इस अनोखी बात के पीछे की कहानी बताते हुए गांव के सरपंच सतबीर कुंडू कहते हैं कि करीब तीन सौ साल पहले कुंडू गौत्र के बुजुर्ग गांव घोघड़िया से आकर यहां बसे थे। उसी समय एक महिला ने एक बच्चे को जन्म दिया, जिसका नाम लखमीर रखा गया। कहा जाता है कि उसी महिला की कोख से बच्चे के साथ एक सांप ने भी जन्म लिया। उस महिला ने सांप का पालन पोषण भी अपनी औलाद की तरह किया।
आखिर क्यों इस घर में नहीं रहना चाहता कोई, जानिए क्या है ‘डरावनी’ वजह…
भाद्र मास की चौथ के दिन वह महिला खेतों में काम करने गई थी। इस दौरान उसने अपने बेटे और सांप को एक पालने में साथ-साथ सुला दिया। इस बीच उस महिला का भाई अचानक गांव आया और अपनी बहन को घर में न पाकर वह भी उसी खेत चला गया। महिला के भाई ने देखा कि उसके भांजे के साथ पालने में एक सांप लेटा हुआ है। किसी खतरे का अंदेशा जानकर उसने सांप को मार दिया। जिसके तुरंत बाद उस बच्चे की भी मौत हो गई।
यह देखकर महिला आग बबूला हो गई और उसने रोते हुए अपने भाई से कहा कि तूने सांप के साथ मेरे बेटे को भी मार डाला है जिससे महिला को बहुत गुस्सा आया। उसने अपने भाई से कहा कि तू भविष्य में इस दिन कभी भी मेरे घर मत आना, क्योंकि इस से दिन तुझे मेरे घर से अन्न, जल तक नहीं दिया जाएगा। तब से लेकर आज तक जिस दिन सांप किसी को काट लेता है तो उस दिन कुंडू गोत्र के लोग किसी मेहमान, आगंतुक अथवा भिखारी को भी खाना नहीं देते।
उसी दिन से कुंडू गौत्र में परंपरा बनी कि कोई भी व्यक्ति सांप को नहीं मारेगा। ऐसी मान्यता है कि सांप के काटने से यहां कुंडू गौत्र के लोगों की मौत नहीं होती। यदि कोई सर्प किसी व्यक्ति को काट लेता है तो उसे घर में ही जमीन पर लेटाकर महिलाओं द्वारा गीत गाकर उसका उपचार किया जाता है। इसके बाद नाग द्वारा डसा हुआ व्यक्ति स्वस्थ हो उठता है। ठीक होने पर उसे नाग देव के मंदिर पर ले जाकर माथा टकवाया जाता है।
सरपंच कुंडू बताते हैं कि 300 साल का इतिहास गवाह है कि सांप के काटने से यहां किसी की मृत्यु नहीं हुई है। नाग देव के मंदिर पर हर तीन साल के बाद भाद्र मास की पंचम को भंडारा लगाया जाता है, जिसमें उस दौरान पैदा हुए बच्चों को शामिल किया जाता है। अब तो यहां सांप लोगों के दोस्त बनकर रहते हैं। लोग उन्हें बच्चों की तरह पालते हैं।