पीठ: याचिकाकर्ता(पीड़िता) और फारुखी एक-दूसरे केलिए अंजान नहीं थे। उनके बीच नजदीकी संबंध थे। यह मामला वैसा नहीं जब दो अपरिचित मिले थे और उनके बीच कुछ हो गया।
वृंदा ग्रोवर(याचिकाकर्ता की वकील): नहीं, मी लॉर्ड। दोनों एक-दूसरे से सिर्फ परिचित थे न कि उनके बीच यौन संबंध थे।
पीठ: हमारा मतलब है कि दोनों मर्जी से मिलते थे और दोनों खुशी- खुशी से ड्रिंक करते थे। दोनों कई चीजें एकसाथ करते थे।
ग्रोवर: साथ ड्रिंक करने का मतलब यह नहीं कि महिला की हर चीज में सहमति थी।
पीठ : हम यह साबित नहीं करना चाह रहे हैं बल्कि हम कहना चाह रहे हैं कि वे दोनों अपरिचित नहीं थे।
ग्रोवर: जरूर, इसमें कोई शक नहीं कि दोनों अपरिचित नहीं थे। घर जाना और साथ ड्रिंक करने को मौन सहमति नहीं कहा जा सकता।
पीठ: हम कहना चाहते कि इस तरह के मामले में निष्कर्ष पर पहुंचना मुश्किल होता है लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले को बहुत अच्छी तरह से निपटारा किया है।
ग्रोवर: लेकिन हाईकोर्ट ने कानून पर ही गौर नहीं किया। धारा-375 में सहमति को परिभाषित किया गया है। इसमें कहा गया है कि सहमति केलिए स्पष्टता और स्वेच्छा जरूरी है साथ ही उसका इजहार भी करना होता है। महिला ने कहा था कि सहमति से यौन संबंध नहीं हुआ था।
पीठ: महिला ने यह कैसे व्यक्त किया कि उसकी सहमति नहीं है?
ग्रोवर: उसने कई बार ‘नहीं’ कहा था।
पीठ: शुरू में ‘हां’ कहा था। बाद में कामोन्माद में ‘नहीं’ कहा था। लोग हर वक्त फर्जी मुस्कान देते हैं। लेकिन कथित आरोपी यह कैसे समझे कि नहीं फर्जी था या नहीं। महिला ने कहा था कि वह डरी हुई थी लेकिन उसने वह किया जो डरे हुए व्यक्ति के ठीक विपरीत था।
ग्रोवर: ऐसा इसलिए कि वह उसे जानती थी और उससे कई बार मिल चुकी थी। इस तरह का अनोखापन हो जाता है कि जब आप अपराधी को जानते हों।
पीठ: आप क्यों नहीं महिला द्वारा कथित आरोपी को लिखी-मेल पढ़ती हैं। आप संकोच न करें। जब अदालत आपको पढ़ने के लिए कह रही है तो आपको संकोच नहीं करना चाहिए।
ग्रोवर: मुझे ई-मेल पढ़ने में कोई संकोच नहीं। यह ई-मेल रिकार्ड मेरे द्वारा ही रिकार्ड पर लाया गया है न कि आरोपी द्वारा।