क्यों मनाते हैं शनि प्रदोष जानिए, इसके पीछे की कथा

आज शनिवार है और वैशाख महीने का प्रदोष व्रत भी है। शनि देव को इस दिन पूरे विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है और अपनी समस्त गलतियों की क्षमा याचना करने का यह बेहद महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। जो भी भक्त शनिदेव की पूजा अर्चना में शामिल होता है और जो भी व्रत को धारण करता है शनिदेव उसकी सारी मनोरथ पूरे कर उसे मोक्ष की प्राप्ति भी देते हैं।

शनिदेव को न्याय का देवता बोला जाता है। अगर किसी व्यक्ति पर शनि देव की कृपा हो गई तो वह व्यक्ति मालामाल हो जाता है और उसे एक किसी भी संकट से जूझने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती। शनिदेव के भक्त को संघर्ष का सामना नहीं करना पड़ता। प्रदोष का व्रत जो भी धारण करता है भक्तों को प्रदोष व्रत की विधि और शुभ मुहूर्त का ज्ञान होना आवश्यक है ।

प्रदोष व्रत की शुभ तिथि

व्रत धारण करने से पहले भक्त गणों को उस वृद्ध की शुभ विधि और तिथि जानना बहुत आवश्यक होता है। व्रत कोई भी हो लेकिन अगर उस की शुभ तिथि में व्रत का धारण किया गया है तो उसका फल भी शुभ ही मिलेगा।
शनिदेव का व्रत वैशाख महीने की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को शुरू होगा और यह व्रत 8 मई शाम 5:00 बजकर कुछ मिनट पर शुरू होकर 9 मई 7:30 पर इसका समापन होगा।

क्या है शुभ मुहूर्त
व्रत की तिथि विधि जानने के बाद इसका मुहूर्त भी जानना अति आवश्यक होता है। शनिदेव के प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त 8 मई को सुबह 7:00 बजे से रात 9:00 बजे तक और इसके बाद मध्य में भगवान शिव की पूजा अर्चना की जा सकती है। व्रत धारियों को पूरे 2 घंटे का समय पूजा मुहूर्त के लिए मिलेगा। इस शुभ मुहूर्त में किए गए कार्यों में सफलता मिलेगी और पूजा सार्थक होगी।

व्रत धारण करने के पश्चात सुबह स्नान ध्यान करें और शनि देव का जाप करते रहें। प्रदोष व्रत करते समय आप एक संकल्प धारण करें और दैनिक पूजा के अनुसार भगवान शिव का सुमिरन करें इसके साथ ही फलाहार करते हुए आप इस व्रत को पूरा करें और शाम को शुभ मुहूर्त में भगवान शिव को बेलपत्र भांग धतूरा मदार और गाय का दूध गंगाजल शहद सहित अर्पित करें और पुष्प की वर्षा करें इसे भगवान शिव के साथ ही भगवान शनि भी प्रसन्न होते हैं और ओम नमः शिवाय का जाप जरूर करें। पूजा के समय शनि प्रदोष व्रत की कथा का श्रवण भी करना आवश्यक होता है।

क्या है कथा

शनि प्रदोष व्रत धारण करने के बाद पूजा करते समय शनिदेव के प्रदोष व्रत की कथा का सुमिरन भी करना आवश्यक होता है जिसका फल शनिदेव अवश्य देते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक सेट अपने परिवार के साथ सुख में जीवन व्यतीत करता था लेकिन विवाह के कई साल बीत गए लेकिन उन्हें संतान का सुख प्राप्त नहीं हुआ। जिससे सेठ और सेठानी बहुत दुखी थे। सेठ और सेठानी ने 1 दिन तीर्थ पर जाने का निर्णय लिया और उस शुभ मुहूर्त में दोनों तीर्थ यात्रा के लिए चल पड़े। चलते चलते उन्हें रास्ते में एक महर्षि मिले और उन्होंने दंपत्ति को आशीर्वाद दिया
तब उस साधु ने सेठ और सेठानी से शनि प्रदोष व्रत धारण करने का एक सुझाव दिया और उसके बाद यात्रा से आने के बाद दोनों ने ही विधि विधान से शनिदेव की पूजा व्रत की और प्रदोष व्रत धारण किया जिसके फलस्वरूप उन्हें एक संतान की प्राप्ति हुई।
तभी से शनि प्रदोष व्रत की महत्ता के गुणगान सभी कोई गाता है।

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