अलग जाति की लड़की से शादी करने पर पिता ने निकाला घर से, वही शख्स बना इस राज्य का CM

हमारे देश में दूसरी जाति की लड़की से शादी करना समाज में अपराध माना जाता है। खासकर पुराने विचारों वाले लोग दूसरी जाति में शादी करने को पाप मानते हैं।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में एक ऐसे मुख्यमंत्री भी हुए हैं जिनको दूसरी जाति में शादी करने पर परिवार वालों ने  घर से निकाल दिया गया था। ये पिछड़ी जाति से थे लेकिन बहुत बड़े खेतीहर थे। इनके पिता जमींदार थे और 400 बीघा के मालिक थे। लेकिन दूसरी जाति में शादी करने की वजह से घर वाले नाराज थे। घर से बेदखल होने के बाद भाइयों ने भी जमीन बांटकर किनारा कर लिया। अलग-थलग होने के बाद भी उन्होंने अपनी राह खुद बनायी।

 

अपनी राह खुद बनाने वाला यह शख्स आगे चलकर बिहार का मुख्यमंत्री बना। सबसे खास बात पिछड़ी जाति से मुख्यमंत्री बनने वाले बिहार के पहले नेता  और कोई नहीं बल्कि सतीश प्रसाद सिंह हैं। इनका संबंध कुशवाहा समुदाय से है। वे भले तीन दिन के लिए मुख्यमंत्री बने थे लेकिन पिछड़ी जाति के पहले सीएम वही थे। इनके बाद ही, बीपी मंडल या कर्पूरी ठाकुर सीएम बने थे। लेकिन राजनीति की विडम्बना है कि वे कभी पिछड़ों के बड़े नेता नहीं बन पाये।

 

सतीश प्रसाद सिंह का घर खगड़िया जिले के परवत्ता प्रखंड के कुरचक्का गांव में है। अब इसे सतीशनगर के नाम से जाना जाता है। जब वे ग्रेजुएशन में थे तभी से राजनीति में रुचि लेने लगे थे। जमींदार परिवार से होने के कारण उनके घर में केवल खेती-किसानी की ही बात होती थी। राजनीति को घर डूबाने वाला पेशा मानते थे इनके परिजन।

1962 के विधानसभा चुनाव में सतीश प्रसाद सिंह ने परबत्ता विधानसभा क्षेत्र से किस्मत आजमाने का फैसला किया। घरवाले और गांव के लोग हंसने लगे कि इसका दिमाग घूम गया है। लोग मजाक उड़ाने लगे कि अब यह हिस्सा में मिले खेत को बेच कार ताप जाएगा। सतीश प्रसाद सिंह ने इन बातों की परवाह नहीं की। खेत बेच कर पैसा जुटाया। स्वतंत्र पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा। 17 हजार वोट लाये लेकिन हार गये। कांग्रेस की सुमित्रा देवी ने उन्हें हरा दिया।

 

1964 में यहां उप चुनाव की नौबत आ गयी। सतीश प्रसाद सिंह फिर निर्दलीय खड़ा हुए लेकिन हार ने पीछा नहीं छोड़ा। लेकिन इस बार केवल दो हजार वोटों से हारे। इस हार से लोगों को हंसने का और मौका मिल गया। गांव-घर के लोग यह कहने लगे कि देखते हैं कि खेत बेच कर कितने दिन राजनीति करेंगे।

1967 के विधानसभा चुनाव में सतीश प्रसाद सिंह को संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने परबत्ता से टिकट दिया। इस बार वे शानदार तरीके से जीते। 20 हजार से अधिक वोट से जीते। 1967 में पहली बार गैरकांग्रेसी दलों की सरकार बनी। महामाया प्रसाद सिन्हा मुख्यमंत्री बने। कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गयी।  एक बार सतीश प्रसाद सिंह के एक परिचित डॉक्टर को योग्यता के बाद भी मेडिकल कॉलेज में शिक्षक नहीं बनाया जा रहा था।

 

एक दिन सतीश प्रसाद सिंह संसोपा के 15-16 विधायकों के साथ मुख्यमंत्री महामाय़ा प्रसाद सिन्हा के पास पहुंच गये। उन्होंने कहा कि एक डॉक्टर को वाजिब योग्यता के बाद भी मेडिकल कॉलेज में पढ़ाने का मौका नहीं दिया जा रहा है। अगर सरकार इंसाफ नहीं करेगी तो वे विरोध प्रदर्शन करेंगे। सीएम ने उनका काम कर दिया।

 ये बात कांग्रेस के दिग्गज नेता केबी सहाय तक पहुंची। उन्होंने कहा कि आपके साथ 15-16 विधायक हैं। अगर आप इस संख्या को 30-35 तक पहुंचा दीजिए तो हम आपको सीएम बना सकते हैं। 156 विधायक कांग्रेस हैं जो आपके साथ होंगे। उस समय विधानसभा में 318 विधायक थे। सतीश प्रसाद सिंह ने संसोपा के अन्य नेताओं से बात की। 36 विधायक जोड़ लिये गये।

 

महामाया प्रसाद सिन्हा की सरकार गिर गयी। सतीश प्रसाद सिंह 28 जनवरी 1968 को मुख्यमंत्री बन गये और 1 फरवरी 1968 तक इस पद पर रहे। केवल तीन दिन ही वे मुख्यमंत्री रहे। दरअसल इस खेल के पीछे का खेल ये था कि बीपी मंडल को कैसे बिहार का मुख्यमंत्री बनाया जाए। सीएम के रूप में सतीश प्रसाद सिंह ने बीपी मंडल को बिहार विधान परिषद का सदस्य बना दिया और बीपी मंडल अगले सीएम बन गये। सतीश प्रसाद सिंह बाद में कांग्रेस, राजद और भाजपा में रहे लेकिन उनकी राजनीति परवान नहीं चढ़ी।

 

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