हिन्दू धर्म में पितृ श्राद्ध करना बेहद जरुरी होता है ऐसी मान्यता है की जो भी मनुष्य पितृ श्राद्ध नहीं करता है या विधिपूर्वक नहीं करता है उनके पितरो को शान्ति नहीं मिल पाती तथा उनकी आत्मा इस लोक में भटकती रहती है. श्राद्ध के दिन लोग अपने पितरो को 16 दिनों तक जल चढाते है. इस बार पितृ पक्ष 5 सितम्बर से शुरू हो रहा है और 19 सितम्बर को समाप्त हो जाएगा. श्राद्ध करने के लिए मनुस्मृति और ब्रह्म पुराण जैसे शास्त्रों में बताया गया है कि दिवंगत पितरों के परिवार में या तो ज्येष्ठ पुत्र या कनिष्ठ पुत्र और अगर पुत्र न हो तो धेवता (नाती), भतीजा, भांजा या शिष्य ही तिलांजलि और पिंडदान देने के पात्र होते हैं.

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ऐसा माना जाता है अगर पितृ लोग नाराज़ हो जाए तो हम मनुष्यों का जीवन अन्धकार में चला जाएगा तथा मनुष्यों पर अशांति छा जायेगी. संतानहीन के मामलो में ज्योतिषी पितृ दोष को अवश्य देखते है. ऐसे में पितृ मोक्ष के दौरान श्राद करना बहुत जरुरी माना जाता है.
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ज्योतिष के अनुसार कौए पितृ का रूप होते है श्राद्ध के दिन पितृ लोग कौओ का रूप लेकर आते है इसलिए श्राद्ध के समय भोजन का बना हुआ पहला खाना कौओ के लिए निकाला जाता है, जिसमे यदि पितृ (कौए) नाराज़ हो जाए तो इससे गृह शान्ति भंग हो सकती है इसलिए श्राद्ध के दिनों में जब हम भोजन बनाते है तो कौओ के लिए पहला खाना हम अपने छत के ऊपर रख कर आ जाते है.
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