आज यानी 20 जुलाई को एकादशी है, लेकिन यह खास है। आषाढ़ मास में पड़ने वाली एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से भी जानते हैं। वैसे तो हिंदू धर्म में एकादशी का अपना महत्व है लेकिन आषाढ़ में शुल्क पक्ष में पड़ने वाली देवशयनी एकादशी के अलग मायने हैं। बताया जाता है कि आज से ही चार महीने के लिए भगवान योगनिद्रा में चले जाते हैं और इसी के साथ ही सभी शुभ कार्यों में एक तरह से ठहराव आ जाता है। इसके बाद यह चार माह बाद ही शुरू होगा जब भगवान योगनिद्रा से जागेंगे। इसी दिन से चातुर्मास भी शुरू होता है। जैसा कि नाम में ही चार मास का जिक्र आ रहा है इससे समझा जा सकता है कि यह चार महीनों के लिए होता है। आइए जानते हैं देवशयनी एकादशी का महत्व और इसकी व्रत से जुड़ी कथा।
कब करें व्रत का पारण
जानकारी के मुताबिक देवशयनी का व्रत करने से अच्छा होता है। इसके लिए भगवान विष्णु के विग्रह को आपको सबसे पहले पंचामृत से स्नान कराना होगा और उनको धूप दीप दिखाकर एक नया कपड़ा बिछाकर स्थापित करना होगा। इसके बाद इनकी पूजा करनी चाहिए। आप इनके स्थापना के लिए पीले रंग का कपड़ा ले सकते हैं। व्रत करने से आपके कष्ट दूर होंगे। देवशयनी एकादशी के लिए शुभ मुहूर्त 20 जुलाई को शाम सात बजकर 17 मिनट पर यह समाप्त हो जाएगा। यह 19 जुलाई को रात नौ बजकर 59 मिनट पर शुरू हुआ था। लेकिन आप व्रत का पारण 21 जुलाई को सुबह 6 बजकर 11 मिनट से लेकर 8 बजकर 49 मिनट तक कर सकते हैं।
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देवशयनी एकादशी के पीछे हैं कई कथाएं
बताया जाता है कि इस दिन को हरिशयनी और पद्मनाभा एकादशी के नाम से भी जानते हैं। भगवान इस दिन से चार माह तक पाताल में राजा बलि के यहां निवास करते हैं और फिर कार्तिक माह में लौटते हैं। तभी से शुरू होता है शुभ कार्य। इसलिए चार माह तक कोई शुभ कार्य नहीं होता है। इसके पीछे कथा है कि यह भगवान श्रीकृष्ण ने खुद महाभारत काल में धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी। कथा के अनुसार, सतयुग में मांधाता चक्रवर्ती राजा थे जिनके राज्य में तीन साल तक वर्षा नहीं हुई। इससे राज्य में अकाल पड़ा। लोग भी चिंतित थे और राजा भी। राजा उपाय के लिए ब्रहजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम गए और उनसे समाधान पूछा। ऋषि ने राजा को आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने को कहा। राजा ने ऋषि के आदेश का पालन कर देवशयनी एकादशी का व्रत किया और राज्य में अच्छी वर्षा हुई।