महागठबंधन से नीतीश ने नाता तोड़कर बीजेपी से हाथ मिलाकर सत्ता पर काबिज हैं. ऐसे में कांग्रेस के लिए अपने विधायकों को बचाए रखने की बड़ी चुनौती है, लेकिन पार्टी के बड़े नेताओं की इसकी फिक्र नहीं सता रही हैं. जबकि सत्ता से अलग होने के बाद कई कांग्रेसी विधायकों के मन में सत्ता सुख की लालसा जाग रही. यही वजह है कि कांग्रेस MLA की टूट की संभावना बढ़ी है और जल्द ही सूबे में सियासी उथल पूथल हो सकती है.संवदेनहीनता: थाने से पुलिस ने भगाया तो युवक ने कर ली आत्महत्या!
बात दें कि बिहार में कांग्रेस बीस साल के बाद 2015 में सत्ता में लौटी थी. वह सूबे की सत्ता के सिंहासन पर भले ही काबिज न रही हो, लेकिन सत्ता में साझीदार जरूर रही है. ऐसे में कांग्रेसी विधायकों को दो दशक के बाद सत्ता सुख भोगने का मौका मिला था.लेकिन नीतीश के बीजेपी से हाथ मिला लेने के बाद सत्ता सुख से कांग्रेसी विधायक महरूम हो गए हैं.
दरअसल 2014 लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद बीजेपी से मुकाबला करने के लिए नीतीश कुमार, लालू यादव और कांग्रेस ने मिलकर महागठबंधन बनाया था. इस महागठबंधन का चेहरा नीतीश कुमार बने थे. सूबे की 243 सीटों में से 101 पर आरजेडी, 101 जेडयू और 41 सीट कांग्रेस पर कांग्रेस लड़ी थी.
सूत्रों की माने तो नीतीश कुमार ने 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान अपनी पार्टी के टिकट बांटने के साथ-साथ कांग्रेस के टिकट में हस्ताक्षेप किया था. उन्होंने अपने एक दर्जन चहेतों को कांग्रेस पार्टी से टिकट दिलाने का काम किया था. उनमें से कई विधायक जीतने में कामयाब भी हुई थे. मौजूदा बदले हुए समीकरण में नीतीश कुमार अपने को और मजबूत करने की कोशिश में लगे हुए हैं.
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ऐसे में उनके निशाने पर वह कांग्रेसी MLA में हैं जिनकों 2015 में उन्होंने कांग्रेस की टिकट दिलाने में अहम भूमिका अदा की थी. इसीलिए माना जा रहा है कि कांग्रेस में जबरदस्त टूट होने जा रही है. बकायदा इसकी भूमिका तैयार हो चुकी है और कांग्रेस के करीब 10 विधायक हैं, जो बकायाद नीतीश कुमार से लगातार संपर्क में हैं.
सूबे के कांग्रेसी सवर्ण विधायकों को कांग्रेस का आरजेडी के संग इतना प्रेम भी रास नहीं आ रहा है. सूत्रों की माने तो पार्टी के ज्यादातर सवर्ण विधायक बीजेपी में जाना चाहते हैं, तो वहीं अति पिछड़े और महादलित समुदाय के कई विधायकों का रूझान जदयू की तरफ झुकता नजर आ रहा है.
दरअसल कांग्रेसी विधायकों की टूट की एक वजह और भी है. कांग्रेस के MLA को आरजेडी के संग रास नहीं आ रहा है. चाहे वो विचारधारा का मामला हो या क्षेत्र में वोटों का हिसाब किताब. कांग्रेस को राज्य में 20 साल के बाद सरकार चलाने का मौका मिला था, लेकिन केन्द्रीय नेतृत्व का तेजस्वी यादव पर स्पष्ट निर्णय नहीं होने के कारण सरकार हाथ से निकल गई. 20 महीनों तक सत्ता का स्वाद चख चुके कांग्रेसियों को ये रास नहीं आ रहा है.
कांग्रेस नेताओं की सबसे ज्यादा नाराजगी पार्टी आलाकमान की चुप्पी को लेकर है. कांग्रेस के अधिकांश स्थानीय नेताओं का मानना है कि तेजस्वी यादव के मामले में अगर आलाकमान नीतीश कुमार के साथ रहने का निर्णय ले लेती तो शायाद यह दिन देखना न पड़ता. बिहार की सत्ता से हाथ धोने के बाद इन्हीं शिकायतों की वजह से कांग्रेस नेता अब विकल्प की तलाश में जुट गए हैं. राज्य में कांग्रेस के 27 विधायक हैं, ऐसे में जानकारों की मानें तो आने वाले दिनों में अगर पार्टी टूटती है, तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
गौरतलब है कि आरजेडी और कांग्रेस के बीच संबंध काफी पुराने है, जो 1997 में सीताराम केसरी के कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए शुरू हुई थी. इसके बाद वर्ष 1998 में सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनी और इस दौरान उन्हें लालू प्रसाद यादव का पूरा साथ मिला. वहीं चारा घोटाले में फंसे लालू की सरकार जब संकट में घिरी, कांग्रेस ने ही समर्थन देकर उसे उबारा.