पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब एक बार कन्हैया से रूठ गईं थीं देवी लक्ष्मी, आज भी कर रही हैं इस मंदिर में उनकी पूजा

श्रीकृष्ण और राधारानी के प्रेम के कई किस्से हम सभी ने सुने होंगे। इनके रूठने और मनाने की कई कथाएं सुनाई जाती हैं। लेकिन आज हम आपके लिए एक ऐसी कथा लाए हैं जो आपने न सुनी होगी और न पढ़ होगी। यह किस्सा है देवी लक्ष्मी के कन्हैया से रूठने का। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार देवी लक्ष्मी कन्‍हैया से रूठ गईं थीं। कहा जाता है कि तब से लेकर आज तक वो एक मंदिर में कन्हैया का इंतजार कर रही हैं। यह मंदिर है वृन्दावन के बेलवन में। आइए पढ़ते हैं इस मंदिर और देवी लक्ष्मी और कन्हैया की इस कथा के बारे में।

बेलवन वृंदावन से यमुना पार मांट की ओर जाने वाले रास्ते पर स्थित है। यह काफी प्रसिद्ध मंदिर है और काफी पुराना भी है। ऐसा कहा जाता है कि इसी जगह पर प्राचीन काल में बेल के पेड़ों का जंगल था। यही कारण है कि इस जगह को बेलवन के नाम से जाना जाता है। यह वही जंगल है जहां श्रीकृष्ण और बलराम गइया को चराने आते थे। इन्‍हीं जंगलों के बीच मां लक्षअमी का यह मंदिर स्थित है जहां वो कन्हैया से रूठने के बाद आई थीं।

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार श्रीकृष्ण, राजा और उनकी 16,108 गोपियां बज्र में रासलीला कर रही थीं। इस दौरान मां लक्ष्मी को भी उनकी रासलीला देखने की इच्छा हुई। रासलीला देखने को बज्र पहुंची। लेकिन श्रीकृष्ण की रासलीला देखने के लिए केवल गोपिकाओं को ही अनुमति थी और किसी को नहीं। ऐसे में मां लक्ष्मी को बाहर की रोक दिया गया। इससे वह बेहद नाराज हो गईं। मां लक्ष्मी वृंदावन की ओर मुख करके बैठ गईं और तपस्‍या करने लगीं।

कहा जाता है कि जब मां लक्ष्मी तपस्या के लिए बैठी थीं तब कृष्ण जी रासलीला कर बहुत थक गए थे। उन्हों बहुत भूख लग रही थी। फिर मां लक्ष्मी ने अपनी साड़ी का एक हिस्सा फाड़ा और उससे अग्नी जलाई। फिर इसी अग्नि पर उन्होंने खिचड़ी बनाकर कृष्ण जी को खिलाई। यह देख श्रीकृष्ण प्रसन्न हो गए। फिर मां लक्ष्मी ने कृष्ण जी के सामने ब्रज में रहने की इच्‍छा जताई। कृष्ण जी ने उन्हें अनुमति दे दी। कहा जाता है कि यह कथा पौष माह की थी। ऐसे में बज्र में इस महीने में बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। कहा जाता है कि आज भी मां लक्ष्मी यहां पर कन्हैया की पूजा कर रही है।

पौष माह में जब मेले का आयोजन किया जाता है तो यहां पर गुरुवार के दिन खिचड़ी महोत्‍सव का आयोजन क‍िया जाता है। मेले जो भक्त आते हैं वो अपने साथ खिचड़ी बनाने का सामान भी लाते हैं। वह यहां चूल्‍हा बनाते हैं और बैठकर उसमें खिचड़ी पकाते हैं। इस खिचड़ी को प्रसाद के रूप में भी बांटा जाता है।

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