यहां की उपजाऊ भूमि में पैदा उत्पादों को यदि सही बाजार मिल जाय तो इससे लोगों की आर्थिकी में जबरदस्त सुधार आएगा। इसी सोच ने उन्हें पहाड़ में ही रहकर कुछ नया करने के लिए प्रेरित किया। लगातार प्रयासों से स्थानीय उत्पादों को देशभर में पहचान मिली तो लोग भी खेती में रुचि ले रहे हैं।

इस युवा ने लिखी नर्इ गाथा, पारंपरिक उत्पादों को दिलाई पहचान

यह एक ऐसे युवक की कहानी है, जिसने कड़ी मेहनत से स्वयं को तो स्वावलंबी बनाया ही, गांव के दूसरे लोगों के लिए भी प्रेरणा का पर्याय बन गया। 36 वर्षीय इस युवक का नाम है नरेश नौटियाल और ठौर है उत्तरकाशी जिले के नौगांव ब्लॉक का देवलसारी गांव। यहां की उपजाऊ भूमि में पैदा उत्पादों को यदि सही बाजार मिल जाय तो इससे लोगों की आर्थिकी में जबरदस्त सुधार आएगा। इसी सोच ने उन्हें पहाड़ में ही रहकर कुछ नया करने के लिए प्रेरित किया। लगातार प्रयासों से स्थानीय उत्पादों को देशभर में पहचान मिली तो लोग भी खेती में रुचि ले रहे हैं।

नरेश ने सात साल तक हिमालयन एक्शन रिसर्च सेंटर (हार्क) में बतौर मार्केटिंग सुपरवाइजर नौकरी की और फिर दो साल देहरादून में अपनी दुकान भी चलाई। लेकिन, मन में तो टीस थी रंवाई घाटी (यमुना घाटी) के उत्पादों को देश-दुनिया में पहचान दिलाने की। सो, वर्ष 2011 में वापस गांव लौटकर जुट गए पहाड़ के स्थानीय उत्पादों को पहचान दिलाने में। इसके लिए वह स्थानीय महिलाओं के सहयोग से गांव-गांव जाकर पहाड़ी उत्पाद एकत्र करते हैं और फिर उन्हें देश के विभिन्न शहरों में आयोजित होने वाले मेलों में स्टॉल लगाकर बेचते हैं। इससे नरेश ही नहीं, अन्य ग्रामीणों को भी अच्छी-खासी आय हो रही है। 

नौकरी छोड़ अपनाया स्वरोजगार पहाड़ को लेकर टीस नरेश के मन में बचपन से ही रही है। लेकिन, परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उन्हें 15 जुलाई 2002 से लेकर 15 जुलाई 2009 तक नौगांव में ही स्वैच्छिक संस्था हार्क में बतौर मार्केटिंग सुपरवाइजर काम करना पड़ा। इसके तहत वह हार्क से जुड़े रंवाई महिला स्वायत्त सहकारिता समूह की महिलाओं से मंडुवा, झंगोरा, मंडुवे का आटा, चिड़ा, कौंणी, अखरोट, राजमा जैसे स्थानीय उत्पाद एकत्र कर उन्हें देहरादून, दिल्ली हॉट बाजार प्रगति मैदान आदि स्थानों पर बेचते थे।

धीरे-धीरे उन्हें कारोबार का अच्छा अनुभव हो गया तो 16 जुलाई 2009 को हार्क की नौकरी छोड़ सीमाद्वार (देहरादून) में रंवाई के उत्पादों की दुकान खोल दी। दो वर्ष तक उन्होंने इस दुकान का संचालन किया, लेकिन फिर 2011 में इसे बंद कर सीधे यमुना घाटी की ओर रुख कर दिया। स्टॉलों से हाथोंहाथ उठ जाते हैं उत्पाद शुरुआत में नरेश विभिन्न गांवों में जाकर पहाड़ी दाल, मंडुवा, झंगोरा, अचार, अखरोट आदि उत्पादों को बाजार भाव पर खरीदकर उन्हें देहरादून के बाजार में बेचना शुरू किया। इससे उनकी बाजार में अच्छी पहचान बनने लगी। सो, धीरे-धीरे वह देहरादून से लेकर अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला दिल्ली, मुंबई, उत्तरायणी मेला बरेली, गुजरात, इलाहाबाद, हिमाचल प्रदेश आदि स्थानों पर स्टॉल लगाकर पहाड़ी उत्पादों को बेचने लगे। 

आज नरेश जहां भी जाते हैं, लोग उनके उत्पादों को हाथोंहाथ खरीद लेते हैं। नकदी फसलों के उत्पादन में बढ़ी लोगों की रुचि नरेश बताते हैं कि हार्क में रहते हुए उन्होंने रुद्रेश्वर स्वयं सहायता समूह के माध्यम से यह कार्य शुरू किया। लेकिन, मन में एक टीस थी कि स्थानीय उत्पादों की बाजार में अच्छी पहचान बने। आखिर क्यों पहाड़ के बेरोजगार समृद्ध कृषि होते हुए भी रोजी-रोटी के लिए दूसरे शहरों का रुख कर रहे हैं। 

यहां की उपजाऊ भूमि में पैदा उत्पादों को यदि सही बाजार मिल जाय तो इससे लोगों की आर्थिकी में जबरदस्त सुधार आएगा। इसी सोच ने उन्हें पहाड़ में ही रहकर कुछ नया करने के लिए प्रेरित किया। लगातार प्रयासों से स्थानीय उत्पादों को देशभर में पहचान मिली तो लोग भी खेती में रुचि ले रहे हैं।

 
 
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