। अब करें भैरव दर्शन- वैष्णो देवी के बाद भैरव दर्शन जरूर करें। क्योंकि यहां कि मान्यता है कि यदि आप पहली बार वैष्णों देवी गए हैं, तो भैरव मंदिर के दर्शन करने के बाद ही आपकी मुराद पूरी होगी। भैरव मंदिर, वैष्णो देवी के भवन से लगभग 3 किलोमीटर दूरी स्थित है। वैसे कई भक्त जब-जब मां वैष्णों देवी के दर्शन करने आते हैं तब-तब भैरव के दर्शन करने भी जरूर जाते हैं।

हिन्दू धर्म में तीर्थ यात्रा पर जाना पाप मुक्त के समान माना गया है। इसलिए हर इंसान तीर्थ यात्रा पर जरूर जाता है और उसे जाना चाहिए। लेकिन अगर आप पहली बार वैष्णों देवी के दर्शन के लिए जा रहे हैं, तो इसके लिए जरूरी है कि आप पूरी विधि-विधान …

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आज भी इस जगह पर माता सीता की मौजूदगी के सक्ष्य निर्मित हैं

रामायण काल की अगर बात करें, तो आज के समय में इसकी जानकारी हमें धर्म ग्रंथों मे ही सुनने को मिलती हैं। वंही अगर साक्ष्य की बात करें, तो यह भी धर्म ग्रन्थों में ही देखने को मिलते हैं। भारत में इस प्रकार की कोई भी वस्तु अब तक मौजूद नहीं है, जो यह साबित करे की भगवान राम और सीता इस धरती पर थे। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि, यह धरती पर नहीं थें? क्योंकि भले भारत में इनके साक्ष्य नहीं मिलते लेकिन भारत के बाहर एक जगह ऐसी भी हैं, जहां भगवान राम और माता सीता की आज भी कुछ जरूरी चीजें संभाल कर रखी गई हैं। जिनके बारे में आज हम आपसे यहां पर चर्चा करेंगे। यह चीजें कंही और नहीं बल्कि भारत के ही पड़ोसी देश श्रीलंका में मौजूद है, तो चलिए जानते हैं इसके बारे में.... सीता टीयर तालाब- ये सीता जी के आंसुओं से बना है, कैंडी से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित नम्बारा एलिया मार्ग पर एक तालाब मौजूद है, जिसे सीता टियर तालाब कहते हैं। इसके बारे कहा गया है कि बेहद गर्मी के दिनों में जब आसपास के कई तालाब सूख जाते हैं, तो भी यह कभी नहीं सूखता। आसपास का पानी तो मीठा है, लेकिन इस का पानी आंसुओं जैसा खारा है। कहते हैं कि रावण जब सीता माता को हरण करके ले जा रहा था, तो इसमें सीता जी के आंसू गिरे थे। आज भी इसे देखने के लिए लोगों की भीड़ लगी रहती है. पुष्पक विमान स्थल- लंका में आज भी कुछ ऐसी जगह मौजूद है, जिनका संबंध रामायण काल से माना जाता है. सिन्हाला शहर में वेरागनटोटा नाम की एक जगह है, जिसका मतलब ‘विमान उतरने की जगह’ होता है। कहते हैं कि यही वो जगह है, जहां रावण का पुष्पक विमान उतरता था। अशोक वाटिका- इसे हर भारतीय याद करता है, क्योंकि माता सीता को रावण ने यहीं रखा था। भगवान राम की याद में माता सीता ने एक पेड़ के नीचे न जानें कितने दिन गुज़ार दिए थे। अशोक वाटिका वो जगह है, जहां रावण ने माता सीता को रखा था। आज इस जगह को सेता एलीया के नाम से जाना जाता है, जो की नूवरा एलिया नामक जगह के पास स्थित है। यहां आज सीता का मंदिर है और पास ही एक झरना भी है, कहते हैं देवी सीता यहां स्नान किया करती थीं। इस झरने के आसपास की चट्टानों पर हनुमान जी के पैरों के निशान भी मिलते हैं।

रामायण काल की अगर बात करें, तो आज के समय में इसकी जानकारी हमें धर्म ग्रंथों मे ही सुनने को मिलती हैं। वंही अगर साक्ष्य की बात करें, तो यह भी धर्म ग्रन्थों में ही देखने को मिलते हैं। भारत में इस प्रकार की कोई भी वस्तु अब तक मौजूद …

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