इस बार साल भर देरी से ओलंपिक 23 जुलाई से जापान की राजधानी टोक्यो में आयोजित हो रहे हैं। इस बार ओलंपिक में भारत ने करीब 20 साल बाद घुड़सवारी कैटेगरी में भाग लिया है। बता दें कि इस बार घुड़सवारी में भारत का प्रतिनिधित्व फवाद मिर्जा करने वाले हैं। वहीं इस बार भारत की ओर से तीरंदाजी के लिए प्रवीण जाधव ओलंपिक में प्रतिनिधित्व करेंगे। खास बात ये है कि प्रवीण ने मजदूरी से बचने के लिए तीरंदाजी को बतौर करियर चुना। तो चलिए जानते हैं इनके संघर्ष की कहानी।
प्रवीण जाधव ने बचपन से देखी है गरीबी
प्रवीण जाधव के पास बचपन से ही सिर्फ दो ही रास्ते थे। उन्हें बड़े होने पर करियर चुनने का कोई ऑप्शन नहीं मिला था। मालूम हो कि उनके पिता दिहाड़ी वाले मजदूर थे पर प्रवीण को मजदूर नहीं बनना था। वे बेहतर जिंदगी चाहते थे। उन्होंने मजदूरी करने की बजाय खेलकूद को बतौर करियर चुना। बता दें कि तीरंदाजी खेल में उन्होंने अपना करियर बनाना ही सही समझा।
आठ घंटे की मजदूरी में पिता कमाते थे 200 रुपये
सतारा के रहने वाले प्रवीण का जीवन बचपन से ही संघर्षों से भरा रहा है। उन्होंने बचपन से ही अपने पिता को संघर्ष व मजदूरी करते हुए देखा है। बड़ी मुश्किल में वे एक वक्त का खाना परिवार के लिए जुटा पाते थे। उनके पिता आठ–आठ घंटे काम करते थे तब जा कर उन्हें 200 रुपये मिलते थे। उनके पिता ने बड़ी मुश्किल में घरवालों का पेट पाला था। ये सब देख कर प्रवीण बचपन से ही परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए कुछ करना चाहते थे।
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स्कूल के खेल शिक्षक ने बदली उनकी जिंदगी
एक वक्त तो ऐसा भी आया जब उनके पिता ने उनसे साफ कह दिया था कि तुम्हें स्कूल जाना छोड़ कर मजदूरी करनी होगी वर्ना परिवार का पेट पालना मुश्किल हो जाएगा। उस वक्त प्रवीण सिर्फ 7वीं में पढ़ रहे थे। प्रवीण के स्कूल के खेल शिक्षक ने प्रवीण को एथलेटिक्स में भाग लेने को कहा। उन्होंने ही प्रवीण को हिम्मत दी कि खेलों में आगे निकलोगे तो तुमको मजदूरी नहीं करनी होगी।
ऋषभ वर्मा