तपिश और बढ़ गई इन चंद बूंदों के बाद, काले स्याह बादल ने भी बस यूँ ही बहलाया मुझे. सतरंगी अरमानों वाले, सपने दिल में पलते हैं, आशा और निराशा की, धुन में रोज मचलते हैं, बरस-बरस के सावन सोंचे, प्यास मिटाई दुनिया की, वो क्या जाने दीवाने तो सावन …
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