भारी बारिश का आतंक: योगी मंत्री के घर की टपकी छत, दुखी होकर की शिकायत….
ग्रामीण रामसूरत राहत सामग्री के वितरण में भेदभाव का आरोप लगाते हैं। वह कहते हैं, रोजाना बोट से एक ही इलाके में मदद दी जा रही है। झोपड़ी गिर गई है, पूरा घर सड़क पर है। दूसरों के भरोसे दो जून की रोटी का इंतजाम हो रहा है। कुछ दूर आगे बढ़ने पर लालजी का घर मिलता है। उनके घर की सुशीला ने बताया कि साहब, आप ही बताएं कि भूजा और बिस्किट से पेट भरेगा। लंच पैकेट आता तो है लेकिन हम लोगों को नहीं मिलता। गांव की शारदा बताती हैं, खेती और घर में रखा अनाज बाढ़ में बर्बाद हो गया। पूड़ी-सब्जी दिन में एक बार मिलती है उससे ही भूख शांत कर लेते हैं। वहीं पश्चिम टोला के शिवसागर व महेश चंद ने बताया कि बिजली की सप्लाई आने से राहत मिली है। बेटे से कहकर शहर से घरेलू सामान मंगाया है। कब तक दूसरों के भरोसे रहेंगे।
हमें तो कई मदद नहीं मिली
मंझरिया गांव (हरिजन टोला) के संत प्रसाद रेलवे ट्रैक के किनारे ही गांव के मुहाने पर खटिया डालकर बैठे थे। बोले, बाबू हम लोगों का टोला सबसे आखिरी में है। यहां कोई मदद देने नहीं आया। बोट भी आती है तो नदी की ओर से गांव के दक्षिणी इलाके के लोगों को राहत सामग्री दी जाती है। हम लोग खाना खुद बनाते हैं। पानी कम हुआ है तो लड़के बाजार कर सामान लेकर आए हैं। संत प्रसाद के पास ही बैठे सेमरा गांव के राज किशोर ने बताया कि गांव में करीब 150 घरों में पानी घुसा है। रेलवे ट्रैक के उत्तरी छोर पर गांव होने के चलते यहां सरकारी बोट भी नहीं पहुंच पा रही है।
हेलीकाप्टर से गिराई गई राहत सामग्री
गोरखपुर। दोपहर करीब ढाई बजे एक हेलीकाप्टर जैसे ही मंडराया, बांध पर मौजूद उत्तरासोत, टिकरिया, जमुआर के लोगों ने हाथ हिलाना शुरू कर दिया। थोड़ी ही देर में हेलीकाप्टर नीचे आया और लंच पैकेट गिराया गया। इसके बाद हेलीकाप्टर गांव की ओर रुख करते हुए घुनघुनकोठा, मंझरिया की की ओर चला गया और वहां भी लंच पैकेट, भूजा-बिस्किट के पैकेट गिराए गए।
सुनामी की तरह लहरें…आधे घंटे में सब बर्बाद
गोरखपुर। भले ही गाहासाड़-उत्तरी कोलिया बांध सात दिन पहले कटा हो, लेकिन बाढ़ की विभीषिका का सामना करने वाले ग्रामीण अब भी खौफनाक मंजर से उबर नहीं पा रहे हैं। बाढ़ की चर्चा शुरू होेते ही तबाही का वह दृश्य उनके आंखों के सामने कौंधने लग रहा है। उत्तरासोत गांव के लाल चंद गुप्ता बताते हैं, सप्ताह भर पहले सुबह के पांच बजे थे। शोर सुनकर आंख खुली तो देखा गांव में लोग इधर-उधर भाग रहे हैं। घर से बाहर जब खेत की ओर नजर गई तो सुनामी की तरह उठती लहरें दिखीं। कुछ देर तक समझ ही नहीं सका कि करूं क्या। फिर बेटे और पत्नी को लेकर सामान छत पर चढ़ाने लगा। करीब आधे घंटे भी नहीं हुए थे कि राप्ती के सैलाब में गांव डूब गया और सब कुछ आंखों के सामने ही बर्बाद हो गया।