नीति आयोग के अध्यक्ष पीएम मोदी हैं। ऐसे में यह कैसे कहा जा सकता है कि यह आयोग पीएम की अनुमति के बगैर को कोई पॉलिसी बना रहा हो या उस पर काम हो रहा हो। हाल में मिली जानकारी के मुताबिक, आरएसएस के इशारे पर आरक्षण की कमर तोड़ने के लिए नीती आयोग ने केंद्र सरकार को ये 3 तरीका बताया है।
मोदी सरकार और उसके नीति नियंताओं को हर समस्या और विकास का हल प्राइवेटाइजेशन में नजर आ रहा है। रेलवे, एयर इंडिया, जिला अस्पताल के बाद अब जेल, स्कूल और कॉलेज को भी प्राइवेट सेक्टर को दिया जा सकता है। प्राइवेट सेक्टर में विकास देख रहे नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कान्त का कहना है कि सरकार को इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स से बाहर निकलने की जरूरत है।
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रेलवे स्टेशन बेचने की तैयारी में है सरकार
एयर इंडिया को भी बेचने की तैयारी
प्राइवेटाइजेशन से आरक्षण पर वार
एक अखबार के मुताबिक, उन्होंने कहा, ‘देश को पीपीपी के नए क्षेत्रों में आगे बढ़ने की जरूरत है। इस बात का कोई मतलब नहीं है कि जेल, स्कूल, कॉलेज को सरकारी सेक्टर के तहत चलाया जाए। कम-से-कम कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों का अनुभव यह बताता है कि प्राइवेट सेक्टर सामाजिक क्षेत्र में लंबे समय में बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराने में पूरी तरह सक्षम है।’ आरक्षण को लेकर जो आग जल रही है, उसकी आंच तो कभी कभी बाहर आ ही जाएगी।
कान्त ने कहा कि प्राइवेट सेक्टर ने आक्रामक बिडिंग के जरिये प्रॉजेक्ट्स की खटिया खड़ी कर दी और पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल का संकट तैयार कर दिया। उन्होंने कहा, ‘सरकार ने काफी बड़े प्रॉजेक्ट्स पर काम किया है, लेकिन सरकार ऑपरेशन और मेंटनेंस में अच्छी नहीं है। लिहाजा, सरकार को बीओटी (बिल्ड, ऑपरेट और ट्रांसफर) मॉडल की प्रक्रिया को उल्टा करने की जरूरत है। सरकार को प्रॉजेक्ट्स की बिक्री करनी चाहिए और प्राइवेट सेक्टर को इसे हैंडल करने का मौका दिया जाना चाहिए।’
पीपीपी निवेश में मौजूदा संकट के लिए प्राइवेट सेक्टर को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं, जहां प्राइवेट सेक्टर ने आक्रामक बिडिंग की और ड्यू-डिलिजेंस की परवाह नहीं की। नतीजतन, पीपीपी मॉडल को झटका लगा। उन्होंने कहा ‘प्राइवेट सेक्टर का परफॉर्मेंस बेहद बुरा रहा। भारत में प्राइवेट सेक्टर काफी असंवेदनशील और गैर-तर्कसंगत है।’ दिल्ली-जयपुर एक्सप्रेसवे का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है कि प्राइवेट सेक्टर को तर्कसंगत ढंग से बिडिंग करनी चाहिए और समयबद्ध तरीके से परियोजनाओं पर अमल करना चाहिए।
हवाई अड्डों पर गंदे बाथरूम का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, ‘हमें इसे प्राइवेट सेक्टर को सौंपना चाहिए। यह प्राइवेट सेक्टर को उसके पैसे को इन्फ्रास्ट्रक्चर में वापस लाने का सबसे तेज तरीका है। ये प्रॉजेक्ट्स पूरी तरह से जोखिममुक्त हैं।’ हवाई अड्डों पर बाथरूम की देखरेख की जिम्मेदारी फिलहाल एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पास है।
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कान्त ने कहा कि भारत जैसे देश में प्राइवेट सेक्टर के लिए बड़ी संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा कि मार्केट में पैसे की कोई कमी नहीं है और भारत अपने प्रॉजेक्ट्स की डी-लिस्टिंग के जरिये इस मौके का इस्तेमाल कर सकता है। कान्त ने कहा, ‘इन प्रॉजेक्ट्स की बेहतरीन मार्केटिंग होनी चाहिए। उनका यह भी कहना था कि जो फ्रेट कॉरिडोर बनाया जा रहा है, उसे भी प्राइवेट हाथों में सौंप दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘रेलवे की तरफ से तैयार किया जा रहा फ्रेट कॉरिडोर यात्रा की अवधि को 14 दिनों से घटाकर 14 घंटे तक कर देगा। जाहिर तौर पर यह बड़ा बदलाव होगा।’
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